टोक्यो ओलंपिक में अदिति अशोक ने चौथा स्थान प्राप्त किया। ओलंपिक के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ होगा जब कोई भारतीय गोल्फर इस मुकाम तक पहुंच पाया। स्कूल से पास हुई बेंगलूरू की रहने वाली अदिति ने पहली बार ओलंपिक में पर्दापण रियो ओलंपिक के दौरान किया था। हालांकि इस दौरान वो 41वें स्थान पर रहीं। बावजूद अदिति के इस प्रदर्शन ने भारतीय महिला गोल्फ को विश्व जगत में सम्मान दिलाया वो शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।
आइए एक नजर डालते हैं इस खिलाड़ी के अब तक के सफर पर:
1) शौक के रूप में खेलना शुरू किया
अदिति और गोल्फ की मुलाकात बड़ी दिलचस्प रही। एक बार उनके माता-पिता खाना खाने के लिए रेस्टुरेंट लेकर गए थे। जहां उन्होंने पास में कुछ लोग को गोल्फ खेलते हुए देखा। उसके बाद उन्होंने गोल्फ खेलना शुरू किया। जिसे बाद में उन्होंने इस बतौर पैशन के रूप में अपनाया। 2013 से लगातार भारतीय महिला गोल्फ में अदिति का नाम सभी के लिए चर्चा का विषय बना हुआ है।
2) पिता और मां बतौर कैडी रहते हैं
2016 रियो ओलंपिक में अदिति की माताजी बतौर कैडी उनके साथ मौजूद थी। वहीं पिताजी 2020 टोक्यो ओलंपिक में बतौर कैडी के रूप में मौजूद थे। ऐसा मनोरम रूप सिर्फ आपको भारत में ही देखने को मिल सकता है। जब परिवार के लोग इर्द-गिर्द रहते हैं। उस दौरान किसी भी खिलाड़ी के प्रदर्शन में निखार आता है। हालांकि कई बार खिलाड़ी अपने सगे-संबंधी को देखकर चूक कर देते हैं, लेकिन अदिति के मामले में ऐसा नहीं रहा।
3) गोल्फ को बनाया घर-घर का खेल
भारत में आप लोगों को अक्सर कहते हुए सुनेंगे। मेरे बेटा सचिन तेंदुलकर या मिल्खा सिंह बनेगा। वहीं अदिति के उपलब्धि ने भारतीय परिवार के उदाहरण सूची में एक नाय नाम जोड़ दिया। क्रिकेट प्रेमी देश में जब गोल्फ के बारे में चर्चा हो रही है। वो भी महिला गोल्फ के बारे में इसका मतलब समझ लीजिये कि भारत में इस खेल का भविष्य उज्जवल है।
भारत हमेशा पुरूष प्रधान देश के रूप में जाना जाता है। ऐसे में कोई महिला खिलाड़ी जगह बनाती है तो कहीं ना कहीं तो चर्चा होगी ही। भारतीय गोल्फ में जीव मिल्खा और ज्योति रंधावा जैसे गोल्फर्स का बोल बाला है। ऐसे में अदिति अशोक का यहां तक का रास्ता तय करना आशान नहीं रहा होगा। बहरहाल हमारी तो यही उम्मीद रहेगी कि आने वाले दिनों में कोई गोल्फर भी पदक जीते।