भारतीय टीम के पूर्व सलामी बल्लेबाज वीरेंदर सहवाग (Virender Sehwag) को अपने समय में तेजतर्रार बल्लेबाजी करने के लिए जाना जाता था। हाल ही में उन्होंने एक बड़ा बयान देते हुए कहा है कि वर्तमान समय में भारतीय टीम में ऐसा कोई भी खिलाड़ी नहीं है जो उनकी तरह बल्लेबाजी करता है।
जब वीरेंद्र सहवाग भारतीय टीम के लिए सलामी बल्लेबाज की भूमिका निभाया करते थे तो उन्होंने तेजतर्रार बल्लेबाजी करके क्रिकेट की दुनिया में एक अलग क्रांति ला दी थी। शुरू से ही गेंदबाजों पर हावी रहते हुए उन्होंने कई सारे रिकॉर्ड भी बनाए हैं। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में उनके नाम दो तिहरे शतक और छह दोहरे शतक दर्ज हैं।
यही कारण है कि आज के समय में जब कोई भी युवा बल्लेबाज तेज स्ट्राइक रेट से रन बनाता है तो उसकी तुलना सहवाग से की जाती है। लेकिन खुद पूर्व दिग्गज सलामी बल्लेबाज का मानना है कि वर्तमान समय में भारत की टीम में ऐसा कोई भी बल्लेबाज नहीं है जो उनकी तरह तेज गति से बल्लेबाजी करता है।
वीरेन्द्र सहवाग ने मौजूदा खिलाड़ियों में पृथ्वी शॉ और ऋषभ पंत को बताया जो उनके खेलने के अंदाज के करीब आये हैं। न्यूज 18 से बातचीत के दौरान सहवाग ने कहा,
मुझे नहीं लगता कि भारतीय टीम में मेरी तरह बल्लेबाजी करने वाला कोई खिलाड़ी है। मेरे दिमाग में जो दो खिलाड़ी आए हैं, वे पृथ्वी शॉ और ऋषभ पंत हैं। मुझे लगता है कि टेस्ट क्रिकेट में मैं जिस तरह की बल्लेबाजी करता था, ऋषभ पंत थोड़ा करीब हैं, लेकिन वह 90-100 से संतुष्ट होता है, पर मैं 200, 250 और 300 का स्कोर करता था और फिर संतुष्ट रहता था। अगर वह अपने खेल को उस स्तर तक ले जाते हैं, तो मुझे लगता है कि वह फैंस का अधिक मनोरंजन कर सकते हैं।
सहवाग ने शतक के करीब जाकर आक्रामक मानसिकता की वजह का खुलासा किया
पूर्व भारतीय ओपनर अक्सर शतक के करीब होने के बावजूद चौके और छक्के लगाने से नहीं डरते थे। अपनी मानसिकता के बारे में बात करते हुए सहवाग ने कहा,
मैं टेनिस बॉल क्रिकेट खेलता था जहां मेरी मानसिकता बाउंड्री के जरिए अधिक रन मारने की थी। मैं अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में एक ही टेम्पलेट के साथ खेलता था और गणना करता था कि मुझे शतक बनाने के लिए कितनी बाउंड्री की आवश्यकता है। अगर मैं 90 पर खेल रहा हूं और 100 तक पहुंचने के लिए अगर मैं 10 गेंद लेता हूं तो विपक्षी के पास मुझे आउट करने के लिए 10 गेंदें होती हैं, यही वजह है कि मैं बाउंड्री के लिए जाता था और मुझे तिहरे अंक के स्कोर तक पहुंचने से रोकने के लिए उनके पास मात्र दो ही गेंदें होती थी। यानी अब जोखिम प्रतिशत दर 100 से गिरकर 20 हो गई।
