क्रिकेट में गेंद से सिर और मुंह को बचाने के लिए हेलमेट का प्रयोग किया जाता है और समय-समय पर इसकी क्वालिटी को लेकर जांच भी हुई है और बदलाव भी किये गए हैं। पैस्टी हेंड्रेन पहले खिलाड़ी थे जिन्होंने 1930 में खुद से डिजाइन की हुई हैट का इस्तेमाल किया था। 1970 तक हेलमेट का इस्तेमाल चलन में नहीं था। वर्ल्ड सीरीज क्रिकेट में पहली बार हेलमेट देखा गया जिसे डेनिस एमिस ने पहना था और उन्हें लगातार ऐसा करते हुए देखा गया। हालांकि यह मोटरसाइकिल का मोडिफाइड हेलमेट था।
इंग्लैंड के पूर्व टेस्ट कप्तान टोनी ग्रेग का मानना था कि गेंदबाजों को ज्यादा बाउंसर फेंकने के लिए प्रेरित करना बल्लेबाजों के लिए घाटे का सौदा हो सकता है। 17 मार्च 1978 को पहली बार प्रोटेक्टिव हेलमेट पहना गया और इसे पहनने वाले खिलाड़ी का नाम ग्राहम यैलोप था जो ऑस्ट्रेलिया से आते थे। वेस्टइंडीज के खिलाफ ब्रिजटाउन में उन्होंने ऐसा किया था। इसके बाद इंग्लैंड के डेनिस एमिस ने इसे लोकप्रिय बना दिया। इसके बाद हेलमेट पहनने का चलन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में शुरू हो गया।
विवियन रिचर्ड्स ने 1991 में क्रिकेट से संन्यास लिया था लेकिन उन्होंने उच्च स्तर (टेस्ट क्रिकेट) में कभी हेलमेट नहीं पहना था। वही अंतिम बल्लेबाज थे जिन्होंने ऐसा किया। उनके बाद और उनके साथ के सभी खिलाड़ी हेलमेट का प्रयोग करने लगे थे।
पहले हेलमेट में मुंह की सुरक्षा के लिए जाली नहीं होती थी लेकिन बाद में आईसीसी ने सेफ्टी स्टैंडर्ड जारी करते हुए जाली वाले हेलमेट को अनिवार्य किया और उसकी भी क्वालिटी चेक की जाने लगी। सामने की तरह लगी जालीदार ग्रिल स्टील टाइटेनियम और कार्बन फाइबर से बनी होती है। अंदर की तरफ फोम लगा होता है ताकि गेंद हेलमेट से तकराए तो अंदर से बल्लेबाज को किसी प्रकार से चोट नहीं लगे।
कुछ समय बाद आईसीसी ने पीछे की तरफ गर्दन की सेफ्टी के लिए भी हेलमेट को लेकर नियम जारी किये। उन मानकों पर खरा उतरने वाले हेलमेट की जांच टेस्टिंग भी होती है। इंग्लैंड में कुछ साल पहले प्रथम श्रेणी क्रिकेट में 8 गज की दूरी तक के सभी फील्डरों और विकेटकीपर को हेलमेट पहनना अनिवार्य किया था। हालांकि भारत और न्यूजीलैंड में ऐसा नहीं है।