विश्व क्रिकेट जगत की सबसे तेज पिच

किसी भी क्रिकेट मैच का नतीजा मुख्यतः गेंदबाजी, बल्लेबाजी और फील्डिंग पर निर्भर करता है। इसके साथ पिच और मौसम की स्थिति से भी मैच के नतीजों पर फर्क पड़ता है। हम अक्सर सुनते रहते है कि 'गेंद बल्ले पर अच्छे से आ रही है' या 'बाउंस की वजह से गेंदबाज को विकेट मिला' या ओस की वजह से गेंदबाज को मदद नहीं मिल रही है। ये तमाम उदाहरण हैं जो साबित करते हैं कि "पिच फैक्टर" मैच का रिजल्ट प्रभावित करता है। तेज और उछाल भरी पिचें बल्लेबाजों के लिए खतरनाक साबित होती हैं। इस तरह की पिचें न्यूज़ीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका में ज्यादा देखने को मिलती हैं। इसके मुकाबले उपमहाद्वीप में ऐसी पिचें होती है, जो तेज पिचों के मुकाबले धीमी और टर्निंग ट्रैक वाली होती हैं। इसलिए एशिया में खेलने वाले बल्लेबाजों को तेज पिचों पर रन बनाने और सामंजस्य बिठाने में दिक्कत होती है। तेज पिचों पर हुक, पुल और कट शॉट खेलने वाले बल्लेबाज ज्यादा सफल होते हैं। इसलिए उपमहाद्वीप में खेलने वाले बल्लेबाज इन पिचों पर उतना सफल नहीं हो पाते हैं। दुनिया की सबसे खतरनाक पिचों में एडिलेड ओवल, ओवल, वांडरर्स (दक्षिण अफ्रीका) , गाबा (ऑस्ट्रेलिया), सबीना पार्क (जमैका), किंग्समीड़ (दक्षिण अफ्रीका), एमसीजी का नाम शामिल है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया के पर्थ की वाका पिच दुनिया की सबसे तेज़ पिच मानी जाती है। वाका मैदान दो बार की बिग बैश चैंपियन टीम 'पर्थ स्कोचर्स' का घरेलू मैदान है। आप आसानी से समझ सकते हैं कि टीम ने अपना यह नाम क्यों रखा। इस मैदान को "द फर्नेस" यानी भट्टी के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। वाका की पिच को दुनिया की सबसे तेज और उछाल भरी पिच मानी जाती है। दोपहर में समुद्री हवाओं से मिलने वाली मदद से यह मैदान तेज और स्विंग गेंदबाजों के लिए स्वर्ग साबित हुआ है। वाका मैदान का इतिहास यह मैदान 1880 में बनाया गया और तभी से तेज गेंदबाजों के लिए मददगार रहा। अक्टूबर 1967 में, वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया के एयान ब्रेशा ने 44 रन देकर 10 विकेट लिए। यह शेफ़ील्ड शील्ड के इतिहास का एक पारी में दूसरा सबसे बेहतरीन प्रदर्शन था। 1976/77 में जिलेट कप घरेलू एकदिवसीय टूर्नामेंट के सेमीफाइनल मुकाबले में वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया सिर्फ 77 रन बनाकर भी मैच जीतने में सफल रही थी। उसने क्वींसलैंड को 15 रन से हराया था। इस मैच को जादुई मैच भी कहा गया था। कुछ यादगार अंतर्राष्ट्रीय मुकाबले 1988/89 में ऑस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाज़ मर्व ह्यूजेस ने वेस्ट इंडीज के खिलाफ पहली पारी में हैट्रिक समेत 87 रन देकर 8 विकेट झटके। उन्होंने मैच में 217 देकर 13 विकेट लिए, जो एक टेस्ट में लिए गए सबसे अधिक विकेट थे। इसी मैच में कर्टली एम्ब्रोस की बाउंसर से ऑस्ट्रेलिया के जेफ लॉसन का जबड़ा टूट गया था।

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30 जनवरी 1983 में ऑस्ट्रेलिया का स्कोर 85/3 से होकर 119/10 हो गया था। कर्टली एम्ब्रोस ने पारी में 7 विकेट लिए थे। 1 दिसम्बर 2000 में, ऑस्ट्रेलिया के ग्लेन मैक्ग्राथ ने वेस्टइंडीज के शेरविन कैम्पबेल, ब्रायन लारा और जिम्मी एडम्स को लगातार गेंद पर आउट करके हैट्रिक हासिल की थी। 2004 में 34 वर्षीय मैक्ग्राथ ने पाकिस्तान के खिलाफ 24 रन देकर 8 विकेट हासिल किये थे। यह उनके करियर का सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजी प्रदर्शन रहा। यह इस मैदान पर किसी गेंदबाज द्वारा सबसे बेहतरीन प्रदर्शन भी है। इस मैदान पर 2008 में, ऑस्ट्रेलिया के मिचेल जॉनसन ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ पहली पारी में 61 रन देकर 8 विकेट झटके थे। यह किसी बाएं हाथ के तेज गेंदबाज द्वारा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। यह मैदान भारत के लिए भी यादगार है क्योंकि 9 दिसम्बर 1980 में इसी मैदान पर भारत और न्यूज़ीलैंड के बीच पहला वनडे मैच खेला गया था। क्या यह बल्लेबाजों के लिए कब्रगाह है? पिछले कई सालों से यह पिच बल्लेबाजों के लिए खूंखार और गेंदबाजों के लिए स्वर्ग साबित हुई है। इस मैदान पर फ़रवरी 2016 तक टेस्ट मैचों के सबसे तेज 9 शतकों में से 4 लगे हैं। फिर भी यह एक ऐसा मैदान है, जहां बल्लेबाजों को सबसे ज्यादा शरीर पर चोट लगती है। तेज गेंदबाज मैच के नायक साबित होते हैं, यहां तक की बल्लेबाज भी तेज बाउंसर पर संघर्ष करते नजर आते हैं। लेखक: नक्षत्र पैन अनुवादक: मोहन कुमार

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