भारतीय कप्तान विराट कोहली की बल्लेबाजी में कई विविधताएं है, गेंदबाजों को उन्हें आउट करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। 2016 में सभी प्रारूपों में 2595 रन बनाने के लिए उन्हें चारों ओर से तारीफ मिली। उन्होंने वहीं से शुरू करते हुए पुणे में इंग्लैंड के खिलाफ हुए पहले एकदिवसीय मुक़ाबले में 8 चौके और 4 गगनचुंबी छक्कों के साथ 122 रन की पारी खेल डाली। BCCI.TV के लिए पूर्व इंग्लैंड कप्तान नासिर हुसैन के साथ बातचीत करते हुए भारतीय कप्तान ने अपनी बल्लेबाजी शैली और उससे जुड़े विभिन्न पहलुओं पर कुछ दिलचस्प बातें बताई है। 2016 में काफी रन बनाने के सवाल पर भारतीय कप्तान ने कहा “मेरे पैर अधिक हिल नहीं रहे थे, ये कवर और पॉइंट की दिशा में अधिक जा रहे थे। कंधों के मूवमेंट के लिए मेरे पास जगह नहीं होती थी। इन कारणों से शॉट खेलने में देरी हो रही थी। मैंने एक साइड से एंगल के जरीय कदमों के मूवमेंट पर नेट पर काम किया। ऑस्ट्रेलिया में मैंने क्रीज़ से बाहर आकार खेलना शुरू किया, जिससे मेरे पैड पर गेंद न टकराए।“ मान्यताएं यह रही है कि कोहली की फिटनेस अच्छी है इसलिए उनका खेल भी उसी आधार पर अच्छा हुआ है। बल्लेबाजी के दौरान गेंद पर कोहली के बल्ले की स्पीड के बारे में उन्होंने कहा “बल्ले के गति एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। मैं ऑन साइड की बजाय ऑफ साइड में अधिक खेलने का प्रयास करता हूं। इस दौरान मैं बल्ले के ग्रिप का अधिक इस्तेमाल करता हूं और क्रीज़ के काफी अंदर जाकर खेलता हूं” कोहली के स्ट्रोक्स पर यह माना जाता है कि वे गेंद की मेरिट के हिसाब से अपने शॉट चुनते हैं। कोहली ने इस पर कहा “पारंपरिक खिलाड़ियों को पॉइंट, कवर, स्क्वेयर मिडविकेट और स्ट्रेट डाउन इन चार बिन्दुओं के बारे में सोचना होता है। मैं शॉट के बारे में नहीं सोचता, जहां गेंद आती है, मेरा शरीर वहां चला जाता है।“ योर्कर गेंदों को खेलने के बारे में कोहली ने कहा कि हाथ को हल्का रखने से इस प्रकार की गेंदों को खेलने में आसानी रहती है और मैं ऐसा करता हूं। लक्ष्य का पीछा करते हुए सबसे अधिक शतक लगाने वाले भारतीय खिलाड़ी से इस पर जब सवाल किया गया तो उन्होंने कहा "हम अपने गोल निर्धारित करते हैं, इंसान कुछ उपलब्धि हासिल करने की सोचता है। मुझे ऐसा अवसर मिलता है कि कुछ करूँ और मेरे हाथ में है उसके अनुसार स्कोर बोर्ड चलाऊं। लक्ष्य का पीछा करते हुए आपको जो करना है उसके बारे में सोचना होता है। एक गेंदबाज को ध्यान में रखते हुए आगे बढना और खुद पर विश्वास रखना होता है। विपक्षी कप्तान की नजरें होती है कि कब मैं आक्रमण करूंगा। विपक्षी टीम की शारीरिक भाषा देखकर मैं गेम को 2 या 3 ओवर पहले खत्म करता हूं और 300 से अधिक का लक्ष्य हासिल करने में कामयाब रहता हूं।“ इंग्लैंड दौरे में फ्लॉप प्रदर्शन पर कोहली ने कहा कि वे उस समय मानसिक तौर पर तैयार नहीं थे। उनका कहना था कि मानसिक तौर पर कमजोर रहने से प्रदर्शन पर असर पड़ता है। इस दौरे पर वे आउट स्विंग गेंदों पर खासे परेशान हुए थे और कई बार आउट भी हुए।