अपने दुबली पतली सी कदकाठी की वजह से काशलिंग ने अपने बचपन में अपने पिता जो कि एक रेसलर थे के पदचिन्हों पर ना चलकर कबड्डी खेलना पसंद किया। लेकिन किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया और पिता की अचानक मौत के बाद अपने परिवार को चलाने की जिम्मेदारी सारी उन्हीं के कंधों पर आ गयी। काशलिंग ने इस दौरान परिवार का पालन पोषण करने के लिए ना सिर्फ सांगली में अपने गांव में खेती की बल्कि कमाई का और साधन ढूंढ़ने के लिए गन्ने की फैक्ट्री में भी काम किया। इसके बाद भी वह मुश्किल से 200 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से कमा पाते थे जिसके कारण उन्होंने चार साल तक सिर्फ एक समय का खाना ही खाया। लेकिन इतने बुरे दौर के बावजूद काशलिंग ने अपने सपने को कभी मरने नहीं दिया। काशलिंग ने लगातार प्रैक्टिस की और पास के एक क्लब को ज्वाइन कर लिया व अपने चाचा के कहने पर मुंबई को गये। आखिरकार किस्मत ने उनके दरवाजा खटखटाया और महिन्द्रा के लिए उन्हें खेलने का मौका मिल ही गया। जिसके बाद उन्हें बीपीसीएल ने चुन लिया और फिर बारी आयी प्रो कबड्डी लीग की। जहां दबंग दिल्ली ने उन्हें 10 लाख में लेकर उनके टैलेंट को दिखाने के मौका दिया। उन पैसों से काशलिंग ने सबसे पहले बारिश के कारण बिखर चुके अपने घर को एक बार फिर से बनाया। काशलिंग इस बार प्रो कबड्डी के पांचवें सीज़न में यू मुंबा की तरफ से खेलेंगे। लेखक: विधि शाह अनुवादक: सौम्या तिवारी