भारत के कई दिग्गज एथेलीट खेल के सबसे बड़े मंच पर अपनी काबिलियत दिखा कर भारत के लिए पदक जीत चुके हैं। ओलंपिक खेलों में वें देश का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। लेकिन इनमें ऐसे भी कई खिलाडी हैं जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन उन्हें कभी ओलंपिक पदक नसीब नहीं हुआ। ये रहे कुछ ऐसे खिलाडी जिन्हें कभी ओलंपिक्स में पदक नहीं मिला: 1. महेश भूपति अपने दो दशक लम्बे करियर में महेश भूपति बड़े ही कामयाब रहे हैं। उनके नाम कई ग्रैंडस्लैम है। चेन्नई में जन्में इस टेनिस खिलाड़ी ने 17 बार के ग्रैंडस्लैम विजेता लिएंडर पेस के साथ अपनी जोड़ी बनाई। भूपति ने कुल चार ग्रैंडस्लैम जीते जिनमें से इस जोड़ी के नाम तीन ग्रैंडस्लैम है। लेकिन एक बात ज्यादा लोगों को नहीं मालुम है, की भूपति मिक्स्ड डबल में ज्यादा कामयाब हैं। भूपति ग्रैंडस्लैम जीतने वाले पहले भारतीय थे। 1997 के फ्रेंच ओपन मिक्स्ड डबल्स का ख़िताब उन्होंने जापानी रिका हारकी के साथ जीता। उसके बाद भूपति ने पेस के साथ जोड़ी बनाकर पहले फ्रेंच ओपन और फिर उसी साल विंबलडन ख़िताब जीता। साल 2001 में दोनों ने मिलकर वापस रोलैंड गारोस के क्ले कोर्ट पर ख़िताब जीता। दोनों ने मिलकर एथेंस 2004 और बीजिंग 2008 ओलंपिक में हिस्सा लिया। बीजिंग ओलंपिक में दोनों क्वार्टर फाइनल तक पहुंचे जहां उन्हें रॉजर फेडरर और स्टेन वावरिंका के हातों हार मिली। दोनों के बीच कई विवाद हुए हैं और शायद यही कारण है की भूपति के नाम कोई भी ओलंपिक पदक नहीं है। हालांकि पेस के नाम सिंगल मुकाबले में एक मैडल है। डबल्स मुकाबले में दोनों की जोड़ी बहुत अच्छी है और अगर इनके रिश्ते के बीच दरार नहीं आती तो ये दोनों मिलकर डबल खेल सकते थे और इससे भारत को एक पदक की उम्मीद होती। 2. सरदार सिंह हॉकी के इतिहास में मौजूदा हॉकी टीम के कप्तान सरदार सिंह ने बहुत नाम कमाया है। 2008 में जब 22 साल के सरदार सिंह ने सुल्तान अजलन शाह कप से भारतीय टीम की कप्तानी संभाली तब वें सबसे कम उम्र के कप्तान बने। सरदार सिंह के नेतृत्व में टीम ने एशियाई खेल, कामनवेल्थ खेल और हॉकी वर्ल्ड लीग में पदक जीते हैं। 2012 समर ओलंपिक्स क्वालीफ़ायर्स में भारतीय टीम ने भी हिस्सा लिया था और वहां पर स्वर्ण पदक जीता। सरदार सिंह को वहां पर प्लेयर ऑफ़ द टूर्नामेंट चुना गया, हालांकि भारतीय टीम आगे बढ़ने में असफल रही थी। इतनी काबिलियत और हुनर होने के बावजूद सरदार सिंह ने अबतक ओलंपिक में कोई भी पदक नहीं जीता है। भारतीय टीम ने साल 2014 में रियो ओलंपिक 2016 के लिए क्वालीफाई कर लिया है। युवा और प्रतिभाशाली टीम के साथ हमे उम्मीद है कि सरदार सिंह इस बार देश के लिए पदक ज़रूर लाएंगे। 3. गुरबचन सिंह रंधावा मशहूर डेकाथलान गुरबचन सिंह रंधावा ने कई राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपने देश का प्रतिनिधित्व किया है और कामयाबी हासिल की है। पंजाब में जन्में इस एथेलीट का सबसे अच्छा प्रदर्शन 1962 के एशियाई खेल में दिखा, जहाँ उन्होंने स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने 1960 और 1964 के ओलंपिक में तीन लॉन्ग जम्प, हर्डल और डेकाथलान के लिए क्वालीफाई किया था। लेकिन वें पदक जीतने में असफल रहे। 1964 में टोकयो ओलंपिक खेल के 110 मीटर हर्डल में उनका 5वां स्थान आया था। इतनी काबिलियत होने के बावजूद रंधावा ने कभी ओलंपिक पदक नहीं जीता और अब वे खेल से संन्यास ले चुके हैं। 4. पी टी उषा पी टी उषा को भारत और भारत के बाहर "पय्योली एक्सप्रेस" के नाम से जाना जाता है। उन्होंने अपना प्रशिक्षण 16 साल की उम्र में स्कूल में होते हुए शुरू कर दिया और मास्को के 1980 ओलंपिक में हिस्सा लिया था। हालांकि अनुभवहीन होने के कारण वें कुछ ज्यादा नहीं कर पाई और वहां से खाली हाथ लौटी। लेकिन इसका बाद उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया और एशियाई खेलों में 13 पदक जीते और कई रिकॉर्ड बनाए। इसके बाद उन्होंने 1984 के ओलंपिक में हिस्सा लिया और सेमीफाइनल में टॉप किया लेकिन अगले दौर में कुछ सेकंड से हार गई। हालांकि उषा ने 1988 के ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया लेकिन वें 1984 का जादू दोहराने में असफल रही। इसके बावजूद वें ट्रैक एंड फील्ड खेल में भारत की ओर से सबसे ज्यादा कामयाब महिला एथलीट हैं। 5. मिल्खा सिंह "द फ़्लाइंग सिख" मिल्खा सिंह भारत के आइकॉन खिलाडी हैं। कामनवेल्थ खेलों के सिंगल मुकाबले वें पदक जीतनेवाले पहले भारतीय थे। करीब पांच दशक तक ऐसा करनेवाले वें एकमात्र खिलाडी थे। उन्हें सबसे ज्यादा कामयाबी एशियाई खेलों में मिली जहाँ दो गेम्स ने उनके नाम 5 पदक और कामनवेल्थ खेल में उनके नाम दो पदक है। मिल्खा सिंह 1956 मेलबॉर्न ओलंपिक, 1960 टोकयो ओलंपिक और 1964 के रोम ओलंपिक में हिस्सा लिया। रोम ओलंपिक में उन्होंने 400 मीटर दौड़ में हिस्सा लिया, लेकिन 200 मीटर तक उनके पास बढ़त थी पर उसके बाद वें मोमेंटम खोते गए। उस दौड़ में वें चौथे आएं और पदक गँवा दिया। भले ही उन्होंने नेशनल रिकॉर्ड बनाया हो, लेकिन ओलंपिक पदक कभी नहीं जीत पाएं। लेखक: अनुराधा संथानम, अनुवादक: सूर्यकांत त्रिपाठी