ब्राह्मण अपने बेटे को नए नेवले के पास छोड़ देता है। लेकिन जब वह वापस आता है, तो वह नेवले के मुंह पर खून लगा देखता है। ऐसे जैसे उसके बच्चे को नेवले ने मारा हो। इस वजह से ब्राह्मण उस नेवले को मार देता है। जबकि उसका बच्चा जिंदा होता है। जिसे बचाने के लिए नेवला सांप को मारता है। इस वजह से ब्राह्मण को काफी ग्लानि होती है। ये कहानी हमे सिखाती है कि हमे अपने प्रदर्शन से निराश नहीं होना चाहिए बल्कि हमें उसमें सुधार करना चाहिए। जब आप पब्लिक लाइफ जीते हैं तो न चाहते हुए भी आपकी व्यक्तिगत लाइफ पब्लिक हो जाती है। “इधर मेरा खेल के प्रति जो अप्रोच है और मेरे खेल में बदलाव आया है। वह सिर्फ मेरे दिमाग आई एक बात से है। मेरा सपना था कि मैं डैड के लिए देश से खेले।”- कोहली के पिता की मौत जिस दिन हुई थी उन्हें उसी दिन दिल्ली के लिए मैच खेलने जाना था। ये कहानी सचिन से मिलती है जब उनके पिता की मौत 1999 के विश्वकप के दौरान हुई थी और उसके अगले मैच में उन्होंने शतक ठोंक दिया था। वह इस लिहाज से और खास हैं क्योंकि जब वह बल्लेबाज़ी के लिए मैदान पर जाते हैं, तो उनके उनसे करोड़ो फैन्स की उम्मीदें जुड़ी होती हैं। पूरी टीम संघर्ष कर रही होती है लेकिन वह कमजोर नजर नहीं आते हैं। वह दबाव को एक किनारे करके अपना प्राकृतिक खेल खेलने में लग जाते हैं। ऐसे में प्राय: मैच आपके भरोसे अलग ही परिणाम देता है। उम्मीदों पर जीने वाले इस क्रिकेट प्रेमी देश में लोग हिंसात्मक भी हो जाया करते हैं। उदहारण के तौर पर अनुष्का शर्मा को भारत के विश्वविजेता न बन पाने का कारण बता दिया गया था। मैदान पर खेलते हुए ये खिलाड़ी दुनिया को कुछ पल के लिए भूल जाते हैं और मैदान को ही अपना घर मान लेते हैं। हजारों घंटे के संघर्ष के बाद ये खिलाड़ी इस रैंक तक पहुँचते हैं। जहाँ यही उनका परिवार बन जाता है। ये ऐसा क्षेत्र है जहाँ दिमाग खुद भरोसा कर बैठता है। ऐसे में खिलाड़ी अपनी पर्सनल लाइफ खो देता है।