विश्व का सबसे बड़ा खेल महाकुंभ 'ओलंपिक' का आयोजन इस बार ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में 5-21 अगस्त 2016 के बीच होने जा रहा है। यह ऐसा खेल समारोह है, जिसमें अधिकांश देशों के खिलाड़ी एक जगह इकट्ठा होकर अपने खेल के कौशल के जौहर दिखाते हैं। दुर्भाग्यवश, कुछ ही ऐसे देश होते हैं जो इस भव्य आयोजन का हिस्सा नहीं बन पाते हैं। बता दें कि रियो ओलंपिक में 28 खेलों की 306 स्पर्धाओं में 206 देशों लगभग 11,359 एथलीट भाग ले रहे हैं। कोसोवो और दक्षिण सूडान पहली बार ओलंपिक का हिस्सा बने हैं। 17 दिवसीय इस समारोह में 306 पदक कार्यक्रम होंगे। ओलंपिक खेलों को जहां हम ग्रीष्मकालीन खेलों के रूप में जानते हैं, वहीं शीतकालीन ओलंपिक भी खेले जाते हैं। ग्रीष्मकालीन ओलंपिक की लोकप्रियता बहुत अधिक है, जिसके चलते इसे सामान्य रूप से ओलंपिक ही कहा जाता है। रियो ओलंपिक में ग्रीष्मकालीन ओलंपिक के इतिहास में नया तरीका अपनाया गया है। इसमें रिफ्यूजी ओलंपिक एथलीट भी हिस्सा लेंगे। चौंकिए मत, दरअसल वह प्रतिभावान एथलीट इसमें हिस्सा ले रहे हैं जिनका किसी देश से नाता नहीं है। बताया गया है कि रियो ओलंपिक्स में 10 रिफ्यूजी एथलीट विरोधियों को टक्कर देते नजर आएंगे। इन एथलीटों का चयन 43 हाई परफॉरमेंस एथलीट्स में से हुआ है। चलिए ओलंपिक के इतिहास को बारीकी से जानते हैं : ओलंपिक का इतिहास प्राचीनकाल में शांति के समय ओलंपिक खेल का शुभारंभ 776 ईसा पूर्व एथेंस में हुआ। बताया जाता है कि यह खेल तब राजा-रजवाड़ों के बीच आयोजित होता था। उस समय सिर्फ एथलेटिक्स ही खेलों में शामिल था, लेकिन समय की मांग को देखते हुए इसमें धीरे-धीरे अन्य खेलों जैसे बॉक्सिंग, कुश्ती, घुड़सवारी भी शामिल किए गए। इस खेल में एथलीट पूरी ईमानदारी के साथ अपना सबकुछ झोंकते थे। मगर ओलंपिक पर ग्रहण लग गया जब रोमवासियों ने ग्रीस पर कब्जा कर लिया। आखिरी बार ओलंपिक का आयोजन 394 ईस्वी में हुआ। रोम के सम्राट थियोडोसिस ने इसे मूर्तिपूजा वाला उत्सव करार देकर इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इसके बाद लगभग डेढ़ सौ सालों तक इन खेलों को भुला दिया गया। हालांकि मध्यकाल में अभिजात्य वर्गों के बीच अलग-अलग तरह की प्रतिस्पर्धाएं होती रहीं। लेकिन इन्हें खेल आयोजन का दर्जा नहीं मिल सका। 19वीं शताब्दी में जिंदा हुई परंपरा 19वीं शताब्दी में यूरोप में सर्वमान्य सभ्यता के विकास के साथ पुरातन काल की इस परंपरा को फिर से जिंदा किया गया। इसका श्रेय फ्रांस के अभिजात पुरूष बैरों पियरे डी कुवर्तेन को जाता है। आधुनिक ओलंपिक खेल का पहला आयोजन 1896 में एथेंस में हुआ। इस ओलंपिक खेल में 14 देशों के 241 खिलाड़ियों ने 43 स्पर्धाओं में हिस्सा लिया। उल्लेखनीय है कि इनमें से 200 एथलीट्स ग्रीसे के ही थे। उस समय महिलाएं इस खेल का हिस्सा नहीं थी, लेकिन 1900 पेरिस ओलंपिक में उन्होंने आधिकारिक रूप से हिस्सा लिया। शुरुआती दशक में ओलंपिक आंदोलन अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष करता रहा क्योंकि कुवर्तेन की इस परिकल्पना को किसी भी बड़ी शक्ति का साथ नहीं मिल सका था। 