बीते एक दशक में भारतीय सिनेमा ने कई मशहूर खेल पर आधारित फ़िल्में बनाई हैं। जिसमें हीरो ने खिलाड़ी की भूमिका अदा की है। हाल ही में शुक्रवार को इसी कड़ी में “अज़हर” फिल्म भारत के पूर्व कप्तान मोहम्मद अज़हरुद्दीन के जीवन की कहानी पर्दे पर बयान करती हुई रिलीज़ हुई है। आइये आज हम आपको ऐसी ही 10 फिल्मों के बारे बता रहे हैं, खेलों पर आधारित रही हैं: लगान (2001) लगान फिल्म भारत के आज़ादी से पहले के युग पर आधारित थी। जिसमें एक गांव के खिलाड़ियों को लगान देने के एवज में अंग्रेजों से मैच में जीत हासिल करने की शर्त होती है। जीत का मतलब लगान नहीं देना होगा। वहीं हारने लगान की रकम तीन गुना चुकाना था। मैच काफी रोमांचक होता है, जिसमें भुवन बने आमिर खान तूफानी पारी खेलते हैं। जीतने के लिए जब छह रन बनाने होते हैं, तब आमिर खान गेंद को हवा में उछाल देते हैं। जिसे विपक्षी कप्तान सीमा रेखा पर कैच कर लेते हैं। लेकिन उनका पैर सीमारेखा को छू लेता है। इस तरह गांव की टीम मैच जीत जाती है और स्थानीय ग्रामीणों की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता हर तरफ जश्न का माहौल हो जाता है। ये फिल्म ऑस्कर के लिए भी जाती है, तब से ये फिल्म अभी तक किसी भारतीय डायरेक्टर(आशुतोष गोवरिकर) की बेहतरीन फिल्म मानी जाती है। चक दे इंडिया (2007) साल 2007 में रिलीज़ हुई फिल्म चक दे इंडिया भारतीय महिला हॉकी टीम पर आधारित थी। इसमें कोच कबीर खान की भूमिका में शाहरुख़ खान अपने ही देश के फेडरेशन से लड़ते हुए टीम को ऑस्ट्रेलिया में वर्ल्डकप विजेता बनाने में सफल होते हैं। फिल्म में भारतीय खेलों से जुड़ी उन तमाम कमियों और परेशानियों को उठाया गया है, जिससे होकर खिलाड़ी गुजरते हैं। जिसके बावजूद भी वह देश का नाम रोशन करते हैं। फाइनल में टीम ऑस्ट्रेलिया को मात देती है। इस फिल्म में शाहरुख़ खान ने बेहतरीन अदाकारी की है। जिन्हें सात साल पहले पुरुष हॉकी टीम से पाकिस्तान के खिलाफ खराब खेलने की वजह से बाहर कर दिया गया होता है। टीम को कमर्शियल और आलोचनात्मक दोनों तरह से सफलता मिली थी। ये साल की बेहतरीन फिल्म मानी गयी थी। इक़बाल (2005) इक़बाल फिल्म की कहानी काफी अनोखी और लम्बे समय तक याद रखी जाने वाली है। इक़बाल फिल्म की कहानी एक ऐसे गूंगे और बहरे लड़के की है जो क्रिकेट का बहुत बड़ा दीवाना होता है। इसके लिए वह अपनी बहन और कोच की मदद लेता है और देश के लिए खेलने लगता है। इक़बाल बने श्रेयस तलपड़े फिल्म में जानदार भूमिका अदा करते हैं। इकबाल को लोग गंभीरता से नहीं लेते हैं। लेकिन फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे उसके इस जूनून में उसकी बहन (श्वेता प्रसाद) और कोच नसीरुद्दीन शाह मदद करते हैं। अपनी पहली फिल्म बनाने वाले नागेश कुकुनूर को इस फिल्म के लिए नेशनल अवार्ड, बेस्ट फिल्म, बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का अवार्ड नसीरुद्दीन शाह को मिला था। भाग मिल्खा भाग (2013) ये फिल्म भारत के महान एथलीट मिल्खा सिंह के जीवन पर आधारित थी। फिल्म में भारत-पाक बंटवारे के बाद मिल्खा सिंह जो काफी छोटे होते हैं। उनकी जीवनगाथा के बारे में दिखाया गया है। फिल्म में मिल्खा सिंह की भूमिका को फरहान अख्तर ने दमदार तरीके से निभाया है। जिन्हें इसके लिए बेस्ट एक्टर का अवार्ड भी मिला था। फिल्म काफी चली भी थी। मिल्खा सिंह ने अपने जीवन पर फिल्म बनाने के लिए निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा से मात्र एक रुपये लिए थे। मैरीकाम (2014) साल 2012 में एक और बायोपिक ओलंपिक ब्रोंज़ मेडल विजेता मैरीकाम पर बनी थी। फिल्म में उनके बचपन की कहानी भी दिखाई गयी है। कैसे वह मणिपुर के इम्फाल के एक छोटे से शहर से निकलकर 5 बार वर्ल्ड चैंपियनशिप जीतने में कामयाबी हासिल करती हैं। प्रियंका चोपड़ा फिल्म की शीर्षक भूमिका में मुक्केबाज़ बनी हैं और दर्शन कुमार उनके पति के तौर पर नजर आये हैं। फिल्म काफी सफल साबित हुई थी। स्ट्राइकर (2010) साल 2010 में रिलीज़ हुई फिल्म स्ट्राइकर में सिद्धार्थ एक कैरम खिलाड़ी सूर्य के किरदार में नजर आये