क्या होता अगर सौरव गांगुली की अगुवाई में वर्ल्डकप 2003 का चैंपियन भारत बन जाता ?

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कभी-कभी लगता है कि काश ज़िन्दगी में भी रिवाइंड बटन होता और हम अपने बीते पलों को बेहतर तरीके से जी लेते। खासकर खेलों की दुनिया में इस बात का मलाल हमेशा रहता है कि अगर हम ऐसा करते तो ऐसा हो जाता। फैन्स अक्सर ऐसी बातों को लेकर चाय की दूकान, बार और कैफे में चर्चा करते रहते हैं। साल 2003 के विश्वकप फाइनल में भारतीय फैन्स के दिल उस वक्त टूट गये थे, जब टीम इंडिया 20 साल बाद विश्वकप ख़िताब से मात्र एक कदम दूर रह गयी थी। उस टीम में हमारे सभी चहेते क्रिकेटर गांगुली, सहवाग, द्रविड़ और सचिन शानदार फॉर्म में थे। ये एक पीढ़ी की टीम थी। अगर उस वक्त ये मैच भारत के फेवर आ जाता तो क्या होता, अगर सचिन फैन्स के भरोसे पर खरे उतरते तो क्या होता, क्या होता अगर भारतीय खिलाड़ी पॉन्टिंग को 121 गेंदों में 140 रन से पहले ही आउट कर देते, जिसकी वजह से ऑस्ट्रेलिया ने इस मैच में 2 विकेट पर 359 का लक्ष्य रखा था। बतौर भारतीय फैन्स हम केवल कयास लगा सकते हैं साथ ही क्रिकेट ऐसा खेल है, जिसमें हम कुछ कल्पना भी सकते हैं। यहां हम उस मैच के परिणाम पर कयास लगाते हुए अपनी संभावनाओं को आपके सामने रख रहे हैं, जो कुछ इस तरह हैं:

#1 ऑस्ट्रेलिया की वनडे में बादशाहत न शुरू होती

ऑस्ट्रेलिया की टीम का जलवा विश्व क्रिकेट में 1999 में ही शुरू हो गया था। साल 2003 में उन्होंने लगातार दूसरी बार खिताबी जीत हासिल की थी। इसलिए ऑस्ट्रेलियाई टीम इस प्रारूप में सब पर भारी साबित हो रही थी। इसके बाद साल 2007 में इस टीम ने लगातार तीसरी बार वर्ल्डकप ख़िताब पर कब्जा करके सबको हैरान कर दिया। अगर भारत 2003 में जीत हासिल करता तो ऑस्ट्रेलिया की जीत का सिलसिला थम जाता। जो उनके 20 साल के वर्चस्व को भी खत्म कर देता। #2 गांगुली और द्रविड़ का भी होता वर्ल्डकप wall-1473331131-800 सभी क्रिकेट फैन अपने चहेते खिलाड़ी के हाथ में विश्वकप की ट्राफी जरुर देखना चाहते हैं। खासकर प्रिंस ऑफ़ कोलकाता सौरव गांगुली और भारतीय क्रिकेट की दीवार राहुल द्रविड़ के फैन्स तो ये जरुर चाहते थे। ऐसी ही इच्छा सभी क्रिकेटरों की भी होती है। ये साल इन दोनों बड़े खिलाड़ियों के लिए यादगार साल बन जाता। अगर टीम 234 रन पर आलआउट न हो जाती। इस जीत से गांगुली भारत के सबसे सफल कप्तानों में शुमार हो जाते। हालाँकि मीडिया तब भी उन्हें भारत का सबसे सफल कप्तान मानती थी। लेकिन ये लम्हा उनके जीवन का सबसे यादगार लम्हा साबित होता। #3 बतौर कोच जॉन राईट का कार्यकाल और बढ़ जाता john-wright-1473331225-800 न्यूजीलैंड के दिग्गज बल्लेबाज़ जॉन राईट ने साल 2000 से 2005 तक अपने सबसे सफल कोचिंग करियर का लुत्फ़ उठाया। 2003 में टीम इंडिया विश्वकप के फाइनल में पहुंची थी। लेकिन फाइनल की हार ने टीम में बड़ा बदलाव किया। अगर टीम ख़िताब जीत जाती तो जॉन के करियर की बड़ी उपलब्धि होती। ऐसे में हो सकता था कि ग्रेग चैपल भारत के कोच कभी न बन पाते। #4 जवागल श्रीनाथ कुछ साल और खेलते javagal-srinath-1473331313-800 2003 के वर्ल्डकप में मिली हार ने भारत के अबतक के सबसे बेहतरीन तेज गेंदबाज़ श्रीनाथ के कड़वी यादों की तरह है। इसके बाद श्रीनाथ ने संन्यास ले लिया था। इस मैच में वह अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए थे। ऑस्ट्रेलिया बल्लेबाजों ने उनके 10 ओवर में 87 रन बनाये थे। खराब गेंदबाज़ी भारत की हार की पहली वजह थी। उसके बाद दूसरी वजह सचिन का जल्दी आउट हो जाना था। श्रीनाथ ने अपने पूरे वनडे करियर में 300 से ज्यादा विकेट लिए थे। #5 एमएस धोनी को जल्द मौका न मिलता msd-1473331402-800 पार्थिव पटेल साल 2003 के विश्वकप टीम में भारत के बतौर विकेटकीपर बल्लेबाज़ शामिल किए गये थे। लेकिन पूरे टूर्नामेंट में पटेल के बजाय द्रविड़ ने कीपिंग की थी। ऐसे में अगर टीम इंडिया फाइनल जीत जाती तो धोनी जो छोटे शहर से ताल्लुक रखते हैं उन्हें इंतजार करना पड़ता। एक आदमी का नुकसान दूसरे के लिये फायदा भी बन सकता है। दुर्भाग्य से भारत 2003 के विश्वकप हार गया था। उसके बाद टीम इंडिया पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया से दो लगातार सीरीज हार गयी। जिससे बोर्ड भी निराश था। लेकिन सबसे खराब दौर तब शुरू हुआ जब नए कोच ग्रेग चैपल और गांगुली के मतभेद सुर्खियाँ पाने लगे। इस दौरान धोनी ने टीम में जगह पायी और शानदार खेल अपना जारी रखा। उसके बाद धोनी को कप्तानी भी मिल गयी। शुरूआती मैचों की सफलता के बाद धोनी ने स्पीड पकड़ ली और कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। हालाँकि अब चाहे हम कुछ कर लें लेकिन समय पीछे नहीं जा सकता। हमारी सारी कोशिशें बेकार हैं। वैसे एक बात जो खास है, वह है भारत ने साल 2011 में वर्ल्डकप में ऑस्ट्रेलिया को क्वार्टरफाइनल में हराकर ख़िताब पर कब्जा किया। लेखक-ईषा नंदराज, अनुवादक-जितेन्द्र तिवारी