टोक्यो पैरालंपिक में भारतीय खिलाड़ी के इतिहास के बारे में बात करें तो एक सुंदर और उज्जवल भविष्य के बारे में दर्शाता है। बावजूद इसके कई ऐसे खिलाड़ी रहे हैं। जिनके बारे में हमारा देश नहीं जानता। आइए एक झलक उन पदकवीरों पर जिन्होने देश का मान-सम्मान बढ़ाया है।
1) मुरलीकांत पेटकर
भारतीय आर्मी से ताल्लुक रखने वाले मुरलीकांत पेटकर ने देश का मान-सम्मान हमेशा बढ़ाया है। पेटकर ने भारत के लिए 1972 हेडेलबर्ग ओलंपिक में बतौर तैराक पदक जीता था। ये भारत के पहले ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने अपने देश का ओलंपिक और पैरालंपिक में प्रतिनिधित्व किया है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मुक्केबाज पेटकर 1965 में भारत-पाकिस्तान जंग में अपने हाथ गंवा बैठे थे। जंग में हाथ गंवाने के बाद उन्होने अपने एक खेल से दूसरे खेल की तरफ जाना पसंद किया।
2) जोगिंदर सिंह बेदी
भारत के ट्रैक एंड फील्ड एथलीट जोगिंदर सिंह बेदी भारत की तरफ से पैरालंपिक खेलों में सबसे ज्यादा पदक जीतने वाले खिलाड़ी हैं। बेदी के नाम शॅाट पुट इवेंट में रजत तो वहीं डिस्कस और जैवलीन थ्रो में कांस्य है। सबसे खास बात ये है। उन्होंने सारे पदक एक ही प्रतियोगिता में जीता है। इस पैरालंपिक खेलों का आयोजन न्यूयॅार्क, अमेरिका में हुआ था।
3) भीमराव केसरकर
जैवलीन थ्रोअर भीवराव केसरकर ने भी 1984 ओलंपिक में रजत पदक अपने नाम किया था। इसी प्रतियोगिता में जोगिंदर सिंह ने कांस्य पदक अपने नाम किया था।
4) राजेंद्र सिंह राहेलु
राजेंद्र सिंह राहेलु ने एथेंस पैरालंपिक में कांस्य पदक अपने नाम किया था। 56 किलो वर्ग पावरलिफ्टिंग में राहेलु ने भारत को कांस्य पदक दिलाया था। पंजाब के रहने वाले राहेलु 8 वर्ष की उम्र से ही पोलियो के शिकार हैं। बावजूद इसके उन्होंने देश के लिए पदक जीता है।
भारत का पैरालंपिक खेलों में कुल मिलाकर प्रदर्शन अच्छा रहा है। तमाम सुविधाएं ना मिलने के बावजूद जिस प्रकार हमारे खिलाड़ियों ने प्रदर्शन किया वो काबिल-ए-तारीफ है। खिलाड़ियों को देश की धरोहर माना गया है।ऐसे में उनका देख-रेख सरकार को बड़े ध्यानपूर्वक करना चाहिए। आने वाले दिनों में हमारी उम्मीद अन्य लोगों की तरह यही है। उनको वो सब कुछ मिले जिसके वो हकदार है।