भारत के 8 युवा ओलंपियन और उनके पहले टूर्नामेंट में उनका प्रदर्शन

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सालों से ओलंपिक खेलों में कई भारतीय खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया है। भले ही सभी खिलाड़ियों को कामयाबी न मिली हो, लेकिन भविष्य में शानदार प्रदर्शन करनेवाले खिलाड़ियों की हमे एक झलक मिली। यहाँ पर हम सभी युवा ओलंपिक खिलाडी और उनके पहले टूर्नामेंट में उनके प्रदर्शन के बारे में बात करेंगे। सुचना: यहाँ पर उन खिलाडियों को चुना गया है जिनकी उम्र अपना पहला ओलंपिक खेलते हुए 20 साल से कम थी। 1. पी.टी.उषा- 16 साल और 69 दिन (मास्को 1980) मिस्टर ओ.एम. नाम्बियार पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पी.टी.उषा की काबिलियत को जाना और 1979 से उन्हें परीक्षण देने लगे। इसका फल उन्हें अगले ही साल मिला जब पी.टी.उषा ने 1980 के मास्को ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया। हालांकि अपने पहले ओलंपिक में उषा का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा और उन्होंने 100 मीटर की दौड़ 12.27 सेकंड में पूरा किया। भले ही शुरुआत अच्छी न हो, लेकिन भविष्य में उन्होंने भारत के लिए बहुत कुछ किया और कई रिकॉर्ड बनाए। 2. अभिनव बिंद्रा- 17 साल और 352 दिन (सिडनी 2000) [caption id="attachment_11343" align="aligncenter" width="800"]अपने स्वर्ण पदक के साथ अभिनव बिंद्रा अपने स्वर्ण पदक के साथ अभिनव बिंद्रा[/caption] अभिनव बिंद्रा को ओलंपिक पदक जीतने के लिए तीन ओलंपिक खेलों तक इंतज़ार करना पड़ा। ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में साल 2000 में आयोजित ओलंपिक खेल में हिस्सा लेने वाले सबसे युवा खिलाड़ी थे अभिनव बिंद्रा। भारत की ओर से 65 खिलाडी ऑस्ट्रेलिया में ओलंपिक खेलों में हिस्सा लेने गए थे, उसमे से सबसे छोटी उम्र के खिलाडी थे, अभिनव बिंद्रा। पुरुषों के 10 मीटर शूटिंग प्रतियोगिता में उनका प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा और 590 अंकों के साथ वें 11 वें स्थान पर रहे। 3. दीपिका कुमारी- 18 साल और 43 दिन (लंदन 2012) dk1-1460811486-800 लंदन में खेला गया 2012 का ओलंपिक खेल, यहाँ पर आयोजित तीसरा ओलंपिक खेल था। 83 सदस्यों का भारतीय दल लंदन की ओर रवाना हुआ और उसमें से 6 तीरंदाजी के खिलाडी थे। उसमें एक 18 साल की लड़की भी थी, जिसने पहले ही तीरंदाजी की दुनिया में अपना कमाल दिखाया था। उसी साल अंताल्या वर्ल्ड कप में स्वर्ण जीतकर दीपिका कुमारी की रैंकिंग में सुधार देखा गया था। हालांकि अपने पहले ओलंपिक खेल में उनका प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा और महिला रिकर्व के पहले ही राउंड में उन्हें ग्रेट ब्रिटेन की एमी ओलिवर के हाथों हारकर बाहर जाना पड़ा। 4. साइन नेहवाल- 18 साल और 144 दिन (बीजिंग 2008) nehwal5-1458476530-800 एशियाई सॅटॅलाइट चैंपियनशिप को दो बार जीतकर और साल 2008 में वर्ल्ड जूनियर चैंपियनशिप की उप-विजेता बनकर साइन नेहवाल ने पहले ही अपनी पहचान बना ली थी। बीजिंग ओलंपिक उनका पहला ओलंपिक था और उनसे कुछ ज्यादा अपेक्षा नहीं थी। लेकिन सभी चौंकाते हुए साइन नेहवाल क्वार्टरफाइनल में पहुंची जहां पर उन्हें हांगकांग की वांग चेन के हातों हार मिली। इसके बाद लंदन ओलंपिक्स में वें एक कड़म आगे बढ़ते हुए कांस्य पदक जीता। 5. शिव थापा 18 साल और 263 दिन (लंदन 2012) shiva-thapa-boxing-1459408356-800 लंदन ओलंपिक्स में शिव थापा ने सबसे कम उम्र के बॉक्सर के रूप में शुरुआत करते हुए ओलंपिक्स खेलों में इतिहास बनाया। हालांकि उनके पहले ओलंपिक में उनका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा और बैंटमवेट कैटेगिरी में अपने पहले ही मुकाबले में मेक्सिको के ऑस्कर वाल्डेज़ फिररो के हातों हार मिली।6. विजेंद्र सिंह 18 साल और 289 दिन (एथेंस 2004) vijender1-1461677120-800 भले ही आज विजेंद्र सिंह प्रोफेशनल बॉक्सिंग की दुनिया में शिखर पर पहुँच गए हों, लेकिन 12 साल पहले अपने देश में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद उन्हें एथेंस ओलंपिक में हिस्सा लेने का मौका मिला था। 18 साल की उम्र में उन्होंने एफ्रो-एशियाई खेलों में अच्छा प्रदर्शन किया था। लेकिन उनके ओलंपिक खेलों की शुरुआत कुछ खास नहीं रही और लाइटवेट कैटेगरी में उन्हें टर्की के मुस्तफा कार्गोल्लु के हातों पहले ही राउंड में हार मिली। 7. लिएंडर पेस- 19 साल और 38 दिन (बार्सिलोना 1992) leander-paes-3 लिएंडर पेस की ओलंपिक शुरुआत 24 साल पहले हुई पहले हुई जब उन्होंने 19 साल की उम्र में रमेश कृष्णा के साथ मिलकर समर ओलंपिक्स में हिस्सा लिया और क्वार्टर फाइनल तक पहुंचे। हालांकि पुरुषों के सिंगल मुकाबले में उन्हें कुछ ज्यादा कामयाबी नहीं मिली और वें पहले ही दौर में बाहर हो गए। रियो ओलंपिक उनका सातवां ओलिंपिक है और यहाँ पर वें अपना दूसरा और डबल मुकाबले में अपना पहला पदक जीतने की कोशिश करेंगे। 8. सौम्यजीत घोष- 19 साल और 109 दिन (लंदन 2012) souma-1460814879-800 लंदन ओलंपिक्स में हिस्सा लेनेवाले युवा भारतीय खिलाड़ी थे सौम्यजीत घोष। हालांकि वें यहाँ पर दूसरे राउंड के आगे नहीं बढ़ पाएं। वें रियो ओलंपिक 2016 में भी भाग ले रहे हैं। लेखक: शंकर नारायण, अनुवादक: सूर्यकांत त्रिपाठी

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