मेहनत और लगन का फल एकदिन जरुर मिलता है इसलिए कभी मेहनत से पीछे नहीं हटना चाहिए। कुछ ऐसी ही लगन के साथ छोटे-छोटे गांव और शहरों से आने वाले खिलाड़ियों ने अपनी जीतोड़ मेहनत से प्रो कबड्डी में सबका दिल जीत लिया है। प्रो कबड्डी के इस पांचवें सीज़नकी उल्टी गिनती अब शुरु हो चुकी है और चारों तरफ कबड्डी का शोर है।
इस बार का सीज़न पहले से ज्यादा भव्य, पहले से ज्यादा बड़ा, पहले से ज्यादा जोश और जुनून से लबरेज होने वाला है क्योंकि इस बार प्रो कबड्डी लीग में शामिल होने जा रही हैं 4 नयी टीमें। 12 शहरों में एकदूसरे से पंगा लेने के लिए तैयार ये सारी टीमें कुल 130 मैच खेल कर इस सीज़न का खिताब अपने नाम करना चाहेंगी। प्रो कबड्डी की दिन प्रतिदिन बढ़ती लोकप्रियता ये बताने के लिए काफी है कि अब भारत में कबड्डी का जनून सिर चढ़ कर बोल रहा है। पिछले तीन सालों में कबड्डी क्रिकेट के बाद भारत में दूसरा सबसे ज्यादा देखा जाने वाला खेल है। सफलता की ऊंचाईयों की छूते हुए प्रो कबड्डी लीग ने ना सिर्फ खेल बल्कि खिलाड़ियों को भी बदल डाला है। कल तक जो खिलाड़ी बड़े-बड़े खिताब जीतने के बावजूद भी पहचान तलाश रहे थे। आज उनकी लोकप्रियता को एक नया आयाम मिला है। आज हम बात कर रहे हैं ऐसे ही कुछ खिलाड़ियों की जिनकी मेहनत और लगन को प्रो कबड्डी लीग ने एक नया मुकाम दिया है- सेल्वामणी के (जयपुर पिंक पैंथर) इस युवा खिलाड़ी को पिछले महीने हुई ऑक्शन की प्रक्रिया में अभिषेक बच्चन ने 73 लाख में अपनी टीम में शामिल किया है इसके पहले ये खिलाड़ी तमिलनाडू में अपनी क्लब की तरफ से खेल रहा था। इस खिलाड़ी ने अपने करियर में कई उतार चढ़ाव देखे। मैकेनिकल इंजीनियरिंग डिप्लोमा के फाइनल ईयर में होने के बावजूद तमिलनाडू कबड्डी एशोसिएशन की तरफ से प्रोफेशनल ट्रेनिंग लेने की मांग की। सेलवामनी की ट्रेनिंग को सहायता देने के लिए उनके बड़े भाई ने अपनी पढ़ाई त्याग दी लेकिन आज जब उनका भाई प्रो कबड्डी लीग पर नई ऊंचाईयां छू रहा है तब उन्हें उस पर गर्व होगा। लेकिन इतनी ऊंचाईयों में पहुंचने के बाद भी सेलवामनी में कोई बदलाव नहीं आया है। वह अभी भी साधारण से परिवार साधारण से लड़के हैं जो अपनी जीती हुई राशि से अपने परिवार के कर्जों को दूर कर रहे, अपने घर को बनवा रहे हैं और अपनी बहन की शादी की तैयारी कर रहे हैं। सेलवामनी के पिता दक्षिण मध्य रेलवे में क्लर्क के रूप में पोस्ट हैं। सुकेश हेगड़े (फार्च्यूनजायंट्स गुजरात)
फार्च्यूनजायंट्स गुजरात के कप्तान सुकेश हेगड़े आज जिस मुकाम पर खड़े हैं उन्होंने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए एक लंबा रास्ता तय किया है। जो उनके मेहनत भरे सफर की कहानी बयां करने के लिये काफी है। खराब एकेडमिक परिणामों के कारण शुरुआती सालों में कबड्डी की अधिक प्रैक्टिस शुरु कर दी। जिसके बाद उन्हें कॉलेज के प्रथम वर्ष में आखिरकार ऑल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी प्रतियोगिता में शामिल होने का मौका मिला। सुकेश एक ड्राइवर के बेटे थे लेकिन उनकी सोच हमेशा कुछ बड़ा करने की थी, इसके लिए जब विजया बैंक ने उन्हें उनके सपने को पूरा करने का एक मौका दिया तो वह मैंगलोर जैसे छोटे से शहर से निकल कर बैंगलोर चले गये। इसके बाद तेलगु टाइटंस ने सुकेश के दरवाजे पर दस्तक दी और अपने करियर को नयी ऊंचाईयां देने के लिए सुकेश ने अवसर का भरपूर फायदा उठाया। प्रो कबड्डी के पांचवे सीज़न में उन्हें गुजरात ने अपनी टीम में शामिल किया और इस बार वह टीम को लीड करने की भूमिका में नजर आयेंगे। रिशांक देवाडिगा (यूपी योद्धा)
