जब भी बात खेलों की होती है तो खेल के मैदान पर सेना के खिलाड़ियों के दिखाये गए दमखम और सफलता की बात के बिना अधूरी ही रहती है। राजवर्धन सिंह राठौड़, जीतू राय, गुरप्रीत सिंह, चैन सिंह, शिवा थापा, खेत राम, संदीप सिंह, नितेन्द्र सिंह रावत, गोपी टी, देवेंद्र सिंह, जैसे भारतीय सेना से जुड़े हुए कुछ नाम भर है जिन्होंने हाल के सालों में विभिन्न मंचों पर कामयाबी अर्जित एक पहचान बनायी और देश का गौरव बढ़ाया।
कुछ सालों पहले भारतीय सेना ने खेलों के स्तर को बढ़ाने के लिए 'मिशन ओलिंपिक विंग्स' नाम का एक कार्यक्रम चलाया जिसने कम समय में तीरंदाज़ी, मुक्केबाज़ी, निशानेबाज़ी, भारत्तोलन, कुश्ती, और नौकायन जैसे खेलों में भारत के लिए सफलता अर्जित करने वाले खिलाडियों का निर्माण किया है। इस कार्यक्रम से बहुत सितारे सामने आये पर खेलों और सेना की कहानी सिर्फ यही तक हो ऐसा भी नहीं है। खाफी समय पहले से लेकर आज तक सेना से देश के लिए खेल के मंच पर सफलता अर्जित करने वाले खिलाड़ियों के सामने आने का सिलसिला जारी है। आईये एक नज़र डालें इतिहास के पन्नो पे की कैसे विभिन्न खेलों में खिलाड़ियों ने अपने प्रदर्शन के दम समय-समय पर देश का नाम रौशन किया: एथलेटिक्स
बात करे सेना की एथलेटिक्स में तो मिल्खा सिंह शायद सफलता की शुरुआत रहे भारत के लिए. 1960 में ओलंपिक्स खेलों चौथे स्थान पर आये और चंद पलों से पदक से चुके. 1958, 1962 के एशियाई खेलों और फिर 1958 के राष्ट्रमंडल खेलों की 400 मीटर दौड़ जीत कर 'फ्लाइंग सिख' नाम का तमगा पाया। यहाँ बात पान सिंह तोमर की भी करना जरुरी है जिन्होंने 1958 में टोक्यो में हुए एशियाई खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया और राष्ट्रीय स्तर पर 7 सालों तक रिकॉर्ड चैंपियन भी बने रहे। हाल ही में मिल्खा और तोमर दोनों ही के ऊपर बनी फिल्मे भी बनी है। अन्य खिलाडियों में श्रीराम सिंह शेखावत, बसंत बहादुर राणा, सुरिंदर सिंह, अनिल कुमार प्रकाश, बसंत बहादुर राणा जैसे चंद नाम भर है जिन्होंने सेना का नेतृत्व एथलेटिक्स खेलों के मंच पर किया बल्कि सफलता भी अर्जित की। हाल के वर्षों में भीम सिंह, राम यादव, चाँद राम, हमजा चंद लोकप्रिय नाम रहे। मुक्केबाज़ी
मुक्केबाज़ी में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का गौरव बढ़ने वालों में से कई नाम सेना से ही हैं। सेना के मुक्केबाज़ पदम् बहादुर माला 1962 में जकार्ता में हुए एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय बने। 60 और 70 के दशक में हवा सिंह ने अपनी अलग ही पहचान बनाई और 1961 से 1972 तक लगातार राष्ट्रीय विजेता रहे और साथ ही 1966 और 1970 के एशिया खेलों में स्वर्ण पदक विजेता भी रहे। गोपाल देवांग, महताब सिंह, धर्मेंद्र सिंह यादव, राजेंद्र प्रसाद, और एम् वेणु जैसे कई नाम रहे सेना से जुड़े जिन्होंने समय समय पर देश का सम्मान बढ़ाया। 90 में डिंको सिंह भारत के सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाज़ के रूप में उभरे। 1997 में थाईलैंड में किंग्स कप टूर्नामेंट और 1998 में एशिया खेलों में स्वर्ण पदक विजेता रहे। हाल के वर्षों में शिवा थापा एक ऐसे मुक्केबाज़ है जिन्होंने मुक्केबाज़ी चैंपियनशिप में पदक जीते और 2012 में ओलिंपिक के लिए भी चयनित हुए। इनके अलावा सर्विसेज के सोम बहादुर पूण, सुरंजॉय सिंह, गुरुचरण सिंह, नानाओ सिंह, नार्जित सिंह ने भी कई अंतराष्ट्रीय पदक देश के लिए लाये हैं। निशानेबाज़ी
भारतीय सेना से आये हुए निशानेबाज़ों ने हमेशा निशाना सही लगते हुए देश के लिए जीत अर्जित की है। मध्य प्रदेश के महू में स्थित सेना की शाखा का इसमें विशेष योगदान रहा है और इसमें दो राय ये भारत को सर्वश्रेष्ट निशानेबाज़ देने वाली जगह बन चुकी है। ग्रेनेडियर रेजिमेंट से आये हुए कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने 2004 के एथेंस ओलंपिक्स में पुरुष डबल ट्रैप प्रतियोगिता में रजत पदक हासिल कर इतिहास रचा और साथ ही 2002 और 2006 के राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीत कर अपनी एक अलग पहचान बनाई। 