अपने भारतीय ओलम्पियन को जानें: पीआर श्रीजेश(हॉकी गोलकीपर) के बारे में 10 बातें

यदि भारतीय हॉकी दोबारा पुनर्जीवित हो रही है, तो इसमें बहुत बड़ा योगदान टीम के उपकप्तान और गोलकीपर पीआर श्रीजेश को जाता है. वह बीते एक दशक से लगातार भारतीय टीम को गोल खाने से बचाने में अहम योगदान देते आये हैं। साल 2004 में पर्थ में डेब्यू करने वाले श्रीजेश ने अपनी क्षमता से लोगों को प्रभावित किया है. उन्होंने विपक्षी टीम को गोल करने से न सिर्फ रोका बल्कि वह भारत के लिए किसी कॉम्पैक्ट से कम नहीं हैं। वह केरल के पहले ऐसे हॉकी खिलाड़ी हैं, जिन्हें अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया है. साल 2015 में 12 सदस्यीय समिति ने उनके नाम का अनुमोदन किया था। यहाँ हम आपको श्रीजेश के बारे में 10 ऐसी बातें बता रहे हैं, जिससे आप उन्हें करीब से जान सकते हैं: #1 पराट्टू रवींद्रन श्रीजेश 8 मई 1988 को एक किसान परिवार में किजहक्कम्बलम गाँव में पैदा हुए थे. ये केरल के एर्नाकुलम जिले में पड़ता है. उनके पिता पीवी रवींद्रन और उषा पेशे से किसान हैं। #2 अपने शुरूआती दिनों में श्रीजेश ने खुद को बतौर स्प्रिंटर ट्रेंड किया था. बाद में वह लम्बी कूद और वॉलीबॉल में खेलने लगे जो उनका पहला पसंद था. 12 साल की उम्र में श्रीजेश ने थिरुवनंतपुरम के राजा स्पोर्ट्स स्कूल को ज्वाइन किया. जहाँ उन्होंने कोचिंग स्टाफ जयकुमार रमेश कोलाप्पा की सलाह पर हॉकी का गोलकीपर बन गये। #3 श्रीजेश ने इतिहास में कोल्लम, केरला के श्री नारायणा कॉलेज से स्नातक की शिक्षा ली. उन्होंने पूर्व लॉन्ग जम्पर और आयुर्वेद की डॉक्टर अनीश्या से शादी रचाई। #4 27 साल के इस गोलकीपर ने साल 2006 में श्रीलंका में हो रहे साउथ एशियन गेम्स जाने वाली सीनियर टीम में जगह बनाई. जबकि 2 साल पहले वह जूनियर टीम में चुने जा चुके थे। #5 हालाँकि साल 2008 तक जूनियर हॉकी एशिया कप तक वह लाइमलाइट में आ गये थे. श्रीजेश ने कई अद्भुत गोल भारतीय राष्ट्रीय टीम के लिए बचाए हैं. कोरिया को फाइनल में हराकर स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम में श्रीजेश का अहम योगदान था। जिसकी वजह से श्रीजेश को गोलकीपर ऑफ़ द टूर्नामेंट का अवार्ड मिला था. साल 2009 ने यूरोप जाने वाली टीम से बलजीत सिंह की छुट्टी करते हुए चयनकर्ताओं ने सबको चौंकाते हुए श्रीजेश को टीम में शामिल किया था. उसके बाद उन्हें आंख में पुणे कैंप में चोट लग गयी थी। “मुझे तब बहुत ही गर्व होता है, जब लोग मुझे भारत की दीवार कहते हैं. इससे मेरी जिम्मेदारी बढ़ जाती है. इसलिए मैं हमेशा तैयार रहता हूँ।” #6 साल 2011 तक श्रीजेश में ने टीम इंडिया के अंतिम 11 में अपनी जगह पक्की कर ली थी. हालाँकि उन्हें भारत छेत्री और एड्रियन डिसूजा से कड़ी टक्कर मिलती रही है. लेकिन केरल के इस गोलकीपर ने लगातार बेहतर प्रदर्शन किया और साल 2013 के लिए एशिया कप की टीम में जगह बना ली. जहाँ उन्हें गोलकीपर ऑफ़ द टूर्नामेंट चुना गया. साथ ही टीम इंडिया ने दूसरा स्थान हासिल किया। #7 साल 2014 में उनके करियर को एक नई उड़ान मिली. जहाँ उन्होंने इंचियोन में हुए एशियन गेम्स में टीम के लिया शानदार खेल दिखाया. जिसके बदौलत भारत रियो के लिए क्वालीफाई कर गया। फाइनल में पेनल्टी शूटआउट में पाकिस्तान के खिलाफ श्रीजेश ने गोल होने से बचाया और टीम इंडिया ने इस मैच को जीतकर सोना हासिल किया. इसके साथ ही भारत पहला ऐसा देश बना जो रियो के लिए क्वालीफाई कर गया था। “वैसे तो बहुत से पल हैं,.... लेकिन एशियन गेम्स में फाइनल जीतने का पल मेरे जीवन का स्वर्णिम पल है।” #8 साल 2014 में भारत चैंपियंस ट्राफी में चौथे स्थान पर रहा, जहाँ टीम ऑस्ट्रेलिया से कांस्य पदक मैच में ऑस्ट्रेलिया से बहुत ही करीबी मैच हार गयी थी. इसके बावजूद श्रीजेश को गोलकीपर ऑफ़ द टूर्नामेंट चुना गया था। इसी साल भारतीय टीम ने कॉमनवेल्थ खेलों में रजत पदक जीता था. जहाँ श्रीजेश ने रक्षण का शानदार नमूना पेश किया था. इस साल उन्होंने शानदार खेल दिखाया. इसलिए वह एफआईएच के गोलकीपर ऑफ़ द इयर अवार्ड के लिए नॉमिनेट हुए थे. लेकिन वह डच गोलकीपर जाप स्टॉकमैन से फाइनल राउंड में मात खा गये थे। #9 27 साल के श्रीजेश बुरी तरह से चोटिल हो गये थे. ये मौका साल 2015 हॉकी वर्ल्ड लीग के सेमीफाइनल का था. रायपुर में डच टीम के साथ कांस्य पदक के लिए हुए इस मैच में श्रीजेश ने शानदार खेल दिखाया था. इस तरह एफआईएच में 33 साल के मैडल सूखे को खत्म किया था। #10 पीआर श्रीजेश को यूपी की फ्रैंचाइज़ी उत्तर प्रदेश विज़ार्ड्स ने साल 2016 के सीआईएल हॉकी लीग के लिए अपनी टीम में बनाये हुए हैं. बीते साल विज़ार्ड्स का प्रदर्शन शानदार रहा है। विज़ार्ड्स ने श्रीजेश को 60 हजार यूएस डॉलर में खरीदा है। वह हॉकी इंडिया लीग में सबसे महंगे गोलकीपर हैं।