आगामी दक्षिण अफ्रीका के दौरे के लिए घोषित टीम इंडिया में पार्थिव पटेल को भी जगह दी गई है। इस तरह से पार्थिव पटेल की एक साल बाद फिर से टीम में वापसी हुई है। इससे पहले उन्हें पिछले वर्ष इंग्लैंड के खिलाफ मोहाली टेस्ट मैच में टीम के नियमित विकेट कीपर ऋृद्धिमान साहा के चोटिल होने के कारण खेलने का मौका मिला था। उस मैच में उन्होंने दोहरी जिम्मेदारी निभाई थी, उन्होंने विकेट कीपिंग के अलावा टीम के लिए सलामी बल्लेबाज़ की भी भूमिका निभाई थी। इस मैच में विकेट के पीछे तो उन्होंने प्रभावित किया ही, ओपनर के तौर पर भी कम प्रभावित नहीं किया। इस टेस्ट की पहली पारी में जहां उन्होंने 42 रन बनाये, वहीं दूसरी पारी में उन्होंने 67 रनों की तेज तर्रार पारी खेली और टीम की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अच्छे प्रदर्शन के बाबजूद उन्हें अगले मैच में ऋृद्धिमान साहा के फिट हो जाने के कारण टीम से बाहर जाना पड़ा। प्रतिभा के धनी पार्थिव पटेल की हुनर को विशेषज्ञों के साथ-साथ चयनकर्ताओं ने भी बड़ी जल्दी पहचान लिया था। मात्र 17 वर्ष 153 दिन की छोटी सी आयु में ही उन्हें भारतीय टीम की ओर से खेलने का अवसर मिल गया। 8 अगस्त 2002 को जब इंग्लैंड के खिलाफ टेंट ब्रिज में उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण किया तो पाकिस्तान के हनीफ मोहम्मद का रिकॉर्ड तोड़कर वो टेस्ट मैच खेलने वाले सबसे युवा विकेटकीपर बन गए। इस मैच में विकेट के पीछे अपनी प्रतिभा दिखाने के बाद उन्होंने बल्ले से भी अपना रंग जमाया। संकट में फंसी भारतीय टीम को अपनी जुझारू पारी के दम पर हार के मुंह में जाने से बचाकर मैच ड्रॉ कराया और टीम में अपनी जगह स्थापित कर ली। पार्थिव पटेल को सन 2008 में टीम से ड्रॉप कर दिया गया। उनको टीम से बाहर किये जाने की वजह थी उनके करियर में आया एक बहुत खराब दौर, जब अचानक ही उनकी विकेट कीपिंग का स्तर गिर गया। खास तौर पर कैचिंग का स्तर, उस समय स्थिति ये हो गई कि मुश्किल ही नहीं आसान से कैच भी उनसे छूटने लगे। उनकी खराब कीपिंग का खामियाजा कई बार टीम को भी उठाना पड़ा। लेकिन रोचक बात ये थी उनकी खराब कीपिंग का उनकी बल्लेबाजी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, उन्होंने बल्ले से कई अच्छी पारियां खेलकर उसकी भरपाई भी की। लेकिन आखिरकार खराब विकेट कीपिंग उन्हें ले ही डूबी। इस होनहार खिलाड़ी को टीम से बाहर का रास्ता देखना पड़ा। उसके बाद धोनी युग की शुरुआत हो गई और सभी को पता है कि विकेट कीपिंग के अलावा अपनी कप्तानी और बल्लेबाजी से धोनी ने अन्य सभी विकेटकीपर के टीम इंडिया में जगह बनाने के सपने को तोड़ दिया। वैसे कभी दूसरे विकेटकीपर की आवश्यकता भी पड़ी तो अच्छे प्रदर्शन के चलते चयनकर्ताओं ने दिनेश कार्तिक को ही प्राथमिकता दी। नतीजा ये हुआ कि कभी टीम के स्थायी सदस्य रहे पार्थिव गुजरे जमाने की बात लगने लगे। धोनी युग के बाद ऋृद्धिमान साहा टेस्ट टीम के लिए चयनकर्ताओ की पहली पसंद बन गए। जिससे धोनी के संन्यास के बाद खाली हुई जगह लेने की उनकी तमन्ना अधूरी रह गई। हालांकि सन 2011-12 मे उन्हें वन-डे और टी 20 मैच खेलने के कुछ अवसर जरूर मिले, लेकिन टेस्ट टीम में जगह बनाने के लिए उन्हें 8 साल और 83 मैचों का लंबा इंतजार करना पड़ा। लेकिन इस मैच में किया गया अच्छा प्रदर्शन भी उनकी टीम में जगह पक्की नहीं कर सका। अब सवाल ये है कि क्या दक्षिण अफ्रीका में पार्थिव पटेल को खेलने का अवसर मिलेगा? अभी तो उनका प्लेइंग-XI में जगह बना पाना मुश्किल लग रहा है, हां अगर साहा किसी कारणवश नहीं खेल पाए, तभी उनकी टीम में जगह बन सकती है। उससे भी बड़ा सवाल ये है कि क्या अफ्रीकी दौरे के बाद भी पार्थिव की टीम में जगह बरकरार रह पाएगी, या उन्हें पिछली साल की तरह फिर टीम से बाहर का रास्ता देखना होगा? ये ध्यान में रखते हुए कि इंग्लैंड के खिलाफ अच्छे प्रदर्शन के बाबजूद भी वो टीम में अपनी जगह नहीं बचा पाए, इसकी ज्यादा सम्भावना तो नहीं लगती कि इस दौरे के बाद भी उन्हें टीम में बरकरार रखा जाएगा। इसकी वजह है कि उनकी टीम में जगह या तो विकेट कीपर के तौर पर बन सकती है या फिर बल्लेबाज के तौर पर। इन स्थानों पर अभी कोई जगह खाली नहीं है। लेकिन हां अगर आगे चलकर विकेटकीपर साहा या कोई बल्लेबाज किसी कारणवश टीम से बाहर जाते हैं, तब जरूर पार्थिव टीम में वापसी कर सकते हैं। हां वनडे में धोनी के संन्यास के बाद टीम में उनकी जगह बन सकती है। लेकिन इसके लिए भी उन्हें दिनेश कार्तिक, ऋृद्धिमान साहा, ऋषभ पन्त, संजू सैमसन जैसे खिलाड़ियों से कड़ी टक्कर लेनी होगी। पार्थिव अब अनुभवी तो हैं ही, उम्र भी अभी उनके साथ है। यानी उन्हें टीम में वापसी की आस नहीं छोड़नी चाहिए, पार्थिव के पक्ष में एक और बात जाती है कि वो टीम की जरूरत के हिसाब से ओपनिंग से लेकर नम्बर 8 तक कहीं भी बल्लेबाजी करने में सक्षम हैं। जिसके कारण भविष्य में उनके टीम में वापसी करने के अच्छे आसार हैं।