क्या वेस्टइंडीज़ क्रिकेट का सुनहरा अतीत फिर लौटेगा ?

West Indies Cricket Team - World Cup Winners

एक जमाना था जब वेस्टइंडीज टीम का क्रिकेट जगत में एक छत्र राज था। वेस्टइंडीज को हराना तो दूर उसके सामने टिकना भी बड़ी चुनौती होती थी। उत्तरी अमेरिका के कई छोटे-छोटे देशों को मिलाकर बनी वेस्टइंडीज टीम की एकजुटता देखने योग्य थी। उस समय किसी टीम का इस कैरिबियन टीम को टक्कर देना और उसे जीत के लिए संघर्ष कराना भी बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जाती थी। नई नवेली टीमों की तो बात ही छोड़िए दिग्गज टीमों की भी इस टीम के सामने हालत पतली रहती थी। वेस्टइंडीज टीम की सफलता का वो दौर 70 के दशक में शुरू हुआ और 90 के दशक की शुरूआत तक जारी रहा। ये दौर वेस्टइंडीज टीम का स्वर्णिम काल था और न सिर्फ वेस्टइंडीज बल्कि क्रिकेट खेलने वाली किसी भी टीम का सर्वश्रेष्ठ काल था। अगर हम बॉडी लाइन सीरीज की बात छोड़ दें तो किसी टीम के खिलाफ खेलने में शायद ही किसी के इतने पसीने छूटे हों जितने वेस्टइंडीज के खिलाफ खेलने में। बॉडी लाइन सीरीज और उस दौर की विंडीज टीम में सिर्फ इतना फर्क था कि बॉडी लाइन सीरीज में जहां इंग्लैंड के तेज गेंदबाज अपनी निगेटिव रणनीति से विरोधी खिलाड़ियों को खौफजदा करते थे, वहीं कैरिबियन टीम ने अपने खिलाड़ियों के खेल कौशल के दम पर अपने विरोधियों को थर्राया। उस समय वेस्टइंडीज की टीम में एक से एक शानदार खिलाड़ियों की भरमार थी, हरेक खिलाड़ी अपने आप में मैच विनर। वॉली हेमण्ड, लांस गिब्स, जॉर्ज हैडली, सर गैरी सोबर्स, सर फ्रेंक वारेल, सर क्लाइड वॉलकॉट, सर एवर्टन वीक्स, क्लाइव लॉयर्ड, एल्विन कालीचरण, रोहन कन्हाई, विवियन रिचर्ड्स, जेफ्री डुजॉन, डेज़मंड हेंस, गॉर्डन ग्रीनिज, ब्रायन लारा, शिवनारायण चन्द्रपाल, माइकल होल्डिंग, जोएल गार्नर, सर एंडी रॉबर्ट्स, मैल्कम मार्शल, सर कर्टली एम्ब्रोस, कोर्टनी वॉल्श आदि कई ऐसे ही अनमोल नगीने थे, जिन्हें प्रत्येक टीम अपनी अंगूठी में जड़ना चाहती थी। ये नाम अपने आप में इतने बड़े थे कि इनके खिलाफ खेलना भी इनके विरोधी खिलाड़ियों के लिए गर्व की बात होती थी। इन खिलाड़ियों की महानता को उस दौर में वेस्टइंडीज टीम द्वारा किया गया प्रदर्शन बयां करता है। सन 1975 में जब वन डे क्रिकेट में वर्ल्ड कप की शुरुआत हुई तो उस समय टेस्ट क्रिकेट की अघोषित चैम्पियन ने इसमें भी अपनी धाक जमाई। वेस्टइंडीज ने न सिर्फ पहली बार चैम्पियन बनने का गौरव हासिल किया, बल्कि 1979 में इसकी भी पुनरावृत्ति की। यही नहीं 1983 में हुए तीसरे विश्व कप में भी वो रनर अप रही। 