अपने ओलंपियन को जानें: खुशबीर कौर (एथलेटिक्स)

खुशबीर कौर को हमेशा से रेस वॉकर बनाना था। अमृतसर के पास में रसूलपुर गाँव में खुशबीर ने साढ़े नौ महीने के आयु में ही अपनी काबिलियत की झलक दिखा दी। 2014 एशियाई खेलों का इतिहास: 20 साल बाद पूरी दुनिया को उनकी काबिलियत का पता चला जब खुशबीर ने इंचियोन के एशियाई खेलों में महिलाओं के लिए 20 किलोमीटर रेस वॉक में रजत पदक जीता। इसी के साथ एशियाई खेलों के वॉक इवेंट में पदक जीतने वाली वें पहली भारतीय महिला बनी। उनकी टाइमिंग 1.33.07 से उनका खुद का प्रदर्शन अच्छा हुआ और दुनिया को भारत के उभरते हुए रेस वॉकर के बारे में पता चला। इस इवेंट में खिलाड़ियों के प्रगति का बड़ा श्रेय रुसी कोच अलेक्सण्डर अर्त्स्यबशेव को जाता है। उन्ही की देखरेख में युवा सीख रहे हैं। 2014- खुशबीर के लिए यादगार साल खुशबीर अपने ग्रुप में से सबसे अगल खिलाडी थी। साल 2014 उनके लिए बहुत अच्छा रहा क्योंकि हर टूर्नामेंट में वें अपना नेशनल रिकॉर्ड और अच्छा करते जाती रहीं। मार्च में हुए एशियाई वाकिंग रेस चैंपियनशिप में उन्होंने कांस्य पदक जीतकर नेशनल रिकॉर्ड कम किया। इसके दो महीने बाद टाईचांग में हुए वर्ल्ड रेस वाकिंग चैंपियनशिप में वापस नेशनल रिकॉर्ड अपने नाम किया। खुशबीर की मेहनत, लगन और बुद्धि ने उन्हें आज इस काबिल बनाया है। इसलिए सभी को उनसे पदक की उम्मीद हैं। अर्त्स्यबशेव को भी अपने स्टूडेंट से काफी अपेक्षा है और वें खुशबीर की बहुत तारीफ करते हैं। उन्होंने खुशबीर के बारे में कहा,"रेस वाकिंग में तकनीक, अनुभव और बुद्धि की ज़रूरत होती है। खुशबीर बहुत बुद्धिमान है। एक लड़की के शरीर में लड़के का दिमाग है।" 21 साल पूरा होने के दो महीने बाद ही इंचियोन एशियाई खेलों में उन्होंने अपनी मैच्यूरिटी और आत्मविश्वास दिखाया। मैच के समय कौर को दो बार समय से पहले आगे न बढ़ने की हिदायत दी गयी, लेकिन तीसरे मौके पर उन्होंने इतिहास रचा। वैसे मुश्किलों का सामना करना उन्हें अच्छे से आता है इसलिए उन्हें पछाड़ना कोई आसान काम नहीं है। सात साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता को खो दिया और फिर परिवार की देखभाल की जिम्मेदारी उनके माँ के कन्धों पर आ गयी। इस मुश्किल परिस्तिथि ने उन्हें और मजबूत बना दिया। साल 2008 के जूनियर नेशनल्स में इस युवा खिलाड़ी ने बिना जुटे पहने रेस में हिस्सा लिया, क्योंकि वें जुटे खरीदने में असक्षम थी। बेहतरीन जूनियर करियर: लेकिन कई मुश्किलों का सामना करने के बाद भी खुशबीर की माँ ने ही उन्हें खेल में आगे बढ़ने का प्रोत्साहन दिया। उनकी काबिलियत पहचानने में उन्हें ज्यादा समय नहीं लगा। साल 2007 में 14 साल की खुशबीर ने राज्य स्तर का 3000 मीटर रेस दौड़ जीती। घरेलू मुकाबलों में उनका स्तर और बढ़ता गया खासकर एशियाई चैंपियन बलदेव सिंह के साथ जुड़ने के बाद। उन्ही की देखरेख में खुशबीर अंतराष्ट्रीय सर्किट में हिस्सा लेने लगी और 2010 के युथ एशियाई खेल में रजत और 2012 के एशियाई जूनियर चैंपियनशिप में कांस्य पदक हासिल किया। 2014 में एशियाई खेल में कामयाबी के बाद उन्होंने अपना ध्यान सबसे बड़े स्पोर्टिंग ईवेंट, ओलंपिक्स की तैयारी में लगा दिया। इसे उन्होंने साल 2015 में पुर्तगाल के रियो मेयर में हुए IAAF रेस वाकिंग चैलेंज के ज़रिये हासिल की। उसके कुछ समय बाद वर्ल्ड चैंपियनशिप खुशबीर का एशियाई खेल के बाद पहला बड़ा ईवेंट था। उसमें वें अपने पर्सनल बेस्ट से 7 मिनट पीछे थी और 37 वें स्थान पर खेल खत्म किया। यहाँ पर वें उम्मीदों के बोझ तले दब गयी। एंग्लियन मैडल-हंट कंपनी उनका पूरा समर्थन करती है और छह महीने बाद रियो में होनेवाले एशियाई खेलों में उनसे अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद होगी। इस खेल ने रुसी और चीनी खिलाडियों का दबदबा है और खुशबीर युवा है और भारत की ओर से अथेलटिक्स की अगुवाई कर रही हैं। लेखक: सुदेष्णा बनर्जी, अनुवादक: सूर्यकांत त्रिपाठी

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