रियो पैरालंपिक्स खेलों की जैवलिन थ्रो स्पर्धा में अपने ही वर्ल्ड रिकॉर्ड को तोड़कर गोल्ड मेडल जीतने देवेंद्र झाझरिया को सही मायनों में पहचान 2004 एथेंस गेम्स में मिली थी। एथेंस में उन्होंने 62.15 मीटर के थ्रो के साथ वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाकर गोल्ड मेडल हासिल किया था। रियो में उन्होंने 63.97 मीटर का थ्रो फेंककर अपने ही रिकॉर्ड को ध्वस्त किया। राजस्थान के चुरू के रहने वाले झाझरिया को जिंदगी में काफी कठिनाई से गुजरना पड़ा है। लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अपने लक्ष्य की ओऱ लगातार बढते चले गए। देवेंद्र झाझरिया के बारे में कुछ ऐसी बातें जिन्हें शायद आप नहीं जानते: -देवेंद्र जब 8 साल के थे, तब पेड़ में चढ़ने के दौरान देवेंद्र पर बिजली गिर गई थी, जिसके कारण उनके बायां हाथ कट गया लेकिन इस कमी को उन्होंने अपना हथियार बनाया और अपने सपनों को पूरा किया। -इस हादसे की वजह से उनका शरीर काफी जगह से जल गया था। लेकिन बाद में झाझरिया ने अपने परिवार वालों की मदद से हादसे को पीछे छोड़कर जिंदगी में आगे बढ़े। उनके परिवार वालों ने उन्हें कभी भी बोझ नहीं समझा और हमेशा की आगे बढ़ने के लिए बढा़वा दिया। -देवेंद ने 10 साल की उम्र में जैवलिन थ्रो करना शुरु किया। लगातार प्रैक्टिस की वजह से वो ओपन कैटेगरी में जिले के चैंपियन बन गए। नॉर्मल एथलीट्स के साथ प्रदर्शन करते हुए उन्होंने कई मेडल अपने नाम किए। कॉलेज जाने से पहले उन्हें पैरा स्पोर्ट्स की कोई जानकारी नहीं थी। -स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के एम्पलॉय देवेंद्र को द्रोणाचार्य अवॉर्ड से सम्मानित आरडी सिंह कोचिंग देते हैं। सिंह ने ही देवेंद्र को देश में पैरा खेलों के बारे में जानकारी दी थी। -देवेंद्र झाझरिया ने 2004 एथेंस पैरालंपिक खेलों में जैवलिन थ्रो में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रचा। वो मुरलीकांत पेटकर के बाद पैरालंपिक्स में गोल्ड जीतने वाले दूसरे भारतीय बने। एथेंस और रियो में गोल्ड उन्होंने वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़कर ही जीता। -2004 में वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ने के बाद उन्होंने 2013 में लियोन में हुई IPC वर्ल्ड चैंपियनशिप में चैंपियनशिप रिकॉर्ड बनाकर गोल्ड मेडल जीता। -एथेंस में गोल्ड मेडल जीतने के बाद उन्होंने काफी कम आर्थिक सहायता मिली। 2004 में उनके गोल्ड की वजह से पैरा खेलों को देश में नई पहचान मिली। उन्हें बाद में सरकार और प्राइवेट स्पॉन्सर्स से सहायता मिली। -देवेंद्र क्लब थ्रो में भी देश का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। उन्होंने दुबई में हुई 2015 IPC वर्ल्ड चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीता था। -देवेंद्र 2012 में पद्मश्री से सम्मानित होने वाले देश के पहले पैरा एथलीट थे। 2014 में उन्हें FICCI ने पैरा स्पोर्ट्सपर्सन ऑफ द ईयर चुना। -2 बार के पैरालंपिक गोल्ड मेडल विजेता को पैरा खेलों में 14 साल का अनुभव है। उनका सपना कोच बनकर युवाओं को इस खेल के लिए प्रेरित करना है।