हौसलों के परों पर उड़ते हुए उड़नपरी के नाम से लोकप्रिय भारतीय धाविका हिमा दास किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। असम के ढिंग कस्बे के छोटे से गाँव में एक किसान परिवार के घर जन्मी इस 19 वर्षीय लड़की ने पिछले एक महीने में सभी देशवासियों को गौरवान्वित महसूस कराया है। हिमा दास ने पांच अलग-अलग दौड़ प्रतिस्पर्धाओं में स्वर्ण पदक जीतकर 'मेहनत का फल मीठा होता है' वाली कहावत को चरितार्थ किया है।
चार सौ मीटर दौड़ में 50.79 सेकण्ड के समय के साथ भारतीय रिकॉर्ड अपने नाम रखने वाली हिमा दास सबकी चहेती बन चुकी हैं। जिसे दौड़ और एथलेटिक के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी वे लोग भी हिमा दास को बखूबी जानते हैं। जानना भी चाहिए क्योंकि इस भारतीय बेटी ने काम ही कुछ ऐसा किया है। शुरुआत में फुटबॉल खिलाड़ी बनने की चाहत रखने वाली इस हिमा दास शारीरिक शिक्षक की सलाह के बाद दौड़ में हाथ आजमाने लगी और कड़ी मेहनत के बल पर अपना एक अलग नाम बनाया।
पिछले साल ऑस्ट्रेलिया में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में 400 मीटर और 4x400 मीटर रिले में सोना जीतने के बाद इस धाविका ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। लोगों ने उन्हें पीटी ऊषा की तरह उड़नपरी बुलाना शुरू कर दिया है। कहते हैं मुश्किल परिस्थिति और गरीबी को उस परिवेश से आने वाला व्यक्ति ही अच्छी तरह समझता है। यही वजह रही कि हिमा ने अपनी विजेता राशि में से आधी असम बाढ़ पीड़ितों के लिए दान कर दी। इसके अलावा उन्होंने लोगों से भी बाढ़ग्रस्त पीड़ितों की मदद करने का आह्वान किया।
इस नई भारतीय उड़नपरी नेे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक ट्वीट का जवाब देते हुए देश को और भी गोल्ड मेडल दिलाने की बात कही। शुरुआत में धीमे कदमों से दौड़ते हुए लय पकड़ने के बाद हिमा दास हवा से बातें करते हुए लम्बे डग भरती हैं और सभी प्रतिभागियों को पीछे छोड़ते हुए दर्शकों को दांतों तले उंगलियां दबाने पर मजबूर कर देती हैं। उनकी अगली रेस 28 जुलाई को होनी है।
अक्सर भारत में लोगों को क्रिकेट पर ही बात करते हुए देखा जाता है कि इस खिलाड़ी को संन्यास लेना चाहिए, फलां खिलाड़ी को टीम से बाहर करना चाहिए आदि। हिमा दास ने अपनी तपस्या और मेहनत के सहारे चुपचाप देश का नाम रौशन करते हुए लोगों को अपना मुरीद बना लिया है। आज वे देश की करोड़ों बेटियों के लिए एक प्रेरणा है। अभी तो शुरुआत है, हिमा दास को और आगे जाना है और इसी तरह देश का गौरव बढ़ाना है।