1904 में सेंट लुई में इस खेल का आयोजन हुआ। फिर प्रथम विश्व युद्ध 1916 में इस खेल का आयोजन नहीं किया जा सका। हालांकि युद्ध की समाप्ति के बाद निरंतर अंतराल में ओलंपिक फिर आयोजित होने लगा। वर्ष 1930 के बर्लिन संस्करण के साथ तो मानों ओलंपिक आंदोलन में नई जीवन शक्ति आ गई। सामाजिक और राजनैतिक स्तर पर जारी प्रतिस्पर्धा के कारण नाजियों ने इसे अपनी श्रेष्ठता साबित करने का माध्यम बना दिया। मगर द्वितीय विश्व युद्ध के के कारण फिर से 1940 और 1944 में ओलंपिक का आयोजन नहीं हो सका। ओलंपिक और राजनीती 1950 के दशक में सोवियत रूस और अमेरिका विश्व की महाशक्ति के रूप में सामने आए। सोवियत-अमेरिका प्रतिस्पर्धा के खेल के मैदान में आने के साथ ही ओलंपिक की ख्याति चरम पर पहुंच गई। इसके बाद तो खेल कभी भी राजनीति से अलग नहीं हुआ। खेल केवल राजनीति का विषय भर नहीं रहे। ये राजनीति का अहम हिस्सा बन गए। चूंकि सोवियत संघ और अमेरिका जैसी महाशक्तियां कभी नहीं खुले तौर पर एक-दूसरे के साथ युद्ध के मैदान में भिड़ नहीं सकीं। लिहाजा उन्होंने ओलंपिक को अपनी श्रेष्ठता साबित करने का माध्यम बना लिया। पदक और अहम की लड़ाई वर्ष 1980 में अमेरिका और उसके पश्चिम के मित्र राष्ट्रों ने 1980 के मॉस्को ओलंपिक में शिरकत नहीं करने का फैसला किया। इसका हिसाब चुकता करने के लिए सोवियत संघ ने 1984 के लॉस एंजलिस ओलंपिक का बहिष्कार कर दिया। 1988 सियोल ओलंपिक में सोवियत संघ ने 55 स्वर्ण सहित कुल 132 पदक जीतकर एक बार फिर अपनी श्रेष्ठता साबित की। अमेरिका को 34 स्वर्ण सहित 94 पदक मिले थे। अमेरिका पूर्वी जर्मनी के बाद तीसरे स्थान पर रहा। 1992 बार्सिलोना ओलंपिक में भी सोवियत संघ ने अपना वर्चस्व कायम रखा। हालांकि उस वक्त तक सोवियत संघ का विघटन हो चुका था। एक संयुक्त टीम ने ओलंपिक में हिस्सा लिया था। इसके बावजूद उसने 45 स्वर्ण सहित कुल 112 पदक जीते। अमेरिका को 37 स्वर्ण के साथ 108 पदक मिले थे। 1996 अटलांटा और 2000 सिडनी ओलंपिक में रूस (सोवियत संघ के विभाजन के बाद का नाम) गैर अधिकारिक अंक तालिका में दूसरे स्थान पर रहा। 2004 के एथेंस ओलंपिक में उसे तीसरा स्थान मिला। बीजिंग ओलंपिक 2008 को अब तक का सबसे बेहतरीन आयोजन माना गया है। 15 दिन के खेलों के दौरान चीन ने अपनी मेजबानी के साथ ही सर्वाधिक स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। चीन पहली बार पदक तालिका में शीर्ष स्थान पर रहा। अमेरिका दूसरे स्थान पर रहा। भारत ने भी ओलंपिक के इतिहास में व्यक्तिगत स्पर्धाओं में पहली बार कोई स्वर्ण पदक जीता और उसे पहली बार एक साथ तीन पदक भी मिले। लंदन ओलंपिक लंदन ओलंपिक का आयोजन भी भव्य रहा। इसमें 204 देशों के 10568 एथलीटों ने 26 खेलों की 302 स्पर्धाओं में भाग लिया। अमेरिका ने 46 स्वर्ण पदको के साथ कुल 103 अंक लेकर शीर्ष पर रहा। चीन 38 स्वर्ण पदक सहित कुल 88 पदक लेकर दूसरे स्थान पर रहा। भारत ने दो रजत और चार कांस्य पदक सहित कुल 6 पदक जीते थे। वह 55वें स्थान पर था। रियो ओलंपिक 2016 में भारत के 119 एथलीट 15 स्पर्धाओं में भाग ले रहे हैं। भारतीय एथलीटों ने विश्व में अपने प्रदर्शन से ख्याति प्राप्त की है, जिसको देखते हुए उससे ज्यादा पदकों की उम्मीद भी बनी हुई है। उम्मीद करते हैं कि भारतीय एथलीट इस महाकुंभ में शानदार प्रदर्शन करके देशवासियों को खुश करें।