1983 के वर्ल्ड कप में फाइनल में भारत के हाथों पराजित होने के कारण उसे उपविजेता बनकर ही संतोष करना पड़ा। हालांकि इसके बाद जब वेस्टइंडीज की टीम भारत के दौरे पर भारत आई तो उसने भारतीय टीम को वन डे सीरीज के सभी मैचों में हराते हुए क्लीन स्वीप करके विश्व कप के फाइनल मुकाबले में मिली हार का बदला ले लिया। विंडीज टीम ने 1983 विश्व कप के बाद हुए मैचों में भी अपनी शक्ति दर्शाते हुए एक बार फिर विश्व क्रिकेट में अपने वर्चस्व को साबित करके दिखाया। उस दौर में वेस्टइंडीज में जाकर जीतना तो दूर अपने घर में भी कैरिबियाई टीम के खिलाफ हार से बच पाना किसी भी टीम के लिए उपलब्धि मानी जाती थी। दो बार की चैम्पियन और उस समय तक के सभी फाइनल खेलने वाली वेस्टइंडीज की टीम 1987 के विश्व कप में अपने चैम्पियन कप्तान क्लाइव लॉयर्ड, जोएल गार्नर, माइकल होल्डिंग, मैल्कम मार्शल जैसे कई बड़े खिलाड़ियों के बिना खेलने उतरी तो भले ही विंडीज टीम सेमी फाइनल में न पहुंच पाई हो, लेकिन वास्तव में उनका प्रदर्शन उतना खराब नहीं था, जितना आंकड़ों में दिखाई देता है। उस विश्व कप में उनकी टीम के बाहर होने की जो वजहें थीं, उनमें से एक बड़ी वजह थी, उनके खिलाड़ी कोटनी वाल्श की शानदार खेल भावना। हुआ यूं कि 1987 के वर्ल्ड कप में वेस्टइंडीज की टीम पाकिस्तानी टीम के खिलाफ खेल रही थी, मैच बेहद रोमांचक मोड़ पर था, वेस्टइंडीज के कोटनी वाल्श गेंदबाजी कर रहे थे और पाकिस्तान की आखिरी जोड़ी सलीम जाफर और अब्दुल कादिर क्रीज पर मौजूद थे। जीत के लिए जहां पाकिस्तान को कुछ रनों की दरकार थी, वहीं वेस्टइंडीज जीत से मात्र एक विकेट दूर था। वेस्टइंडीज की टीम के हाथ में मैच जीतने का एक सुनहरा मौका तब आया, जब नॉन स्ट्राइकर एंड पर खड़े बल्लेबाज सलीम जाफर जल्दी से रन लेने के लिए कोटनी वाल्श के गेंदबाजी करने से पहले ही क्रीज से बाहर निकल गए, लेकिन वाल्श ने बेहतरीन खेल भावना दिखाते हुए सलीम जाफर को रन आउट नहीं किया, उन्हें मात्र चेतावनी देकर छोड़ दिया। इस मौके का फायदा उठाते हुए उन्होंने पाकिस्तान को आख़िरी गेंद पर एक विकेट से रोमांचक जीत दिला दी। बेशक वेस्टइंडीज ये महत्वपूर्ण मैच हार गई, लेकिन कोटनी वाल्श और वेस्टइंडीज की टीम ने ये मैच हारकर भी सभी का दिल जीत लिया। इसके अलावा वेस्टइंडीज टीम इंग्लैंड के खिलाफ भी रोमांचक मैच में आखिरी ओवर के दौरान 2 विकेट के नजदीकी अंतर से मैच हार गई। नजदीकी मुकाबलों में मिली हारे कैरिबियन टीम के हारने की वजहें बनीं। World Cup Final  -  England v West Indies 90 के दशक में विवियन रिचर्ड्स, डेसमंड हेंस, गार्डन ग्रीनिज, जैफ डूजों जैसे कई और खिलाड़ियों के सन्यास के बाद वेस्टइंडीज टीम में अनुभव की कमी नज़र आने लगी, ब्रायन लारा, शिवनारायण चन्द्रपाल और कर्टली एम्ब्रोस जैसे कुछ नामों को छोड़कर विंडीज को पुराने खिलाड़ियों की जगह भरने वाले खिलाड़ी नहीं मिल पाए, जिससे उनका ग्राफ नीचे की ओर गिरने लगा। टेस्ट क्रिकेट हो या एक दिवसीय मैच दूसरी टीमों ने वेस्टइंडीज को टक्कर देना और हराना शुरू कर दिया था। अब दूसरी टीमों ने न सिर्फ उनके सामने डरना बंद कर दिया, बल्कि उनकी आँखों में आँखे डालना भी सीख लिया। उसके बाद कैरिबियाई टीम के पतन का ऐसा दौर शुरू हुआ, जो अभीतक नहीं थमा