अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में शुरुआत से ही रेड बॉल से क्रिकेट खेला जाता रहा है और यह आज भी जारी है। टेस्ट क्रिकेट को रेड बॉल के नाम से ही जाना जाता है। हालांकि समय के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में और रंग की गेंदों का इस्तेमाल भी किया जाने लगा। रेड बॉल के बाद सफेद गेंद के साथ भी क्रिकेट खेला जाने लगा। हालांकि एकदिवसीय क्रिकेट भी पहले रेड बॉल से ही खेला जाता था।
क्रिकेट के सभी प्रारूप 1977 से पहले रेड बॉल के साथ ही खेले जाते थे। इसके बाद सफेद गेंद का इस्तेमाल किया गया। सफेद गेंद को पहली बार वर्ल्ड सीरीज क्रिकेट में पेश किया गया था जिसे केरी पैकर ने 1977 में ऑस्ट्रेलिया में शुरू किया था। विश्व श्रृंखला के बाद, सफेद गेंदें और रंगीन कपड़े एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैचों का हिस्सा बन गए। सफेद गेंद और रंगीन कपड़ों में वनडे क्रिकेट को ज्यादा लोकप्रियता मिली लेकिन कई मौकों पर रेड बॉल गेंद के साथ भी क्रिकेट खेला जाता रहा।
भारतीय टीम ने 1983 का वर्ल्ड कप रेड गेंद के साथ जीता था। पहले वनडे मैच ज्यादातर दिन में होते थे इसलिए रेड बॉल से खेले जाते थे। बाद में डे-नाईट मैचों के आने से सफेद गेंद क्रिकेट होने लगा। लाईट में सफेद गेंद अच्छी तरह दिखती है इसलिए इसका इस्तेमाल किया जाने लगा।
हालांकि भारतीय टीम ने बीच में रेड बॉल और सफेद बॉल दोनों से वनडे मैच खेले हैं। भारत में अंतिम बार रेड बॉल के साथ वनडे मैच जिम्बाब्वे के खिलाफ दिसम्बर 2000 में हुआ था। जिम्बाब्वे की टीम पांच मैचों की सीरीज के लिए भारत आई थी। इसमें वह मैच भी शामिल है जब जोधपुर में जहीर खान ने हेनरी ओलंगा की चार गेंदों पर लगातार चार छक्के जमाए थे। इसके बाद सफेद गेंद से वनडे और टी20 क्रिकेट होता है। क्रिकेट के नियम बनाने वाली संस्था मेरिलबोन क्रिकेट क्लब ने 2009 में डे-नाईट टेस्ट मैचों के लिए पिंक बॉल का प्रयोग किया और अब डे-नाईट टेस्ट मैचों में इसका इस्तेमाल होता है।