अभिनव बिन्द्रा, भारतीय खेल इतिहास में इस शूटर का नाम स्वर्णिम अक्षरों से लिखा जा चुका है क्योंकि बिन्द्रा ने बतौर शूटर देश को एक बेहतरीन पल से रूबरू करवाया। साल 2008 में बीजिंग ओलंपिक की 10 मीटर एयर रायफल स्पर्धा का गोल्ड मेडल बिन्द्रा ने जीतकर भारत को ओलंपिक इतिहास का उसका पहला एकल पदक दिलाया था। आज की पीढ़ी ने शायद तब पहली बार ओलंपिक खेलों में भारतीय राष्ट्रगान बजते सुना था और पहली बार राष्ट्रीय ध्वज को सबसे ऊपर उठते देखा था। इन्हीं अभिनव बिन्द्रा का आज यानि 28 सितंबर को जन्मदिन है। आज ही के दिन 1982 में बिन्द्रा का जन्म देहरादून में हुआ था।
बचपन से ही शूटिंग में झण्डे गाड़ने वाले बिन्द्रा का टैलेंट इतना लाजवाब था कि कई मौकों पर भारत में प्रतियोगिता के आयोजकों को यकीन ही नहीं होता था कि कोई भारतीय इतनी अच्छी शूटिंग भी कर सकता है। यही वजह है कि बिन्द्रा को एक बार एक ऐसी घटना का सामना करना पड़ा जो शायद किसी का भी आत्मविश्वास तोड़ दे। एक प्रतियोगिता में बिन्द्रा को टॉप स्कोर करने के बावजूद गोल्ड मेडल नहीं दिया गया, वो भी सिर्फ इसलिए कि आयोजकों को यकीन ही नहीं हो रहा था कि कोई युवा इतनी अच्छी शूटिंग कर सकता है।
परफेक्ट स्कोर को नहीं समझ पाए आयोजक
वाकया है नवंबर 1996 का। 14 साल के अभिनव शूटिंग की काफी प्रैक्टिस कर चुके थे और कुछ स्टेट लेवल कॉम्पिटिशन में भाग ले चुके थे। अब वो All India GV Mavlankar शूटिंग प्रतियोगिता में भाग लेने अहमदाबाद गए थे। यह नेशनल चैंपियनशिप के लिए क्वालिफायिंग प्रतियोगिता था। बिन्द्रा ने सारे शॉट में 10 अंक अर्जित कर अधिकतम 400 में से 400 अंक कमाए। बिन्द्रा और उनके कोच कर्नल जगजीर सिंह ढिल्लों काफी खुश थे लेकिन आयोजकों ने बिन्द्रा के नाम के आगे कोई परिणाम लिखा ही नहीं था। आयोजक भी हैरान थे कि एक 14 साल का बालक कैसे परफेक्ट स्कोर कर सकता है। ऐसे में आयोजकों ने बिन्द्रा का स्कोर मानने से मना कर दिया। अपनी Autobiography 'A Shot at History' में अभिनव ने इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा है कि आमतौर पर ऐसी प्रतियोगिताओं में Observers तैनात किए जाते हैं जो पूरे खेल को बारीकी से देखते हैं, लेकिन उस दिन कोई Observer भी नहीं था।
बिन्द्रा की गोलियों को बताया गलत
कर्नल ढिल्लों ने आयोजको को समझाने की पूरी कोशिश की और यह भी बताया कि अभिनव इससे पहले चंडीगढ़ में हुए एक कॉम्पिटिशन में भी 600 में से 600 अंक का निशाना लगा चुके हैं। लेकिन आयोजक नहीं माने और टॉप स्कोरर होने के बावजूद गोल्ड मेडल यानि पहला स्थान बिन्द्रा की जगह दूसरे नंबर पर आने वाले शूटर को दे दिया। अपनी बात को सही बताने के लिए आयोजकों ने ये तक कह दिया कि बिन्द्रा जो गोलियां यानि शूटिंग पैलेट इस्तेमाल कर रहे थे वह आमतौर पर इस्तेमाल होने वाली गोलियों से अलग थीं। बिन्द्रा के मुताबिक उनकी माताजी ने इस वाकये के बाद तत्कालीन अंतर्राष्ट्रीय शूटिंग यूनियन को पत्र लिखकर जवाब मांगा तो यूनियन ने भी बिन्द्रा की गोलियों को सही माना।
प्रदर्शन से दिया जवाब
बिन्द्रा ने इस वाकये के बाद हार नहीं मानी। आमतौर पर एक 14 साल के बच्चे के साथ अगर ऐसी कोई घटना हो तो उसका आत्मविश्वास गिरना लाजमी है। लेकिन ये इस शूटर की खासियत ही थी कि उन्हें आयोजकों ने नेशनल क्वालिफाय करने के लिए दोबारा शूट का मौका दिया। बिन्द्रा दिल्ली में Re-Shoot के लिए गए और आसानी से क्वालिफाय कर लिया। राष्ट्रीय प्रतियोगिता में बिन्द्रा ने कांस्य पदक जीतकर हर उस आयोजक को भी अपनी गोलियों से जवाब दे दिया जिसने बिन्द्रा के प्रदर्शन पर सिर्फ इसलिए सवाल उठाया था क्योंकि वह इस होनहार शूटर के परफेक्ट टैलेंट पर यकीन नहीं कर पा रहा था।
गोल्डन बॉय बिन्द्रा
ये इकलौता वाकया नहीं था। बिन्द्रा ने अपने ओलंपिक गोल्ड तक के सफर में अधिकतर सफलताएं देखीं, लेकिन कई निराशाएं भी हाथ लगीं। कई बार लोगों ने उनके प्रदर्शन पर भी सवाल उठाए। लेकिन जिस धैर्य और साहस का परिचय इस खिलाड़ी ने दिया है वो काबिले-तारीफ है। भारत ने आखिरी बार ओलंपिक में 1980 में गोल्ड हॉकी में जीता था और इतिहास में एक भी खिलाड़ी अकेले गोल्ड लेकर नहीं आया था। 2008 में बीजिंग में जब बिन्द्रा ने आखिरी शॉट के साथ गोल्ड जीता तो पूरे देश में जश्न का माहौल छा गया। अपने शांत स्वभाव के लिए मशहूर बिन्द्रा का वो शांत सा सेलिब्रेशन काफी खेल प्रेमियों के जहन में आज भी ताजा है जहां एक सादगी भरी मुस्कान के साथ वह अपना सोने का तमगा उठा रहे थे। बिन्द्रा ने सही मायने में उस समय 100 करोड़ भारतीयों के सपने को पूरा किया था। हमारी ओर से भी देश के इस स्पोर्ट्स लेजेंड को जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं।