रियो ओलंपिक में वैसे तो भारतीय खिलाड़ियों ने निराश ही किया। पिछले ओलिंपिक के छह पदकों की तुलना में भारतीय दल इस बार सिर्फ दो पदक हासिल कर सका है। लेकिन बावजूद इसके जो अच्छी बात रही, वो था देश बेटियों का दमदार प्रदर्शन। रियो में एक के बाद एक जिस तरह से भारतीय धुरंधर फेल होते गए, निश्चित तौर पर इससे भारतीय खेल प्रेमी काफी निराश हुए। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि भारत को हर ओर से निराशा ही हाथ लगी हो, कई ऐसे खेल रहे जिसमें भारत ने रियो में बेहतर प्रदर्शन किया है। बैडमिंटन में पी.वी. सिंधु ने सिल्वर मेडल दिलाया, जो बैडमिंटन में भारत का पहला ओलिंपिक सिल्वर है। सिंधु ओलिंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाली भारत की पहली महिला खिलाड़ी भी बनीं। सिंधु ने जैसा खेल दिखाया है उससे भविष्य में भारतीय खेल प्रेमियों की उम्मीद और बढ़ गई है। इसके अलावा जिम्नास्टिक्स ऐसा खेल रहा है, जिसमें भारतीय खेल प्रेमी कम ही रूचि रखते हैं और इसे देश में खास लोकप्रियता भी हासिल नहीं है। लेकिन दीपा कर्माकर न सिर्फ 52 साल के बाद ओलिंपिक में क्वालिफाई करने वाली भारत की पहली जिम्नास्ट बनीं बल्कि उन्होंने फाइनल तक का सफर भी तय किया। कुश्ती में वैसे तो हम पदक के मामले में पीछे ही रह गए, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी महिला पहलवान ने देश के लिए पदक जीता हो। साक्षी मलिक ने फ्रीस्टाइल स्पर्धा के 58 किलोग्राम भारवर्ग में ब्रॉन्ज मेडल जीता। रियो ओलिंपिक में रोइंग स्पर्धा में भारत की ओर से एकमात्र प्रतिभागी दत्तू बबन भोकानाल ने हिस्सा लिया। दत्तू रियो में फाइनल में भी प्रवेश नहीं कर पाए, लेकिन विश्व रैंकिंग में 13वें से 25वें स्थान के लिए हुई फाइनल-सी में उन्होंने टॉप स्थान हासिल किया। रोइंग में भारत का यह सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है।