दुनियाभर में 'फ़्लाईंग सिख' के नाम से मशहूर मिल्खा सिंह आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन विश्व खेल इतिहास में उनका नाम हमेशा अमर रहेगा। मिल्खा सिंह भारत के सबसे बेहतरीन धावक थे, जिनकी कमी हमेशा खलती रहेगी। 'फ्लाइंग सिख' मिल्खा सिंह ने देश के लिए 'एशियाई खेलों' में 4 स्वर्ण पदक और 'राष्ट्रमंडल खेलों' में 1 स्वर्ण पदक जीत कर देश का नाम रौशन किया था।
मिल्खा सिंह ने देश के लिए सैकड़ों मेडल जीत कर अपना नाम इतिहास की किताबों में दर्ज करा दिया। पर फिर भी मिल्खा सिंह की जीत से ज़्यादा चर्चा, उनकी एक हार की होती है। आज आपसे मिल्खा सिंह की एक ऐसी ही हार का जिक्र करने जा रहे हैं। ये घटना 1960 'रोम ओलंपिक' की हार की है, इसलिये भी इसे हमेशा याद किया जाता है।
आज भी मिल्खा सिंह की इस हार को लेकर कई बातें कही जाती हैं। कहते हैं कि उनके पीछे मुड़कर देखने से भारत ने गोल्ड मेडल गंवा दिया था। लेकिन क्या सच में ऐसा हुआ था या फिर ये सब सिर्फ़ मनगढ़त कहानियां हैं? चलिए जानते हैं क्या थी असल सच्चाई? ऐसा कहा जाता है कि 'रोम ओलंपिक' में भाग लेने से 2 साल पहले से ही मिल्खा सिंह विश्व स्तर के एथलीट बन चुके थे। 1958 में मिल्खा सिंह ने कार्डिफ़ में हुए 'राष्ट्रमंडल खेलों' में तत्कालीन विश्व रिकॉर्ड होल्डर मेल स्पेंस को ज़बरदस्त पटखनी देते हुए गोल्ड मेडल जीता था।
इसलिये रोम में भारतीय एथलेटिक्स टीम के उप कोच वेंस रील को पूरा यकीन था कि मिल्खा सिंह इस बार पदक ज़रूर लायेंगे। रोम ओलंपिक के फ़ाइनल से पहले मिल्खा सिंह 5वीं हीट में दूसरे स्थान पर कब्ज़ा जमाने में कामयाब रहे। क्वार्टर फ़ाइनल और सेमीफ़ाइनल में भी मिल्खा सिंह दूसरे नबंर पर ही रहे। अमनून सेमीफ़ाइनल दौड़ के अगले दिन फ़ाइनल दौड़ होती।
आमतौर पर सेमीफ़ाइनल दौड़ के अगले दिन ही फ़ाइनल दौड़ होती है, लेकिन 'रोम ओलंपिक' में 400 मीटर की फ़ाइनल दौड़ 2 दिन बाद रखी गई। इस तरह से मिल्खा सिंह को उस दौड़ के बारे में सोचने का अधिक मौका मिला और वो पहले से ज़्यादा नर्वस हो गये। फाइनल मुकाबले में कार्ल कॉफ़मैन को पहली लेन मिली। वहीं अमेरिका के ओटिस डेविस दूसरी लेन। मिल्खा सिंह की किस्मत देखिये उन्हें 5वीं लेन मिली। उनकी बगल की लेन में एक जर्मन एथलीट मौजूद था, जो 6 धावकों में सबसे कमज़ोर साबित हुआ।
इस हार के बारे में मिल्खा सिंह ने कहा था कि 'जब मैंने आख़िरी कर्व ख़त्म किया और आख़िरी 100 मीटर पर आया, तो मैंने देखा कि 3-4 लड़के जो मुझसे पीछे दौड़ रहे थे, मुझसे आगे निकल गए। मुझसे उस समय जो ग़लती हुई उससे मेरी किस्मत का सितारा और भारत का मेडल मेरे हाथ से गिर गया।'