Olympics - जब ओलंपिक में मुकाबले के बीच खिलाड़ियों ने चलाए लात-घूंसे

ओलंपिक समेत तमाम खेलों में खिलाड़ियों से स्पोर्ट्समेनशिप की उम्मीद की जाती है।
ओलंपिक समेत तमाम खेलों में खिलाड़ियों से स्पोर्ट्समेनशिप की उम्मीद की जाती है।हंगरी और सोवियत संघ के खिलाड़ियों को वॉटर पोलो में हुआ ये संघर्ष इतिहास में दर्ज हो गया।

खेलों में स्पोर्ट्समैनशिप होने से उस खेल और खिलाड़ी का कद और ऊंचा हो जाता है। बात जब खेलों के महाकुंभ की हो तो हर ऐथलीट कोशिश करता है अपना बेस्ट देने की और अपना बेस्ट व्यवहार करने की। टोक्यो ओलंपिक में पुरुष हॉकी मैच के दौरान अर्जेंटीना के खिलाड़ी ने स्पेन के खिलाड़ी को सर पर हॉकी स्टिक से मारा और इस कारण उन्हें 1 मैच के लिए सस्पेंड कर दिया गया। लेकिन ये पहला मौका नहीं था जहां ऐसी हरकत की गई हो। ओलंपिक इतिहास में एक मौका ऐसा भी आया जब बीच मुकाबले में दो टीमों के सभी खिलाड़ियों ने आपस में मारपीट शुरु कर दी, मामला इतना बढ़ गया कि एक खिलाड़ी बुरी तरह चोटिल हो गया।

वॉटर पोलो मैच के बीच हुआ संघर्ष

हंगरी और सोवियत संघ के खिलाड़ियों को वॉटर पोलो में हुआ ये संघर्ष इतिहास में दर्ज हो गया।

यह वाकया है साल 1956 में ऑस्ट्रेलिया में हुए मेलबर्न ओलंपिक खेलों का जहां हंगरी और तत्कालीन सोवियन यूनियन की पुरुष टीमों के बीच वॉटर पोलो का मुकाबला चल रहा था। मुकाबले में जहां फैंस को उम्मीद थी की उनकी फेवरेट टीम गोल दागने की कोशिश करेगी, तो वहीं खिलाड़ियों के मन में कुछ और ही था। हंगरी में चल रही क्रांति के आक्रोश में दोनों टीमों के खिलाड़ी आपस में ही भिड़ गए और एक दूसरे पर मौका मिलते ही खेल के बीच घूंसे चलाने लगे, एक दूसरे को पानी में ही धक्का देने लगे। पूरे मैच में यही चलता रहा। हंगरी के खिलाड़ी एरविन जेडोर जब पानी से बाहर आए तो उनकी आंख के पास से खून बह रहा था । इस कारण से इस मैच को Blood in the Water Match के नाम से जाना जाता है।

हंगरी में चल रही 1956 की क्रांति थी वजह

दरअसल हंगरी में सोवियत यूनियन के प्रभाव में शासन चल रहा था। इसके विरोध में आमजन, छात्र, युवा नेता लगातार प्रदर्शन कर रहे थे। 1 नवंबर को जब सोवियत संघ ने प्रदर्शनों को दबाने के लिए वॉर टैंक हंगरी में भेजे। हालांकि ओलंपिक खेल जब तक शुरु हुए तो ये क्रांति खत्म हो चुकी थी लेकिन हंगरी के खिलाड़ियों के मन में सोवियत संघ द्वारा उठाए गए कदम की यादें ताजा ही थीं। ऐसे में मेलबर्न में जब ओलंपिक खेल चल रहे थे तो देश के भीतर हंगरी और सोवियत संघ के बीच चल रही तल्खी का असर इन देशों के खिलाड़ियों पर भी दिखा।

मैच की शुरुआत से ही रहा गर्म माहौल

6 दिसंबर 1956 की सुबह जब पुरुष टीम स्पर्धा का वॉटर पोलो मैच शुरु हुआ तो हंगरी और सोवियत के खिलाड़ी लड़ना शुरु कर चुके थे। मैच भी रहा था और खिलाड़ी एक दूसरे को लगातार ताने कस रहे थे, हाथ-पांव पर मार रहे थे। हंगरी के एरविन जेडोर ने इसी बीच दो गोल दाग दिए। जब हंगरी 4-0 के स्कोर से आगे थी उसी समय वैलेंटीन प्रोकोपोव ने जेडोर को घूंसा जड़ दिया जिस कारण मैच यहीं रोका गया। गुस्साए हंगरी के कई फैंस भी पानी में कूद गए। मैच को खत्म घोषित किया गया और जब एरविन जेडोर पानी से बाहर आए तो उनकी आंख के ऊपर चोट लगी थी और खून आ रहा था। मैच हंगरी के नाम रहा और आगे चलकर हंगरी ने फाइनल भी जीता। लेकिन मेलबर्न ओलंपिक की वॉटर पोलो स्पर्धा आज भी हंगरी के मेडल के लिए कम और इस मारपीट के लिए ज्यादा जानी जाती है।

कई बार गुस्सा दिखा चुके हैं खिलाड़ी

टोक्यो ओलंपिक में 25 जुलाई को अर्जेंटीना और स्पेन के बीच पूल मुकाबले में अर्जेंटीना के खिलाड़ी ने स्पेन के खिलाड़ी पर वार किया
टोक्यो ओलंपिक में 25 जुलाई को अर्जेंटीना और स्पेन के बीच पूल मुकाबले में अर्जेंटीना के खिलाड़ी ने स्पेन के खिलाड़ी पर वार किया

वैसे ये पहली बार नहीं है कि खेल के मैदान में खिलाड़ी गुस्सा दिखाएं। वर्तमान में चल रहे टोक्यो ओलंपिक में ही पुरुष हॉकी मैच में अर्जेंटीना के लुकास रोस्सी ने स्पेन के डेविड ऐलग्री को सर पर तब मारा जब वो क्रैम्प के कारण फिजियो से मैदान पर इलाज ले रहे थे। रोस्सी के इस कदम से सभी हैरान रह गए और इस शर्मनाक बर्ताव के कारण उन्हें 1 मैच के लिए सस्पेंड कर दिया गया।

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Edited by निशांत द्रविड़