जापान के एक एथलीट शिसो कनाकुरी ने 1912 स्टॉकहोल्म गेम्स में शुरू हुई मैराथन को खत्म करने के लिए 54 साल, 8 महीने, 6 दिन, 5 घंटे, 32 मिनट और 20.3 सेकेंड का समय लिया। स्टॉकहोल्म गेम्स में जापान की तरफ से 2 एथलीट्स ने हिस्सा लिया था और उनका चयन उनके शानदार प्रदर्शन को देखते हुए किया गया, जब उन्होंने 25 माइल रन सिर्फ 2 घंटे, 30 मिनट और 32 सेकंड में पूरी की थी। जापान से लेकर स्टॉकहोल्म के बीच का सफर 20 दिनों की थकावट और गेम्स वाले दिन गर्मी के कारण रेस के दौरान वो बेहोश हो गए। एक स्वेदिश फैमिली ने कनाकुरी को इस हालत में देखा और उनका पता करने चले गए। कनाकुरी, जोकि अपने फेलियर से नाखुश थे और वो अगले दिन बिना स्वेडिश ओलंपिक कमेटी को बताए जापान के लिए रवाना हो गए। स्वेडिश नेशनल ओलंपिक कमेटी ने स्टॉकहोल्म गेम्स की 55वी सालगिरह पर उन्हें रेस पूरा करने के लिए आमंत्रित किया। 75 साल की उम्र में उन्होंने स्टॉकहोल्म ओलंपिक स्टेडियम में एक लैप भागकर अपनी मैराथन को पूरा किया। इसके बाद उन्होंने कहा, "यह काफी लंबा सफर था, अब मेरी शादी हो चुकी है, मेरे 6 बच्चे हैं और साथ ही में मेरे 10 पोते-पोतियाँ भी हैं।" कनाकुरी की मौत 92 साल की उम्र में हुई, उन्हें जापान के लोग "फादर ऑफ मैराथन भी बुलाते हैं।" 2- उम्र का कोई महत्व नहीं अगर ओलंपिक में कोई रिकॉर्ड हैं, जो कभी भी नहीं टूट सकता, तो निश्चित ही यह दोनों रिकॉर्ड हैं, सबसे युवा और सबसे उम्रदराज के तौर पर मेडल जीतने का। दिमित्रीओस लौनद्रास ओलंपिक में मेडल में जीतने वाले सबसे युवा ओलंपियन है। उन्होंने 1896 में एथेंस में हुए ओलंपिक्स में ग्रीस का प्रतिनिधित्व किया और 10 साल और 218 दिन की उम्र में पैरेल बार्स टीम इवेंट में ब्रॉज मेडल अपने नाम किया। लौनद्रास एथनिकोस जिम्नैस्टिकोस सिलेजॉस टीम का हिस्सा थे, और उस इवेंट में जिन 3 टीम ने हिस्सा लिया, उनमें से यह तीसरे स्थान पर आए। ऑस्कर स्वहन ने स्वीडन का 1908, 1912 और 1920 ओलंपिक में प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने 1920 में एंटवर्प गेम्स में 'रनिंग डीयर' नाम के शूटिंग इवेंट में सिल्वर मेडल जीता। उस समय वो 72 साल और 281 दिनों के थे। ऑस्कर ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने वाले सबसे उम्रदराज खिलाड़ी भी हैं। उन्होंने यह कारनामा 1912 गेम्स में हासिल किया। उन्होंने 3 गोल्ड, 1 सिल्वर और 2 ब्रॉज मेडल जीते है। 3- ओलंपिक के झंडे में पूरे विश्व की झलक दिखती है ओलंपिक के झंडे को बैरन पियरे डे कोबार्तिन ने 1912 में डिजाइन किया था। इसमें 5 रिंगस जोकि एक दूसरे से मिली हुई है और सब अलग-2 रंग की हैं, जिसका बैकग्राउंड बिल्कुल सफेद है। उन रिंगस के रंग नीला, पीला, काला, हरा और लाल हैं। कोबार्तिन ने 1912 में कहा, "यह 6 रंग लगभग हर देश को दिखलाते हैं। नीला और पीला रंग स्वीडन का है, नीला और सफ़ेद ग्रीस का, ट्राई कलर्स वाले फ़्रांस, इंग्लैंड, अमेरिका, जर्मनी, बेल्जियम, इटली और हंगरी। लाल और पीला रंग स्पेन का और इसमें लगभग पूरे देश की झलक दिखती हैं।" बैरन इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी के फाउंडर भी हैं। ओलंपिक का झंडा सबसे पहले पेरिस में 1914 में इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी के 20वी सालगिरह के समय देखने को मिला था। यह झंडा सबसे पहले 1920 में एंटवर्प में लहरया गया था। 