1947 के भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद दोनों देशों के बीच रिश्ते तल्ख रहे हैं। इन दोनों मुल्कों में अबतक दो बड़े युद्ध भी हो चुके हैं। ऐसे चीजों को बेहतर बनाने में ये विश्वकप काफी अहम साबित हो सकता था। कल्पना करिए भारत 1996 के विश्वकप को अगर पाकिस्तान की मिटटी पर जीत जाता। तो भीड़ बेकाबू हो सकती थी। जिसका कुछ हिस्सा लड़ाई पर भी उतर आता। ऐसे में इस मौके पर लोगों का दिल जीतने के लिए तत्कालीन पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो इस मौके को भुना सकती थीं। वह भी किसी पाकिस्तानी की तरह अपने चिरप्रतिद्वंदी के चैंपियन बनने पर इस मौके को और खराब बना सकती थीं। इसके लिए वह गद्दाफी स्टेडियम को भारत को सौंप देती। जिससे अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिटी में उनका भारत विरोध एक बार फिर सबके सामने आ जाता। इसकी व्याख्या में वह ये कह सकती थीं कि वह अपने पड़ोसी मुल्क की इस जीत को नहीं बर्दाश्त नहीं कर सकती हैं। ऐसे में उस मिटटी को वह अपने देश में कैसे रख सकती हैं। जिसपर उनका पड़ोसी विश्व चैंपियन बन गया। साथ ही वह इस मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय फोरम में भी उठाती।