क्या वनडे में हो पाएगी आर अश्विन की वापसी ?

टेस्ट क्रिकेट में सबसे तेज़ 300 विकेट लेकर चर्चा में आए भारतीय ऑफ स्पिनर रविचंद्रन अश्विन एकदिवसीय और टी-20 मैचों में जगह नहीं बना पा रहे हैं। आलोचक तो दूर अब प्रशंसक भी इस सवाल को हवा देने लगे हैं कि क्या अश्विन का एकदिवसीय और टी-20 करियर समाप्त हो गया ? क्या अब भारतीय एकदिवसीय टीम में उनकी वापसी के सारे दरवाजे बंद हो चुके हैं ? यह सवाल उठना भी जायज है क्योंकि बीते कुछ महीनों में एकदिवसीय टीम के चयन के दौरान लगातार अश्विन को नजरअंदाज किया जा रहा है। दुनिया के सबसे कामयाब गेंदबाजों में शुमार मुथैया मुरलीधरन और शेन वॉर्न से तारीफ बटोर चुके अश्विन को जनवरी 2018 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 6 एकदिवसीय टीम में शामिल नहीं किया गया था। अब इंग्लैंड के खिलाफ आगामी एकदिवसीय और टी-20 टीम में भी अश्विन को जगह नहीं मिल पाई है। दरअसल, भारतीय टीम में जब से कुलदीप यादव और युजवेंद्र चहल की जोड़ी शामिल हुई है ऑफ स्पिनरों की शामत आ गई। अश्विन भी उसी लहर के शिकार होते मालूम पड़ रहे हैं। कई दिग्गजों ने भी इस आशंका पर हामी भरी है। कुलदीप और चहल लगातार बेहतर कर रहे हैं ऐसे में अश्विन के टेस्ट प्रदर्शन उन्हें एकदिवसीय टीम में जगह दिलाने के लिए नाकाफी हैं। दिग्गजों का मानना है कि अश्विन को टीम में शामिल न करने के दो ही कारण हो सकते हैं या तो टीम को कोई उम्दा विकल्प मिल गया हो या अश्विन कप्तान के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पा रहे।

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आईपीएल 2010 में उम्दा प्रदर्शन ने बनाई राह

आईपीएल 2010 में शानदार प्रदर्शन के बाद ही उन्हें 5 जून को 2010 में श्रीलंका के खिलाफ पहले एकदिवसीय में खेलने का मौका मिला था। इसके बाद उन्होंने शुरुआती दस महीनों में नौ एकदिवसीय मैच खेले जिसमें 23.22 की औसत और 4.86 के इकॉनमी रेट से उनके खाते में 18 विकेट जुड़ गए। इसी दौरान 2011 का विश्व कप भी आया। इसके क्वार्टर फाइनल में अश्विन ने रिकी पॉन्टिंग और शेन वॉटसन का विकेट लेकर भारतीय टीम के लिए जीत का रास्ता साफ किया।

2011 से 2013 तक अश्विन का सुनहरा काल

विश्व कप के बाद 2011 से 2013 तक आर अश्विन ने अपने प्रदर्शन को एक नए आयाम तक पहुंचाया। इन दो सालों में तमिलनाडु के इस गेंदबाज ने 33.95 के औसत से 56 विकेट अपने नाम किए। इस दौरान उनकी इकॉनमी रेट घटकर 4.76 तक पहुंच गई थी जिससे वह आईसीसी एकदिवसीय रैंकिंग मे बड़ी छलांग के साथ आठवें पायदान पर काबिज हो गए। यह वही सुनहरा दौर था जब एकदिवसीय और टी-20 में भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी का प्रमुख हथियार अश्विन हुआ करते थे। जब भी विकेट चटकाने की जरूरत होती धोनी, अश्विन को गेंद थमाते और उन्हें कामयाबी भी मिलती। इस काल में ही उन्होंने भारत को 2013 में इंग्लैंड में हुई चैंपियंस ट्रॉफी जिताने में अहम भूमिका निभाई थी। आगे भी अश्विन का शानदार खेल जारी रहा। 2013 से 2015 के बीच उन्होंने 33.52 के औसत से 59 विकेट हासिल किए। इस दौरान उन्होंने 4.93 के इकॉनमी रेट से गेंदबाजी की। तब तक मुहाने पर 2015 का विश्व कप खड़ा था। इसमें भी उन्होंने अपने खेल से कप्तान और देश का मान बढ़ाया। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सेमी फाइनल मुकाबले में जहां सभी गेंदबाजों की खूब धुनाई हुई अश्विन के स्पेल ने धोनी को राहत पहुंचाई थी। उन्होंने 10 ओवर में 42 रन देकर एक विकेट झटके थे।