2012 के ओलंपिक्स में 25 मीटर रैपिड फायर पिस्टल में भारत के लिए रजत पदक जीतने वाले सूबेदार विजय कुमार का नाम कैसे भुलाया जा सकता है जिन्होंने राष्ट्रमंडल और एशिया खेलो में पदक तो जीते ही साथ ही विश्व चैंपियनशिप में भी रजत पदक विजेता रहे है। हाल के दिनों में जीतू राय ने अलग अलग स्तर पर पदक जीते हैं। गोरखा राइफल में नायब सूबेदार जीतू ने 2014 राष्ट्रमंडल खेलो और एशिया खेलों में स्वर्ण पदक हासिल किया और साथ ही 2014 विश्वकप में २ रजत और एक स्वर्ण पदक भी जीतने में सफल रहे। इनके अलावा सेना के ही हरप्रीत सिंह और गुरप्रीत सिंह ने भी राष्ट्रमंडल खेलों जैसे मंचों पर पदक जीत सेना और देश का गौरव बढ़ाया है। हॉकी बात हॉकी यानि भारत के राष्ट्रीय खेल करें तो स्वतंत्रता के बाद देश के पहले सितारे खिलाड़ी बने मेजर ध्यानचंद भारतीय सेना की पंजाब रेजिमेंट से थे. अपनी कला और जादुई खेल कौशल के लिए दुनिया भर में मशहूर हुए ध्यानचंद ने अपने अद्भुत खेल के चलते भारत को 1928, 1932, और 1936 के ओलिंपिक में भारत पदक दिलाया। आगे चल कर इगनेस टर्की भी भारत सेना से खेलों के मैदान में आये और कप्तान बने, साथ ही आगे चल कर अर्जुन पुरष्कार विजेता भी बने. इसके अलावा भारतीय सेना से जुड़े हुए संजीव राजपूत, चैन सिंह, ओमकार सिंह, पेम्बा तमांग और धनंजय महादिक भी भारतीय सेना से जुड़े खिलाडी रहे जिन्होंने राष्ट्रमण्डल और एशिया खेलों में देश की हॉकी टीम का प्रतिनिधित्व भी किया। तीरंदाजी
निशानेबाज़ी की तरह ही तीरंदाज़ी भी धैर्य और एकाग्रता का खेल है और इस खेल में भी हमेशा समय समय पर भारतीय सेना ने अपने खिलाड़ियों के दम पर देश का गौरव बढ़ाया। 58 गोरखा ट्रेनिंग सेण्टर शिलांग का प्रतिनिधित्व करने वाले तरुणदीप राय ने भारत की और से ओलिंपिक खेलों में हिस्सा लिया और चीन में हुए एशिया खेलो में रजत पदक और मेड्रिड, स्पेन 2005 में सम्पन्न हुई विश्व चैंपियनशिप में भारतीय टीम के साथ रजत पदक जीतने में सफल रहे। मांझी सवैयाँन का भी नाम खाफी जाना जाता है क्यूंकि उन्होंने 2004 ओलिंपिक में भारत की और से भाग तो लिया ही साथ ही 13वी और 14 वी एशिया निशानेबाज़ी चैंपियनशिप में टीम इवेंट में रजत पदक भी जीता। फुटबॉल भारतीय सेना की 'गोरखा राइफल्स', 'गढ़वाल राइफल्स', 'कुमाऊँ रेजिमेंट, और 'असम रेजिमेंट' जिसमे की हिमालय के क्षेत्र से ज्यादातर खिलाड़ी आतें है, भारत में फुटबाल की महाशक्ति माने जाते है। 60 के दशक में गोरखा ब्रिगेड फूटबाल टीम का वर्चस्व रहा , 1966 और 1969 में डुरंड कप के विजेता बने। वही मद्रास रेजिमेंटल सेंट्रल टीम ने 1955 और 1958 में डुरंड कप जीत सेना का वर्चस्व बनाये रखा। इसके अलावा सेना के खिलाड़ियों से भरी सर्विसेज की टीम भी भारतीय फुटबॉल में एक महाशक्ति बन उभरी जब 5 बार संतोष ट्रॉफी के अलावा वर्तमान राष्ट्रीय फुटबॉल चैंपियंस भी बने। गोरखा राइफल्स के श्याम थापा, अमर बहादुर गुरुंग और मद्रास रेजिमेंट के पीटर थंगराज जैसे खिलाडियों ने फुटबाल में भारत की उम्मीद बनाये रखने का काम किया है। नौकायन
2010 में चीन में हुए एशिया खेलों भारत के लिए नौकायन में पहला स्वर्ण पदक जीत इतिहास रचने वाले बजरंग लाल ताखर भारतीय सेना की राजपुताना राइफल्स में एक नायब सूबेदार हैं. बजरंग ने 2006 दोहा एशिया खेलों में भारत के लिए पहला रजत पदक भी जीता था। इनके अलावा मेजर जनरल मोहम्मद अमिन नाइक भी एक विश्व स्तर के नाविक हैं उन्होंने 1982 एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीता और उन्हें उनकी उपलब्धियों के लिए अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया. इनके अलावा मेजर भनवाला, नायब सूबेदार दलवीर सिंह जैसे अन्य नाम भी हैं जो सेना से जुड़े हो कर नौकायन में देश के लिए खेले। भारत्तोलन सेना से आये भारोत्तोलकों ने हमेशा विश्व मंच पर भारत के लिए पदक और सम्मान जीतने का कार्य किया। कतुला रवि कुमार ने 2010 राष्ट्रमण्डल खेलों की 69 किलो वर्ग में स्वर्ण पदक जीता। इनके अलावा चंदकांत मालिल संदीप सिंह, रमेश कुमार, वी प्रभाकर ने भी सेना की और से भारत के लिए विश्व मंच पर पदक जीते हैं। लेखक: गौतम लालोट्रा अनुवादक: राहुल पांडे