क्रिकेट के मैदान पर मैदानी अम्पायरों से कई बार गलतियाँ होते देखी गई है क्योंकि उनके पास प्रतिक्रिया देने के लिए कम समय होता है और निर्णय भी देना होता है। अम्पायर की गलतियों को कम करने के उद्देश्य से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में तीसरे अम्पायर यानी थर्ड अम्पायर का कॉन्सेप्ट लागू किया गया था। वह मैदान पर हुए घटनाक्रम को टीवी पर रिप्ले में देखकर अपना निर्णय देता है और इसमें मैदानी अम्पायर से हुई गलती को भी सुधार लिया जाता है।
श्रीलंका के पूर्व घरेलू क्रिकेटर महिंदा विजयसिंघे ने थर्ड अम्पायर की परिकल्पना की थी और इसे मान लिया गया। सबसे पहले इसे टेस्ट क्रिकेट में लागू किया गया था। सबसे पहले 1992 में दक्षिण अफ्रीका और भारत के बीच टेस्ट मैच के दौरान थर्ड अम्पायर का नियम लागू किया गया था। कार्ल लिबेनबर्ग मुकाबले में तीसरे अम्पायर की भूमिका में थे और मैदानी अम्पायर सिरिल मिचली थे। भारतीय बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर को तीसरे अम्पायर ने रन आउट करार दिया था। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में थर्ड अम्पायर द्वारा आउट दिए जाने वाले पहले बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर हैं। टेस्ट मैच के दूसरे दिन 11 रन के निजी स्कोर पर सचिन तेंदुलकर आउट होकर पवेलियन लौट गए।
आईसीसी एलिट पैनल के अम्पायरों को थर्ड अम्पायर नियुक्त किया जाता है। जहाँ भी DRS का इस्तेमाल हो रहा होता है, वहां खेलने वाले दोनों देशों के अलावा किसी अन्य देश के अम्पायर को तीसरे अम्पायर के रूप में नियुक्त किया जाता है। कोरोना वायरस महामारी में इस नियम को बदल दिया गया।
जहाँ डीआरएस का इस्तेमाल नहीं होता है, वहां मैच आयोजित कराने वाले देश का क्रिकेट बोर्ड तीसरे अम्पायर को नियुक्त करता है। हालांकि अभी डीआरएस हर टेस्ट देश लागू कर चुका है, ऐसे में यह मामला देखने को नहीं मिल रहा।
तीसरे अम्पायर के पास अभी काफी शक्तियां होती है। मैदानी अम्पायर के निर्णय को डीआरएस लेने पर वह बदल सकता है। इसके अलावा गेंदबाज की नो बॉल पर भी थर्ड अम्पायर नजर रखता है। ऊँचाई की गेंदों और उन पर हुए कैच को करीब से देखने के बाद तीसरा अम्पायर अपना निर्णय लेता है। थर्ड अम्पायर के आने से फैसलों में ज्यादा बेहतरी देखी गई है।