2015 के बाद हुई बुरे दौर की शुरुआत

अश्विन के एकदिवसीय और टी-20 में बुरे दौर की शुरुआत 2015 मे हुए विश्व कप के बाद से हुई। इसके बाद उनके प्रदर्शन में गिरावट को देखते हुए उन्हें काफी कम मौके दिए जाने लगे। विश्व कप और इसी साल जुलाई में वेस्टइंडीज दौरे तक भारत ने 38 एक दिवसीय मैच खेले लेकिन अश्विन को केवल 15 मैच ही खेलने का मौका मिला। इन मैचों में उन्होंने 40.58 के औसत से महज 17 विकेट हासिल किए। अब वह उतने किफायती भी नहीं रहे थे। उनकी इकॉनमी भी बढ़कर 5.36 पहुंच गई थी। इसमें इस साल हुई चैंपियंस ट्रॉफी भी शामिल हैं जिसमें उन्होंने 5.75 की इकॉनमी से सिर्फ एक विकेट अपने नाम किए थे। इस दौरान भी हालांकि अश्विन ने एक दो मैचों में निर्णायक भूमिका निभाई थी। यह चर्चा भी जोरों पर थी कि उनके प्रदर्शन में निरंतरता की कमी के कारण चयनकर्ताओं ने उन्हें वेस्टइंडीज दौरे के बाद बाहर का रास्ता दिखा दिया था।

कुलदीप, युजवेंद्र और अक्षर ने रोका रास्ता

अश्विन को एकदिवसीय में मौका नहीं मिलने का एक बड़ा कारण टीम में उनसे उम्दा प्रदर्शन करने वाले स्पिनरों का मौजूद होना भी है। कुलदीप यादव, युजवेंद्र चहल और अक्षर पटेल जैसे युवा स्पिनरों ने अपने प्रदर्शन से चयनकर्ताओं को आकर्षित किया है। यही कारण है कि लगभग दो साल पहले जहां अश्विन के बिना भारतीय टीम अधूरी मानी जाती थी वहीं आज टीम में जगह बनाने के लिए उन्हें सोचना पड़ रहा है। आलम यह हो चला है कि कुलदीप और चहल की जोड़ी के आगे अश्विन की पूछ ही खत्म हो गई है। अगर इन तीनों गेंदबाजों के आंकड़े को अश्विन से तुलना करें तो वे इस ऑफ स्पिनर से काफी आगे दिखते हैं। जहां अश्विन ने 15 मैचों में 40.58 की औसत से 17 विकेट चटकाए वहीं चहल ने अब तक 23 मैचों में 21.84 की औसत से 43 विकेट अपनी झोली में डाले हैं। कुलदीप ने भी 20 मैचों में 20.03 की औसत से 39 विकेट झटके हैं। अक्षर का प्रदर्शन भी अश्विन के मुकाबले काफी बेहतर है। वे अब तक 38 मैचों में 31.31 की औसत से 45 विकेट ले चुके हैं। इन तीनों की एक और जो सबसे खास बात है वह है इकॉनमी जो पांच से कम है। इन तीनों की गेंदबाजी रणनीति भी अश्विन से अलग है।

चौके-छक्के लगते ही अश्विन की धार हो जाती है कुंद

आपने अकसर ही देखा होगा कि जहां अश्विन के गेंदों की धुनाई शुरू होती है वे दबाव में आ जाते हैं। वे विकेट चटकाने की रणनीति को भूलकर रन बचाने में लग जाते हैं। इस कारण कई दफा वे रन तो बचा लेते लेकिन विकेट हासिल करने में नाकाम हो जाते हैं। वहीं दूसरी तरफ कुलदीप, चहल और अक्षर की तिकड़ी रनों से बेपरवाह लगातार आक्रमण करती रही है जिसके कारण उन्हें मारना बल्लेबाजों के लिए आसान नहीं होता। चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल मुकाबले में यही देखने को मिला था जब अश्विन ने 10 ओवर में 70 रन दे दिए थे। उस तिकड़ी के दबाव में न आने का एक कारण यह भी हो सकता है कि उन्होंने आईपीएल में काफी अनुभव प्राप्त किया है। जहां लगातार छक्के और चौकों से बल्लेबाज गेंदबाजों का स्वागत करते हैं। यादव और चहल तो किसी भी टीम के लिए आईपीएल में पहले पसंद बनते जा रहे हैं।

अश्विन के प्रदर्शन में गिरावट के पीछे क्या है कारण

अश्विन को एकदिवसीय में फेल होते देख आश्चर्य होता है। यही वो प्रारूप है जिसने अश्विन को नाम और शोहरत दिलाई। टेस्ट में तो वो एक दिवसीय खेलने के लगभग एक साल बाद आए लेकिन तब तक अपने प्रदर्शन की बदौलत उन्होंने टीम में स्थाई जगह बना ली थी। हालांकि कई दिग्गज मानते हैं कि टेस्ट ने उन्हें एकदिवसीय और टी-20 से दूर कर दिया। दरअसल, जब अश्विन टेस्ट टीम में आए तब भारत को एक अदद स्पिनर की सख्त जरूरत थी। कोच से लेकर कप्तान ने उन्हें इस प्रारूप में फिट करना चाहा। अश्विन ने भी इस राह पर चलना शुरू कर दिया जिसका नतीजा हुआ कि वे एकदिवसीय औऱ टी-20 से दूर होते चले गए।

Edited by Staff Editor
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