कबड्डी उसका असली जुनून था लेकिन खराब परिस्थितयों ने भी कभी उन्हें उनके लक्ष्य से भटकने नहीं दिया। आज रिशांक कॉर्मस से ग्रेजुएशन पूरा कर चुके हैं लेकिन एक समय ऐसा भी था जब उन्हें परिवार को आर्थिक मदद देने के लिए अपनी दसवीं की पढ़ाई को भी छोड़ना पड़ा था। छोटी उम्र में पिता को खोने के बाद उनकी मां और बहन की मदद के लिए रिशांक ने छोटी सी उम्र में मुंबई के लीला होटल में वेटर के तौर पर काम किया और परिवार की आर्थिक स्थिति को संभालने में मदद की। लेकिन तकदीर को कुछ और ही मंजूर था। रिशांक ने विषम परिस्थितियों के बावजूद अपने जुनून को खत्म होने नहीं दिया। एक बार लोकल मैच में खेलते हुए रिशांक की प्रतिभा पर सेलेक्टर्स की नजर पड़ी जिसके बाद उन्हें अपनी सिटी टीम की तरफ से खेलने का मौका मिला। जिसके बाद किस्मत के तारें चमके और उन्हें खेल कोटे के अंतर्गत पहले देना बैंक और फिर बीपीसीएल की नौकरी मिली, लेकिन उनका जुनून खत्म ना होने वाला था। उनकी लाइफ ये यू टर्न तब लिया जब उन्हें यू मुंबा की टीम में शामिल होने का मौका मिला और आज यह खिलाड़ी प्रो कबड्डी लीग के सबसे खतरनाक रेडर्स में से एक है और इस बार यूपी योद्धा की टीम की तरफ से खेलता दिखेगा। दीपक हूडा (पुनेरी पलटन)
एकेडमिक में शानदार प्रदर्शन करने वाले दीपक के लिए कबड्डी उनकी पहली पसंद नहीं थी बल्कि अपने परिवार की जिम्मेदारियों को अपने कंधों पर उठाने के लिए उन्होंने कबड्डी को खेलना प्रारंभ किया। एक समय ऐसा भी था जब वह सुबह सुबह अंधेरे में तीन घंटे की प्रैक्टिस के लिए जाया करते थे। जिसके बाद खेतों पर काम करते थे और वहीं दोपहर में वह लोकल स्कूल में पढ़ाने को जाते थे व अंत में शाम को घर आकर फिर से 3-4 घंटे की प्रैक्टिस किया करते थे। लोकल प्रतियोगिताओं में भाग लेकर वह कुछ पैसे कमाते थे जिसे वह अपनी बहन और दो बच्चों की सहायता को देते थे। अपनी कबड्डी की प्रतिभा को और निखारने के लिए वह हर रोज़ गांव से 30 किलोमीटर दूर प्रैक्टिस के लिए जाते थे। लेकिन कहते है ना किस्मत भी बहादुरों का साथ देती है। दीपक को उनकी मेहनत का फल तब मिला जब अजय ठाकुर की मदद से एयर इंडिया ने उन्हें भर्ती कर लिया फिर उनकी मेहनत ने उन्हें प्रो कबड्डी लीग में पहुंचा दिया। वह ऐसे 8 खिलाड़ियों में से एक हैं जिन्हें अपनी टीम ने अपने ही पास बरकरार रखा है और वह एक बार फिर से पुनेरी पलटन की तरफ से खेलेंगे। काशीलिंग अड़के (यू मुंबा)
अपने दुबली पतली सी कदकाठी की वजह से काशलिंग ने अपने बचपन में अपने पिता जो कि एक रेसलर थे के पदचिन्हों पर ना चलकर कबड्डी खेलना पसंद किया। लेकिन किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया और पिता की अचानक मौत के बाद अपने परिवार को चलाने की जिम्मेदारी सारी उन्हीं के कंधों पर आ गयी। काशलिंग ने इस दौरान परिवार का पालन पोषण करने के लिए ना सिर्फ सांगली में अपने गांव में खेती की बल्कि कमाई का और साधन ढूंढ़ने के लिए गन्ने की फैक्ट्री में भी काम किया। इसके बाद भी वह मुश्किल से 200 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से कमा पाते थे जिसके कारण उन्होंने चार साल तक सिर्फ एक समय का खाना ही खाया। लेकिन इतने बुरे दौर के बावजूद काशलिंग ने अपने सपने को कभी मरने नहीं दिया। काशलिंग ने लगातार प्रैक्टिस की और पास के एक क्लब को ज्वाइन कर लिया व अपने चाचा के कहने पर मुंबई को गये। आखिरकार किस्मत ने उनके दरवाजा खटखटाया और महिन्द्रा के लिए उन्हें खेलने का मौका मिल ही गया। जिसके बाद उन्हें बीपीसीएल ने चुन लिया और फिर बारी आयी प्रो कबड्डी लीग की। जहां दबंग दिल्ली ने उन्हें 10 लाख में लेकर उनके टैलेंट को दिखाने के मौका दिया। उन पैसों से काशलिंग ने सबसे पहले बारिश के कारण बिखर चुके अपने घर को एक बार फिर से बनाया। काशलिंग इस बार प्रो कबड्डी के पांचवें सीज़न में यू मुंबा की तरफ से खेलेंगे। लेखक: विधि शाह अनुवादक: सौम्या तिवारी