अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में देखा जाता है कि अंपायर का निर्णय सर्वमान्य होता है। खिलाड़ी भी उनका फैसला मानने के लिए बाध्य होते हैं। अगर खिलाड़ी अंपायर का निर्णय नहीं मानते, तो उनको परिणाम भी भुगतने पड़ते हैं। कई मौकों पर ऐसा देखने को मिला है जब खिलाड़ियों को सज़ा मिली है।
आईसीसी के अंपायरों से सम्बंधित बनाए गए नियमों के आर्टिकल 42.1 से लेकर 42.6 में लेवल 1 से 4 तक के अपराधों को लेकर सज़ा पर प्रावधान है। खिलाड़ी के किसी भी अस्वीकार्य आचरण पर अंपायर कार्रवाई करेंगे। इसमें किसी भी तरह की अस्वीकार्यता, मैदान पर बर्ताव और गुस्से में किसी कार्य को अंजाम देने जैसी तमाम बातों को शामिल किया गया है। जितना गंभीर कृत्य खिलाड़ी करता है, सज़ा भी उसी के अनुरूप तय की गई है।
मैदान पर अंपायर को नियमों के अंतर्गत किसी भी तरह का फैसला लेना का अधिकार होता है। मैदान पर खेल को सुचारू रूप से चलाने की पूरी जिम्मेदारी के निर्वहन के लक्ष्य को लेकर अंपायर चलते हैं। हालांकि अंपायरों से भी गलती होती है लेकिन खिलाड़ी उनके निर्णय पर असंतोष नहीं जता सकते और उनको फैसला मानना होता है।
हालांकि अंपायरों के प्रदर्शन का आंकलन आईसीसी करती है। खराब प्रदर्शन करने वाले अंपायरों को एलिट पैनल से निकालने का काम भी आईसीसी का होता है। ऐसा देखा भी गया है जब आईसीसी ने अंपायरों को बाहर किया है।
साल 2006 में द ओवल में पाकिस्तान और इंग्लैंड के बीच मुकाबला खेला जा रहा था। इसके चौथे दिन मैदानी अंपायरों ने पाकिस्तानी टीम पर बॉल टेम्परिंग के आरोप लगाए। चाय के विश्राम के बाद पाकिस्तानी खिलाड़ियों ने फैसले के विरोध में मैदान पर उतरने से इनकार कर दिया। अंपायरों ने मैदान छोड़ दिया, पाकिस्तानी खिलाड़ियों को गेम फिर से शुरू करने का निर्देश दिया, उनको 15 मिनट का समय दिया गया। दो मिनट और इंतजार करने के बाद अंपायरों ने बेल्स हटा दी और इंग्लैंड को विजेता घोषित कर दिया। इस तरह अंपायरों ने अपनी शक्तियों का उपयोग किया।