पद्मश्री से सम्मानित और 2014 रियो पैरालंपिक की सिल्वर मेडलिस्ट दीपा मलिक ने इस साल 23 जुलाई से 8 अगस्त के बीच टोक्यो में होने वाले ओलंपिक आयोजन के लिए ज्यादा से ज्यादा एथलीट्स को प्रखर बनाने में एक अलग भूमिका निभाई है। रियो से पहले, दीपा मलिक खेलों की दौड़ में खुद को तैयार करने में व्यस्त थीं, और अब उनके पास टोक्यो के लिए कमर कसने वाली पूरी भारतीय टीम दल की जिम्मेदारी है।
दीपा मलिक ने कहा, 'यह बहुत ही विडंबनापूर्ण है कि विकलांगता से योग्यता हासिल करने तक की यात्रा तब शुरू हुई, जब हर किसी ने मुझसे कहा कि मेरा जीवन एक कमरे में खत्म हो जाएगा। मैं कभी भी कमरे से बाहर नहीं निकल पाऊंगी। तब मैंने अपने आप से कहा कि मैं एक कमरे में बंद होकर नहीं रहूंगी और बाहर निकलकर रहूंगी। चाहे वह स्विमिंग हो, बाइक चलाना या रैलिंग करना हो, मैं हमेशा मैदान पर रहती थीं। मगर चेयरपर्सन पद की जिम्मेदारी ने मुझे वापस एक कमरे में बैठा दिया है। मुझे बाहर के कई लोग आकर मिलते हैं। इसलिए चाहती हूं कि मैं अंदर रहकर बाहर वालों को कुछ दे सकूं। वहां रहकर मैं उन्हें ऊपर उठाने के साथ और सशक्त बनाने में मदद कर सकती हूं।'
दीपा मलिक की भूमिका स्पष्ट
एक एथलीट के रूप में करीब दो दशक बिताने के बाद, दीपा मलिक ने एक अलग जिम्मेदारी निभाने का फैसला किया। दीपा मलिक फरवरी 2020 में भारत की पैरालंपिक समिति की अध्यक्ष चुनी गईं। दीपा ने ओलंपिक चैनल को खेल प्रशासन में शामिल होने के पीछे के कारणों पर कहा, 'मैंने ज्यादातर मेडल अपने देश के लिए एक जिम्मेदार एथलीट के रूप में जीते हैं। मैंने एशियाई खेल, विश्व चैंपियनशिप जीती, रिकॉर्ड भी तोड़े और रियो में पैरालंपिक पदक जीता है।'
दीपा मलिक ने आगे कहा, 'मैंने हमेशा खुद को खिलाड़ी से ज्यादा खेलों के लिए एक कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में माना है, जो एक बदलाव का नेतृत्व कर रहा है। जब भी मैंने पदक जीता तो मुझे लगा कि मैं बदलाव ला सकती हूं। इसने मुझे कुछ नीतियों को बदलने और पैरा-खेल के लिए कुछ जागरूकता पैदा करने के लिए मजबूर करूंगी। इसके पीछे मेरा मकसद था कि खेल जरिये लोग कैसे विकलांगता के बावजूद सशक्त बन सकते हैं।'
पीसीआई की चेयरपर्सन के रूप में खुद की भूमिका का उनके दिमाग में स्पष्ट खाका तैयार है। वह इसमें मिलने वाली चुनौतियों से भलीभांति परिचित हैं और उन्हें अपने माथे पर लेने के लिए भी तैयार हैं।