थे। जिसे इस खेल में काफी दिलचस्पी होती है। उसके बाद वह जूनियर स्तर पर चैंपियनशिप में भाग लेने जाते हैं। जिससे वह दुबई में जाने के अपने सपने को सच कर सकें। सूर्या एक बेहतरीन प्रतिभाशाली खिलाड़ी होता है, जिससे लोग काफी प्रभावित होते हैं। लेकिन बाद में वह बुरे कामों में भाग लेने लगता है। जहाँ वह अंडरवर्ल्ड के लिए काम करने लगता है। लेकिन इसी खेल से वह दोबारा अपने जीवन को सही रास्ते पर ले आता है। हालाँकि ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुई थी। लेकिन ये भारत की पहली ऐसी फिल्म थी जो सिनेमाहाल के साथ यूट्यूब पर भी रिलीज़ हुई थी। पान सिंह तोमर (2012) फिल्म की कहानी पान सिंह तोमर की होती है जो भारतीय सेना में अपने एथलीट क्षमता से सबको प्रभावित करता है। 5000 मीटर में चयनित भी हो जाता है। लेकिन कुछ बदलाव के बाद उसका चयन 3000 मीटर में स्टीपलचेज में हो जाता है। जहाँ वह लगातार 7 साल तक राष्ट्रीय ख़िताब अपने नाम करता है। लेकिन जिंदगी एक अलग ही करवट ले लेती है। जहां उसे बेवजह फंसाया जाता है। जिससे परेशान होकर पान सिंह तोमर भंवर सिंह के खिलाफ हथियार उठा लेता है। क्लाइमेक्स में गोपी(नवाज़ुद्दीन) जो पान सिंह की गैंग का आदमी होता है। जो रेकी कर देता है। जिससे शूटआउट में पान सिंह समेत उसके सारे साथी मार दिए जाते हैं। फिल्म की मुख्य भूमिका निभाने वाले इरफ़ान को नेशनल अवार्ड मिलता है। साला खड़ूस ये फिल्म पहले तमिल भाषा में इरुधि सुत्त्रू के नाम से रिलीज़ हुई थी। फिल्म में एक असफल बॉक्सर की कहानी को पर्दे पर उतारने की कोशिश की गयी है। बॉक्सर का किरदार आर माधवन ने निभाया है, जो गलत राजनीती का शिकार हो चुके हैं। एक दशक बाद वह महिला टीम के कोच के तौर पर वापसी करते हैं। लेकिन वह चयन प्रणाली से काफी झल्लाए होते हैं। उसके बाद वह एक सेक्सुअल हरास्स्मेंट के केस में फेडरेशन द्वारा फंसा दिए जाते हैं। लेकिन एक दिन वह एक मछली बेचने वाले से उसकी बहन लड़ जाती है। जिसकी लड़ने की क्षमता उसे काफी प्रभावित करती है। जिसे वह कोचिंग देने का ऑफर देता है। माधी गंभीरता से अपने खेल में लगी होती है। लेकिन चीजें एक बार फिर खराब होने लगती हैं। जब माधी के प्रस्ताव कोच ख़ारिज कर देता है। जिसके बाद कोच उसकी हार का अलग ही मतलब लोगों को समझा देता है। माधी इन सभी चीजों से उबरकर अपना मुकाम हासिल करने में सफल साबित होती है। जो जीता वही सिकंदर(1992) ये 90 के दशक में बनाई गयी भारतीय सिनेमा की सबसे बेहतरीन फिल्म थी। फिल्म में दो अलग-अलग स्कूलों के छात्र रतन और शेखर इंटर कॉलेज स्तर पर साइकिल चैंपियनशिप में शीर्ष स्थान के लिए रेस करते हैं। संजय जो अपने भाई गंभीर भाई को पसंद नहीं करता है और फनलविंग होता है। जो झूठ का पुलिंदा होता है। साथ ही कॉलेज की लड़की देविका की खूबसूरती पर फ़िदा रहता है। फिल्म एक के बाद एक घटनाक्रम में आगे बढती है, जहां देविका संजय को धोखा देती है। साथ ही रतन एक पहाड़ी से घिर जाता है। साथ ही उसे गंभीर चोट आती है। जिससे उसकी हालत काफी खराब बताई जाती है। इस घटना से संजय काफी कुछ सीखता है। रतन के अनफिट होने और साइकिल रेस में भाग लेने के कारण संजय इस रेस में भाग लेता है। रोमांचक घटनाक्रम में संजय और रतन के बीच पहाड़ों की चोटी पर लड़ाई भी होती है। लेकिन संजय ख़िताब जीत जाता है। फिल्म को फिल्मफेयर में बेस्ट फिल्म भी चुना गया था। पटियाला हाउस (2011) फिल्म में अक्षय कुमार गट्टू का रोल निभाते हैं। जिसका परिवार लन्दन में रहता है। जिसका सपना इंग्लैंड के लिए खेलने का होता है। ऋषि कपूर अक्षय के पापा बने हैं। अक्षय का साथ फिल्म की हीरोइन अनुष्का शर्मा देती है। ये बात गट्टू के पापा को नहीं पता होती हैं। हालाँकि जब उसे टीम में जगह मिल जाती है उसके पापा को हार्ट अटैक पड़ जाता है। लेकिन गट्टू अपने पापा के लिए खेलता रहता है। उसका साथी साउथहॉल उसका साथ देता है। जो गट्टू के पापा को समझाता है। गटू के पापा अपने बेटे को इंग्लैंड को अंतिम गेंद जीत दिलाते हुए देखते हैं। तो वह गट्टू से माफ़ी मांगते हैं। लेखक-शंकर नारायण, अनुवादक-मनोज तिवारी