भारत में फर्स्ट क्लास क्रिकेट यानी रेड बॉल क्रिकेट को रणजी ट्रॉफी (Ranji Trophy) के नाम से जाना जाता है। काफी लम्बे समय से इस टूर्नामेंट का आयोजन होता आ रहा है। इसमें खेलने के बाद अपने बेहतरीन प्रदर्शन के बल पर भारतीय टीम में कई टेस्ट खिलाड़ी आए और अपने कौशल का प्रदर्शन किया। हालांकि कई खिलाड़ी ऐसे भी रहे जिनको रणजी ट्रॉफी में बेहतरीन खेल के बाद जगह नहीं मिली।
इन सबके बीच एक सवाल हर किसी के मन में आता होगा कि टूर्नामेंट का नाम रणजी ट्रॉफी के नाम से क्यों जाना जाता है। इसके पीछे भी एक कहानी है। टूर्नामेंट को पहली बार 1934 में लॉन्च किया गया था और मुकाबले 1934-35 में खेले गए। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने वाले पहले भारतीय क्रिकेटर रणजीतसिंह जी के नाम पर टूर्नामेंट रखा गया। उनको रणजी भी कहा जाता था। वह भारत के प्रिंसली स्टेट नावनगर (अब जामनगर) के रुलर थे। ऑल टाइम बल्लेबाजों में से महान में उनका नाम गिना जाता है। वह इंग्लैंड क्रिकेट टीम के अलावा काउंटी क्रिकेट ससेक्स के लिए भी खेले थे।
पहले खिलाड़ी पुश के लिए आगे जाकर खेलते थे लेकिन रणजी ने पिचों में सुधार का फायदा उठाते हुए डिफेन्स और आक्रमण दोनों के लिए पीछे जाकर खेलने की प्रवृत्ति अपनाई। वह लेग ग्लांस ज्यादा खेला करते थे। इस शॉट को लोकप्रिय बनाने में उनका अहम योगदान रहा।
टेस्ट क्रिकेट में रणजी ने इंग्लैंड के लिए ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ डेब्यू किया और 15 मैचों में 989 रन बनाए। इस दौरान उन्होंने 2 शतक और 6 अर्धशतक जमाए। इसके विपरीत फर्स्ट क्लास क्रिकेट में उनका रिकॉर्ड काफी धाकड़ रहा। फर्स्ट क्लास क्रिकेट में रणजी ने 307 मैच खेले और 24692 रन बनाए। उनके बल्ले से 72 शतक और 109 अर्धशतक आए। नाबद 285 रन उनका उच्च स्कोर रहा। इसके अलावा उन्होंने गेंदबाजी में 133 विकेट भी हासिल किये। इस धाकड़ प्रदर्शन के कारण ही भारतीय फर्स्ट क्लास टूर्नामेंट का नाम रणजी ट्रॉफी रखा गया। इंग्लैंड के लिए खेलने के बाद वह वापस भारत आ गए। 1890 में उन्होंने क्रिकेट खेलने के लिए इंग्लैंड का रुख किया था क्योंकि भारत ने पहला टेस्ट 1932 में खेला था। रणजी का जन्म 1872 में हुआ और निधन 1933 में होने के बाद रणजी ट्रॉफी को उनके नाम पर रखा गया।