भारत में कबड्डी का ख़ुमार सभी पर सिर चढ़कर बोल रहा है, बस कुछ ही घंटों बाद प्रो कबड्डी लीग के सीज़न-5 के चैंपियन पर भी मुहर लग जाएगी। सभी की नज़रें इस बात पर टिकी हैं कि पिछले दो बार की चैंपियन पटना पाइरेट्स शनिवार को चेन्नई में लगाएगी ख़िताब की हैट्रिक या फिर पहली बार लीग में खेल रही गुजरात फ़ॉर्च्यून जाइंट्स के रूप में मिलेगा नया चैंपियन।
जब दंगल में दो टीमों के खिलाड़ियों के बीच में असली पंगा हो रहा होता है, तो उनपर पैनी नज़र होती है वहां मौजूद मैच रेफ़री पर। उनकी नज़र से न तो कोई टच प्वाइंट बच पाता है और न ही बोनस प्वाइंट, और इसी पैनी नज़र के साथ इस सीज़न में धाक जमा रही हैं ईरान की मैच रेफ़री लैला सैफ़ी।
इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर से कबड्डी मैच रेफ़री में बदली लैला सैफ़ी ने पहली बार भारत में अहमदाबाद में हुए कबड्डी विश्व कप में रेफ़री की भूमिका निभाई थी। जहां उनके शानदार प्रदर्शन के बाद उन्हें इस साल प्रो कबड्डी लीग में भी मौक़ा मिला।
स्पोर्ट्सकीड़ा के लिए वरिष्ठ खेल पत्रकार सैयद हुसैन ने लैला सैफ़ी से कई मुद्दों पर बात की और लैला ने उनका बेबाकी से जवाब दिया।
सैयद हुसैन: ईरान से आकर भारत में और वह भी दुनिया की सबसे बड़ी कबड्डी लीग में रेफ़री की भूमिका निभाना, आपको कैसा लगता है ?
लैला सैफ़ी: मुझे भारत बहुत पसंद है, और जब मुझे यहां प्रो कबड्डी में भी रेफ़री की भूमिका निभाने का मौक़ा मिला है तो ये मेरे लिए बहुत ही शानदार है।
सैयद हुसैन: आप इससे पहले भी भारत में कबड्डी विश्वकप के लिए आईं थी, तो उस अनुभव को भी हमारे साथ साझा कीजिए ?
लैला सैफ़ी: कबड्डी विश्वकप में भारत आना सच में शानदार अनुभव था और उस वक़्त कबड्डी को देखते हुए और खिलाडियों की प्रतिस्पर्धा और खेल के गुणवत्ता से लेकर सब कुछ बेहतरीन था। मैं तो कबड्डी को आने वाले समय में ओलंपिक्स में भी देखना चाहूंगी और मेरा ख़्वाब है कि मैं ओलंपिक्स में भी मैच रेफ़री की भूमिका निभाऊं।
सैयद हुसैन: आप इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर भी हैं और अब मैच रेफ़री बन गईं हैं। दो बिल्कुल अलग अलग फ़ील्ड के सफ़र में आपको कितनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा ?
लैला सैफ़ी: जब मैं यूनिवर्सिटी में थी तभी से कबड्डी का शौक़ था मुझे, लेकिन पहले मैंने अपनी पढ़ाई पूरी की और फिर कबड्डी खेलना शुरू किया। 2004 में पहली बार मैंने प्रोफ़ेशनल कबड्डी में हिस्सा लिया था और फिर 2007 में मुझे ईरान की तरफ़ से खेलने का भी मौक़ा मिला। लेकिन अब मैं मैच रेफ़री हूं, और मैं इसे बहुत एन्जॉय कर रही हूं, कबड्डी की हर चीज़ मुझे पसंद है, फिर चाहे वह प्रैक्टिस हो, खेल हो या फिर ऑफ़िशिएट करना हो।
सैयद हुसैन: प्रो कबड्डी में एक रेफ़री के लिए चुनौती तब आती है जब खिलाड़ी बोनस प्वाइंट्स या टच प्वाइंट्स के लिए अपील करते हैं, क्या तब आप पर दबाव होता है ?
लैला सैफ़ी: नहीं नहीं, मैं बिल्कुल दबाव में नहीं होती, बल्कि वही किसी रेफ़री की असली परीक्षा होती है। मैं भी इसपर पैनी नज़र रखती हूं क्योंकि यही मेरा काम है, और मैं इसे बख़ूबी निभाती हूं।
सैयद हुसैन: आपने कई रेडर को अब तक इस सीज़न में देखा, फिर चाहे परदीप नरवाल हों, राहुल चौधरी हों या रोहित कुमार, आपकी नज़र में शानदार कौन हैं ?
लैला सैफ़ी: हा हा हा...(हंसते हुए) ये सवाल आप मुझसे दो दिन बाद यानी प्रो कबड्डी ख़त्म होने के बाद पूछिएगा। क्योंकि एक रेफ़री के नाते मैं किसी टीम या खिलाड़ी पर टूर्नामेंट के दौरान कोई टिप्पणी नहीं कर सकती।
सैयद हुसैन: लेकिन आप ये तो बता सकती हैं प्रो कबड्डी के दौरान कई शहरों का दौरा करने के दौरान आपको कौन सा शहर अच्छा लगा, कौन सी पकवान पसंद आई और क्या नहीं पसंद आया ?
लैला सैफ़ी: मैंने अभी तक मुंबई, जयपुर, पुणे, हैदराबाद और अहमदाबाद देखा है। इनमें से अगर कहीं की सबसे अच्छी चीज़ लगी तो वह जयपुर की दाल, जिसका स्वाद मुझे बहुत पसंद आया और बिल्कुल अलग लगी। शहर के तौर पर भी जयपुर मुझे पसंद आया, हालांकि स्टेडियम और दूसरी चीज़ों के लिए मुंबई भी लाजवाब है, लेकिन मुंबई और पुणे का खाना मुझे बेहद मसालेदार और तीखा लगा, जो मुझे पसंद नहीं। (हंसते हुए...)
सैयद हुसैन: आख़िर में एक महिला जो ईरान से आई हो, जो कई बंदिशों को पीछे छोड़ कर कबड्डी में रेफ़री की भूमिका में हो, जिसके सिर पर हमेशा हिजाब हो, वह दुनिया की दूसरी महिलाओं और देशों को क्या संदेश देना चाहेंगी ?
लैला सैफ़ी: मैं बस ये कहना चाहूंगी कि महिला वह सबकुछ कर सकती है जो पुरुष कर सकते हैं। मुझे देखिए, मैं ईरान से हूं, महिला हूं, इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर हूं लेकिन उसके बाद जब मैं कर सकती हूं तो आप क्यों नहीं। और एक चीज़ और कि कभी भी आप हिजाब न उतारें, ऐसा कोई काम नहीं है जो हिजाब पहन कर नहीं हो सकता है। हिजाब अपने सिर पर ज़रूर डालें और किसी भी हालत में उसे न उतारें।
सैयद हुसैन: स्पोर्ट्सकीड़ा के साथ बात करने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
लैला सैफ़ी: आपका भी बहुत बहुत धन्यवाद