अपने भारतीय ओलम्पियन को जानें: विकास गौड़ा(डिस्कस थ्रो)

साल 2003 में वर्ल्ड चैंपियनशिप में अंजू बॉबी जार्ज ने लंबी कूद में ऐतिहासिक कांस्य पदक जीता था। इसके अलावा बहुत ही काम ऐसे एथलीट हैं, जिन्होंने ऐसी ऊंचाई छुई हो। मगर एक नाम है विकास गौड़ा जो लगातार कई बड़े टूर्नामेंट में बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे हैं। बड़ी उपलब्धि 6 फीट 9 इंच और 32 साल की उम्र के विकास मैसूर में पैदा हुए थे। लेकिन वह यूएस में रहते हैं। साल 2012 में यूएसए के नोमान में हुए इवेंट में विकास ने 66.28 मीटर की दूरी निकालकर राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया था। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि साल 2014 में ग्लासगो में हुए कामनवेल्थ खेलों में रही है। जहां उन्होंने 63.64 मीटर की दूरी निकालकर स्वर्ण पदक जीता था। इस दौरान शोर शराबा काफी ज्यादा था। साथ ही बारिश हो जाने की वजह से मैडल के दावेदारों को ग्रिप में काफी दिक्कत आई थी। लेकिन खराब मौसम का असर गौड़ा के प्रदर्शन पर कहीं नहीं नजर आया। साथ ही गौड़ा मिल्खा सिंह (कार्डिफ 1958) के बाद दूसरे ऐसे एथलीट बने जिन्होंने एथेलेटिक्स में भारत को सोना दिलाया। इससे पहले गौड़ा ने दिल्ली में हुए साल 2010 में कॉमनवेल्थ खेलों में रजत पदक जीता था। गौड़ा का दूसरा लगातार स्वर्ण पदक था। इससे पहले 2013 में पुणे में हुए एशियन चैंपियनशिप में उन्होंने सोना जीता था। यह जीत उनके करियर के सबसे बेहतर दौर में थी और फिर दो साल के अंतराल में उन्होंने कॉमनवेल्थ में सोना, एशियन गेम्स में रजत और एशियन चैंपियनशिप में सोना जीता था। बचपन से खेलों से जुड़े रहे विकास का युवा उम्र में एथेलेटिक्स के प्रति रुझान दिखाना हैरानी वाला फैसला नहीं था। इससे पहले उनके पिता शिवे सियोल डीकैटलीट थे और फिर 1988 में भारतीय ओलंपिक ट्रैक टीम के कोच भी रहे। उन्होंने ने ही विकास को कोचिंग दी और उसे खेलों में लाए। 5 साल की उम्र में विकास यूएसए चले गये थे। विकास गौड़ा युवावस्था में प्रतिभावान लॉन्ग जम्पर थे। हालाँकि उन्होंने इससे अपनी निरंतरता बनाई और बाद में वह थ्रोविंग इवेंट्स में भी ध्यान देने लगे। साल 2006 में विकास पूरी तरह से डिस्कस थ्रो के खिलाड़ी के तौर पर विकसित हो चुके थे। चैपल हिल के नार्थ कैरोलिना विश्वविद्यालय से विकास ने मैथ में स्नातक किया। साल 2006 में वह यूएस में डिस्कस थ्रो में एनसीएए नेशनल चैंपियन बने थे। जॉन गोडिना से जुड़ना उनके डिस्कस थ्रोइंग में बहुत बड़ा बदलाव आया। साल 2009 में उन्होंने एक बहुत ही महत्वपूर्ण निर्णय लिया, जिससे वह एलीट परफ़ॉर्मर बन गए। उन्होंने एरिज़ोना में स्थित जॉन गोडिना वर्ल्ड थ्रोस सेण्टर को ज्वाइन किया। जहां उन्हें तकनीकी रूप से काफी फायदा हुआ। गोडिना जो वर्ल्ड चैंपियनशिप में तीन बार सोना जीत चुके हैं, उन्होंने विकास को बड़े मुकाबलों के लिए तैयार किया और उनके साथ जाने को भी राजी हुए। इस अमेरिकी ने गौड़ा के पूरे सीजन को अच्छे से तैयार किया, जिससे वह अपने शीर्ष पर बने रहे। मुंबई में स्थित ओलम्पिक गोल्ड क्वेस्ट जो एक एनजीओ है, उसने भी गौड़ा को फण्ड देने के लिए अपने हाथ बढ़ाए हैं। साल 2012 में उनकी भागेदारी रंग लायी और गौड़ा ने डिस्कस थ्रो में ओलंपिक में क्वालीफाई करने वाले पहले खिलाड़ी बन गये। साल 2013 में वह अपने करियर के अहम पड़ाव पर 8वें स्थान पर रहे थे। हालांकि गौड़ा की आंखे इस बार रियो ओलंपिक पर लगी हैं। साल 2015 में हुए बीजिंग वर्ल्ड चैंपियनशिप में 62.24 मीटर की दूरी तय करके नौवां स्थान हासिल किया था। जो साल 2013 के एशियन गेम्स के उनके स्वर्ण पदक वाले प्रदर्शन 64.90 से कम था। पोलैंड से मिलेगी कठिन चुनौती विकास एशिया के सबसे ऊँची रैंक के एथलीट हैं। आईएएएफ वर्ल्ड रैंकिंग में वह पांचवे स्थान पर हैं। उन्हें पोलैंड के थ्रोवेर्स से कठिन चुनौती मिलती रही है। पिओत्र मलाचोव्सकी और रोबर्ट अर्बनेक दोनों एथलीट लगातार बेहतरीन प्रदर्शन करते आये हैं। इन दोनों ने अभी तक 65 मीटर की दूरी निकाली है। साथ ही वर्ल्ड चैंपियनशिप ने इन दोनों ने गोल्ड और कांस्य दोनों जीता है। गौड़ा के क्वालीफाई करने के पीछे आईएएएफ के नियमों में ढील एक बड़ी वजह है। पिछली बार 66 मीटर क्राइटेरिया ही था। ऐसे में इस भारतीय को 65 मीटर से ज्यादा की दूरी निकालनी होगी। अपने एक इंटरव्यू में गौड़ा ने कहा था कि उन्हें मैथ और डिसकस थ्रो जो बात कॉमन लगती है। वह यह, “यदि आप पहली बार में लक्ष्य हासिल नहीं कर पाते हैं, तो तब तक तैयारी करें जब तक आप उसे हासिल न कर लें। ” शायद वह अपनी इस बात को सच साबित करें।

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