दंगल: मिट्टी से मैट तक की 'धाकड़' कहानी

भारत में पिछले कुछ सालों से खेलों पर आधारित फिल्मों को बनाने के सिलसिले ने एक तेज़ी ली है और इसी क्रम में जो नई फिल्म आई है वो है 'दंगल'। नितेश तिवारी द्वारा निर्देशित ये फिल्म रेसलर महावीर फोगाट और उनकी बेटियाँ गीता और बबिता फोगाट पर आधारित है। फिल्म में एक पिता को अपनी बेटियों को चैंपियन बनाने के जूनून को दिखाया गया है और इसके लिए वो समाज के खिलाफ जाने से भी नहीं हिचकिचाते हैं। गौरतलब है कि गीता फोगाट ने 2010 और बबिता फोगाट ने 2014 कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत के लिए कुश्ती में स्वर्ण पदक जीता था। गीता कॉमनवेल्थ महिला रेसलिंग में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला रेसलर भी हैं। अब आते हैं फिल्म पर। ये फिल्म एक ऐसे रेसलर की कहानी है, जिसका सपना है कि उसका देश रेसलिंग में स्वर्ण पदक जीते। लेकिन महावीर फोगाट खुद रेसलिंग करते हुए अपने इस सपने को पूरा नहीं कर पाते हैं और उनका ये सपना उनकी बेटियाँ पूरा करके दिखाती हैं। फिल्म में हरियाणा के एक ऐसे जगह की कहानी दिखाई गई है, जो काफी पिछड़ा हुआ है और ऐसी जगह पर महावीर फोगाट अपनी बेटियों को कुश्ती चैंपियन बनाने की जिद्द को आगे ले जाना चाहते हैं, जहाँ लोगों की ये सोच है कि लड़कियों को सिर्फ घरों तक ही सीमित रहना चाहिए। महावीर फोगाट की बेटियों के 'मिट्टी से मैट' तक के इस 'धाकड़' सफ़र को फिल्म में बहुत ही खूबसूरती से दिखाया गया है। पिता की कोचिंग में नेशनल चैंपियन बनने के बाद नेशनल स्पोर्ट्स अकादमी में अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंटों की तैयारी के लिए गई गीता के उस समय के मनोभाव को अभिनेत्री फातिमा सना शेख ने काफी संजीदे से निभाया है। गीता के बचपन का किरदार निभाने वाली ज़ाइरा वसीम ने भी काफी बढ़िया अभिनय किया है और उन्होंने किरदार को बेहतरीन तरीके से 'बिल्ड-अप' किया है। गीता के अलावा बबिता फोगाट के भी पिता की ट्रेनिंग में नेशनल चैंपियन बनने से लेकर नेशनल स्पोर्ट्स अकादमी तक पहुंचने की कहानी को बयाँ किया गया है। बबिता के किरदार में सान्या मल्होत्रा ने बहुत ही बढ़िया अभिनय किया है, वहीं उनके बचपन का किरदार निभाने वाली सुहानी भटनागर ने भी काफी अच्छा अभिनय किया है। आमिर खान जैसे मंझे हुए अभिनेता ने महावीर फोगाट के किरदार को इतनी बेहतरीन तरीके से निभाया है कि इसका पता आपको सिर्फ फिल्म देखकर ही चल सकता है। फिल्म के पहले हाफ में उनके और उनकी बेटियों के बीच के रिश्ते को लेखक ने शानदार तरीके से लिखा है। एक पिता और एक रेसलिंग कोच के तौर पर महावीर फोगाट के दिमाग में चल रही ज़द्दोजेहद को आमिर खान ने अपने अभिनय से बखूबी दिखाया है। पहला हाफ जहाँ महावीर फोगाट के दोनों बेटियों के कड़ी मेहनत, ट्रेनिंग, सामाजिक रुकावटों, जीत-हार और भावनाओं पर ज्यादा आधारित है, वहीं दूसरा हाफ कहीं न कहीं कहानी को एक फ़िल्मी रूप देता है। लेकिन इसके बावजूद किसी भी कलाकार के अभिनय में कोई कमी नहीं आती है और दूसरा हाफ, पहले हाफ को काफी अच्छे से आगे ले जाता है। महिला रेसलिंग को फिल्म में बढ़ावा देते हुए इतने शानदार तरीके से दिखाया गया है कि आपको ये नहीं लगेगा कि गीता के किरदार में फातिमा या बबिता के किरदार में सान्या एक रेसलर नहीं हैं। दोनों के बचपन का किरदार निभाने वाली ज़ाइरा वसीम और सुहानी भटनागर ने भी किरदार को मजबूती प्रदान की है। अन्य कलाकारों में महावीर फोगाट की पत्नी दया कौर के रूप में साक्षी तंवर और उनके भतीजे के रूप में अपारशक्ति खुराना ने भी अपने किरदार के साथ पूरी तरह से न्याय किया है। गीता और बबिता के नेशनल स्पोर्ट्स अकादमी के कोच के तौर पर गिरीश कुलकर्णी को भी काफी बढ़िया स्क्रीन टाइम मिला है और उन्होंने इस किरदार को अच्छे से निभाया है। प्रीतम के संगीत और अमिताभ भट्टाचार्य के गीतों ने फिल्म में अलग जान डाली है। उसके अलावा दलेर मेहँदी की आवाज़ में दंगल का टाइटल ट्रैक भी आपको फिल्म के दौरान बांधे रखने के लिए काफी है। दंगल एक ऐसी कहानी है जिसमें ये दिखाया गया कि भारत में एक व्यक्तिगत खेल में अगर आपको सफल होना है, तो किस तरह की मेहनत और लगन की जरूरत होती है। दंगल में भावनाओं की कोई सीमा नहीं है और अगर खेलों पर बनी एक अच्छी फिल्म देखना चाहते हैं, तो शानदार डायलॉग वाली ये बेहतरीन तरीके से अभिनीत फिल्म जरुर जाकर देखें।