4- असली सोना नहीं है ओलंपिक गेम्स में सिल्वर से ज्यादा गोल्ड मेडल जीतने में मज़ा आता हैं। लेकिन क्या यह दोनों एक ही चीज से बने हुए है! ओलंपिक गोल्ड और सिल्वर मेडल में 92.5प्रतिशत सिल्वर मिला होता हैं। इसका मतलब दोनों विजेता और रनरअप एक ही चीज लेकर जाते हैं। गोल्ड मेडल में सोने का कलर इसलिए होता है, क्योंकि इसमें 6 ग्राम सोना मिलाया होता हैं। आखिरी बार जब विजेताओ को 1912 गेम्स में असली गोल्ड मेडल दिया गया था। इन सब मेडल्स को 3एमएम थिक और 60एमएम डायमीटर में होना चाहिए। इसी के साथ ब्रॉज मेडल कॉपर और टिन की मिक्सचर से बंता है। चौंकाने वाली बात यह भी थी कि 1896 गेम्स में किसी भी एथलीट कोमे गोल्ड मेडलिस्ट को मेडल नहीं दिया। उन्हें बस सिल्वर मेडल और एक ऑलिव ब्रांच दे दिया गया। सेकेंड आने वालो को ब्रॉज मेडल और तीसरे आने वाले को कुछ भी नहीं मिला। 5- फैब 5 ओलंपिक में हिस्सा लेना बहुत गर्व की बात होती है और अगर उसमें आप मेडल भी जीत जाए, तो उससे बड़ी बात कोई और नहीं हो सकती। लेकिन अगर कोई एथलीट दोनों विंटर और समर ओलंपिक में मेडल जीते तो? यह कारनामा अब तक सिर्फ 5 ओलम्पियन्स के नाम ही हैं। एडी ईगर पहली ऐसी एथलीट थी, जिन्होंने दोनों समर और विंटर ओलंपिक में मेडल में जीते। उन्होंने दोनों ओलंपिक में गोल्ड मेडल अपने नाम किया था। ईगर ने 1932 में लेक प्लेसिड में गोल्ड जीता, तो 1920 एंटवर्प में बॉक्सिंग में ब्रॉज मेडल अपने नाम किया। जेकब थैम्स ने 1920 में चामोनिक्स में स्काई जमपिंग में गोल्ड, तो 1936 में बर्लिन गेम्स में सिल्वर मेडल अपने नाम किया। क्रिस्टा लुडिंग- रोथेनबरगर ने तीन अलग विंटर ओलंपिक में स्पीड स्केटिंग के लिए मेडल जीते और साथ ही में 1988 में सियोल में साइकलिंग के लिए उन्होंने सिल्वर मेडल जीता। कनाडा की एथलीट क्लैरा ह्यूज़ ने एटलेंटा में 1996 में हुए गेम्स में साइकलिंग के लिए ब्रॉज मेडल जीता और उन्होंने विंटर गेम्स में स्पीड स्केटिंग के लिए मेडल भी जीते। आखिरी नाम यूएसए की लॉरेन विलियम्स है। उन्होंने 2014 में सोची में सिल्वर मेडल जीता, तो लंदन और एथेंस ओलंपिक्स में उनके नाम गोल्ड मेडल जीता था। 6- अमेरिका का दबदबा यूनाइटिड स्टेट्स ऑफ अमेरिका मेडल टैली को काफी बड़े मार्जिन से लीड कर रही हैं। उन्होंने समर ओलंपिक्स में 2,399 मेडल, तो विंटर ओलंपिक में 282 मेडल अपने नाम किए है। अमेरिका ने अब तक 976 गोल्ड मेडल, 757 सिल्वर और 666 ब्रॉज मेडल 26 गेम्स में अपने नाम किए हैं। इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर USSR जिन्होंने सिर्फ 10 गेम्स में हिस्सा लिया और उनके नाम अमेरिका से आधे से भी ज्यादा मेडल जीते हैं। हालांकि USA विंटर गेम्स की मेडल टैली में सबसे ऊपर नहीं हैं। उनसे ऊपर नॉर्वे है, उन्होंने अब तक 329 मेडल जीते है, जिसमें 118 गोल्ड, 11 सिल्वर और 100 ब्रॉज मेडल अपने नाम किए हैं। ऑस्ट्रिया, लिकटेंस्टीन और नॉर्वे ही ऐसी टीमें है, जिन्होंने समर ओलंपिक्स से ज्यादा मेडल विंटर ओलंपिक्स में अपने नाम किए हो। 7- लिएंडर पेस और फेल्प्स (ओलंपियन सुपरमैन ) लिएंडर पेस शानदार युगल्स प्लेयर्स में एक हैं, वो इस साल अपने 7वे ओलंपिक में हिस्सा लेंगे। वो 7 ओलंपिक खेलने वाले पहले टैनिस खिलाड़ी बनेंगे। पेस ने 1996 में एटलैंटा में हुए ओलंपिक में ब्रॉज मेडल अपने नाम किया था । उन्होंने अबतक युगल और मिश्रित युगल में 18 खिताब अपने नाम किए हैं। 43 वर्षीय पेस रियो में रोहन बोपन्ना के साथ जोड़ी बनाएँगे। माइकल फेल्प्स का नामा ओलंपिक की रिकॉर्ड बुक में सबसे पहले आता है। अगर उनका नाम इस लिस्ट में आएगा, तो इसे गुनाह ही कहा जाएगा। फेल्प्स ने अब तक 22 रिकॉर्ड मेडल जीते हैं, उनसे ज्यादा मेडल किसी और ओलंपियन ने आज तक नहीं जीते हैं। 8-1984 तक चाइना का मेडल का इंतज़ार विश्व की सबसे जनसंख्या वाले देश को अपने पहले ओलंपिक मेडल के लिए 1984 तक का इंतज़ार करना पड़ा। चाइना ने 1932 से लेकर 1948 तक रिपब्लिक ऑफ चाइना के तौर पर हिस्सा लोया। चाइना की टीम पहली बार 1952 गेम्स में पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के तौर पर गेम्स में हिस्सा लिया। हालांकि 1984 तक उन्होंने किसी कारण की वजह से ओलंपिक में हिस्सा नहीं लिया। चाइना को पहला मेडल 50 मीटर पिस्टल इवेंट में शू हाइफेंग ने दिलवाया। उसके बाद से चाइना टेबल्स पर टॉप पर ही नज़र आती हैं। 2008 ओलंपिक में चाइना ने अमेरिका को भी पछाड़ दिया था और वो 2022 के विंटर ओलंपिक भी होस्ट करेंगे। चाइना की टीम रियो ओलंपिक में भी अमेरिका को कड़ी टक्कर दे सकती हैं। 9- पिजन शूटिंग और टग ऑफ वॉर जानवरों को मारने वाले खेल सिर्फ एक ही बार ओलंपिक्स में हुआ, वो भी पेरिस में 1900 में। उस इवेंट में 300 बर्ड्स को मारा गया था। उस इवेंट में जो भी सबसे ज्यादा बर्ड्स को मारेगा, उसे गोल्ड मेडल मिलेगा। बेलजियम के लियॉन डे लुंडेन और ऑस्ट्रेलिया के डोंल्ड मैकइण्टोशोफ ने दो इवेंट्स में क्रमश 21 और 22बर्ड्स मारकर मेडल जीता। उसके बाद ना सिर्फ पिजन शूटिंग को बैन कर दिया गया, बल्कि आईओसी ने टग ऑफ वॉर को भी ओलंपिक से हटा दिया। टग ऑफ वॉर ओलंपिक्स में 1900 से 1920 तक रहा। हालांकि यह फ़ैसला थोड़ा ज्यादा हो गया था। अगर टग ऑफ वॉर को ओलंपिक में दोबारा शामिल किया जाता हैं, तो निश्चित ही अब इस खेल के नियम में बदलाव होना चाहिए। 10 - 6 महीने तक चला ओलंपिक रोम में 1908 गेम्स होने थे, लेकिन उस समय इटली गेम के खर्च को नहीं उठा सकता था। उसके बाद ओलंपिक को लंदन में कराया गया, जोकि काफी यादगार संस्करण भी रहा। समर गेम्स लगभग 187 दिनों तक चले(6 महीने और 4 दिन)। उस इवेंट की शुरुआत 27 अप्रैल को हुई थी और उसका अंत 31 अक्तूबर को हुआ। उस गेम्स में काफी विवाद भी हुआ, जिसके पीछा का कारण फिनलैंड, रूस और स्वीडन था। उस इवेंट में 22 देशों के एथलीट्स ने हिस्सा लिया और वहाँ लगभग 110 गेम्स हुए। ग्रेट ब्रिटेन मेडल टैली में सबसे ऊपर रही, उन्होंने 146 मेडल अपने नाम किए। उनके बाद अमेरिका और स्वीडन आई। लेखक- अभिमन्यु, अनुवादक- मयंक मेहता