कबड्डी उसका असली जुनून था लेकिन खराब परिस्थितयों ने भी कभी उन्हें उनके लक्ष्य से भटकने नहीं दिया। आज रिशांक कॉर्मस से ग्रेजुएशन पूरा कर चुके हैं लेकिन एक समय ऐसा भी था जब उन्हें परिवार को आर्थिक मदद देने के लिए अपनी दसवीं की पढ़ाई को भी छोड़ना पड़ा था। छोटी उम्र में पिता को खोने के बाद उनकी मां और बहन की मदद के लिए रिशांक ने छोटी सी उम्र में मुंबई के लीला होटल में वेटर के तौर पर काम किया और परिवार की आर्थिक स्थिति को संभालने में मदद की। लेकिन तकदीर को कुछ और ही मंजूर था। रिशांक ने विषम परिस्थितियों के बावजूद अपने जुनून को खत्म होने नहीं दिया। एक बार लोकल मैच में खेलते हुए रिशांक की प्रतिभा पर सेलेक्टर्स की नजर पड़ी जिसके बाद उन्हें अपनी सिटी टीम की तरफ से खेलने का मौका मिला। जिसके बाद किस्मत के तारें चमके और उन्हें खेल कोटे के अंतर्गत पहले देना बैंक और फिर बीपीसीएल की नौकरी मिली, लेकिन उनका जुनून खत्म ना होने वाला था। उनकी लाइफ ये यू टर्न तब लिया जब उन्हें यू मुंबा की टीम में शामिल होने का मौका मिला और आज यह खिलाड़ी प्रो कबड्डी लीग के सबसे खतरनाक रेडर्स में से एक है और इस बार यूपी योद्धा की टीम की तरफ से खेलता दिखेगा।