भारत में खेल के प्रति लोगों की जागरूकता हमेशा से बनी रही है। खेल इस देश में एक धर्म की तरह पूजा जाता है। ये बात अलग है कि सारे खेलों को धर्म का दर्जा नहीं मिलता लेकिन इस देश में स्पोर्टस के अलग मायने हैं। 29 अगस्त, हिंदुस्तान में खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। दरअसल इस ही दिन हॅाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद सिंह का जन्म हुआ था। ध्यानंचद के बारे में बात करें तो वो भारत के विख्यात खिलाड़ी थे। वो खिलाड़ी जिसने अपने हॅाकी स्टिक पर पूरी दुनिया को नचा दिया था। आइए जानते हैं। ऐसी क्या खास बात थी। जिसके उपलक्ष्य में मेजर ध्यानचंद को इतना सम्मान दिया था।
1) कैसे पड़ा इनका नाम ध्यान सिंह से ध्यानचंद?
हॅाकी के प्रति मेजर ध्यानचंद जितना दीवाना कोई नहीं था। उनके लिए रात क्या और दिन क्या ? उन्हें जहां हॅाकी का ग्राउंड दिखता वो वहीं अभ्यास करना शुरू कर देते थे। एक बार उनके दोस्तों ने देखा कि वो चांद की रौशनी के नीचे अभ्यास कर रहे हैं। तब से वो मेजर ध्यानसिंह को ध्यानचंद के नाम से संबोधित करने लगेंगे। ध्यान सिंह से ध्यानचंद बनकर इस खिलाड़ी ने जो करिश्मा दिखाया वो किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं।
2) 570 गोल दागे थे ध्यानचंद ने
मेजर ध्यानचंद ब्रिटीश शासित भारत के लिए 1928,32,36 ओलंपिक में भारत के लिए खेल चुके हैं। जिसमें उनके नाम 570 गोल हैं। 1932 लॅास एंजल्स ओलंपिक में उनके दमदार प्रदर्शन को देखते हुए उन्हें टीम का कप्तान बनाया गया था। जब-जब इनके हाथों में हॅाकी स्टिक रही तब तक विरोधी खेमे के खिलाड़ी इनके आस-पास लोग आने से पहले भी डरते थे।
3) गरीबी के हालात में स्वर्गवास हुआ
मेजर ध्यानचंद का स्वर्गवास गरीबी के हालात में हुआ। ध्यानचंद के आखिरी दिनों में उनके घर के हालत ठीक नहीं थे। हॅाकी और मेजर का नाम कभी अलग-अलग नहीं लिया जा सकता। बावजूद इसके मेजर का जीवन बहुत संघर्षों भर रहा। आज भले ही हॅाकी के जादूगर के नाम पूरे देश में विभीन्न स्टेडियम है। राष्ट्रीय खेल दिवस को बड़ी चाव से मनाया जाता है। लेकिन जितना हम उनके मरने के समय कर रहे हैं। उतना सम्मान उनके जीते-जीते देतो तो कितना अच्छा रहता।
4) मनप्रीत सिंह की अगुवाई वाली टीम ने दी सच्ची श्रद्धांजलि
भारतीय हॅाकी टीम के कप्तान मनप्रीत सिंह ने टोक्यो ओलंपिक में कास्य पदक जीतकर सवर्गीय मेजर ध्यानचंद को सच्ची श्रद्धांजलि दी है। ओलंपिक में ये पदक टीम इंडिया को 41 साल बाद मिला है। इसी उपलक्ष्य को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजीव गांधी खेल पुरस्कार का नाम बदलकर मेजर ध्यानचंद पुरस्कार रख दिया। आजाद भारत के इतिहास में मेजर को मिलने ये वाली ही सच्ची श्रद्धांजलि थी। हालांकि इसकी मांग काफी समय से चल रही थी। लेकिन वो कहते हैं ना देर आए दुरस्त आए ।