है और अभी भी ये सिलसिला जारी है। वेस्टइंडीज टीम अपने खराब प्रदर्शन के चलते न सिर्फ 1992 के विश्व कप में क्वालीफाई करने से चूक गई, बल्कि 1996 के विश्व कप के सेमीफाइनल मुकाबले में ऑस्ट्रेलियन टीम के हाथों किसी नौसीखिए की तरह जीती हुई बाज़ी हार गईं। इसी विश्व कप में उन्हें क्वालीफायर केन्या से भी शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। एक समय सारी दुनिया पर एक छत्र राज करने वाली वेस्टइंडीज का अभेद किला अब ढ़हने लगा था। फिर चाहे टेस्ट मैच सीरीज हों या वन डे सीरीज विंडीज टीम के हारने के सिलसिला शुरू हो गया। यदि विश्व कप की बात करें तो चाहें 1999 का विश्व कप हो या 2003 का, 2007 में अपने घर में खेला गया विश्व कप हो, या 2011 का विश्व कप, अन्यथा 2015 का पिछला विश्व कप ही क्यों न हो, वेस्टइंडीज खिताब जीतना तो दूर फाइनल में भी जगह बनाने में नाकाम रही। यही नहीं उसे इन विश्व कप के मैचों में बड़ी-बड़ी टीमों के अलावा केन्या, आयरलैंड और अफगानिस्तान जैसी क्वालीफाई करके आई टीमों के हाथों भी शिकस्त झेलनी पड़ी। हां बीच-बीच में अच्छा प्रदर्शन करके वेस्टइंडीज टीम ने अपनी वापसी की आस जगाई जरूर है, लेकिन फिर अपने खराब प्रदर्शन से उसे स्वयं ही धूमिल भी किया है। एक ओर जहां चैम्पियन ट्रॉफी में 2004 में वो विजेता बनी और साथ ही 1998 और 2006 में वो रनर अप भी रही। वहीं दूसरी ओर इस वर्ष खेली गई चैम्पियन ट्रॉफी के लिए वो क्वालीफाई भी न कर सकी। इसके अलावा टी-20 में 2012 और 2016 में वो दो बार चैम्पियन बनी। साथ ही उसने 2016 में महिलाओं का टी-20 वर्ल्ड कप और युवाओं का U19 वर्ल्ड कप भी अपने नाम किया, और भविष्य के लिए फिर से उम्मीदें जगाईं। लेकिन उसके बाद दो-दो बार की वन डे और टी-20 चैम्पियन अपनी खराब रैंकिंग के चलते अगले विश्व कप के लिए सीधे क्वालीफाई करने में नाकामयाब रही। ऐसे में ये प्रश्न उठना लाजिमी है कि क्या कभी वेस्टइंडीज टीम अपने सुनहरे अतीत को दोहरा सकेगी? ICC World Twenty20 India 2016: Final - England v West Indies ऐसा नहीं है कि आज वेस्टइंडीज में अच्छे खिलाड़ियों का अकाल पड़ गया हो। आज भी उनके पास क्रिस गेल, ड्वेन ब्रावो, काइरोन पोलार्ड, लेंडल सिमंस, कार्लोस ब्रैथवेट, ड्वेन स्मिथ, आंद्रे रसेल, सुनील नारेन जैसे एक से एक मैच विनर मौजूद हैं। हां उनकी गेंदबाजी का स्तर खास नहीं है, इस पर कड़ी मेहनत की आवश्यकता है। आज विंडीज टीम में जो बड़ी कमी है वो है एकजुटता और निरंतरता का अभाव। बोर्ड और खिलाड़ियों के बीच की अंतर्कलह भी आग में घी का काम कर रही है। लेकिन यदि वेस्टइंडीज टीम अपनी इन कमियों पर काबू कर ले तो छोटे प्रारूप में अपने इतिहास की पुनरावृत्ति भले ही पूरी तरह न सही पर कुछ हद तक जरूर कर सकती है। लेकिन टेस्ट क्रिकेट में उसका पुराना मुकाम हासिल करना बेहद मुश्किल है।

Edited by Staff Editor
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