19वीं शताब्दी में यूरोप में सर्वमान्य सभ्यता के विकास के साथ पुरातन काल की इस परंपरा को फिर से जिंदा किया गया। इसका श्रेय फ्रांस के अभिजात पुरूष बैरों पियरे डी कुवर्तेन को जाता है। आधुनिक ओलंपिक खेल का पहला आयोजन 1896 में एथेंस में हुआ। इस ओलंपिक खेल में 14 देशों के 241 खिलाड़ियों ने 43 स्पर्धाओं में हिस्सा लिया। उल्लेखनीय है कि इनमें से 200 एथलीट्स ग्रीसे के ही थे। उस समय महिलाएं इस खेल का हिस्सा नहीं थी, लेकिन 1900 पेरिस ओलंपिक में उन्होंने आधिकारिक रूप से हिस्सा लिया। शुरुआती दशक में ओलंपिक आंदोलन अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष करता रहा क्योंकि कुवर्तेन की इस परिकल्पना को किसी भी बड़ी शक्ति का साथ नहीं मिल सका था। 1904 में सेंट लुई में इस खेल का आयोजन हुआ। फिर प्रथम विश्व युद्ध 1916 में इस खेल का आयोजन नहीं किया जा सका। हालांकि युद्ध की समाप्ति के बाद निरंतर अंतराल में ओलंपिक फिर आयोजित होने लगा। वर्ष 1930 के बर्लिन संस्करण के साथ तो मानों ओलंपिक आंदोलन में नई जीवन शक्ति आ गई। सामाजिक और राजनैतिक स्तर पर जारी प्रतिस्पर्धा के कारण नाजियों ने इसे अपनी श्रेष्ठता साबित करने का माध्यम बना दिया। मगर द्वितीय विश्व युद्ध के के कारण फिर से 1940 और 1944 में ओलंपिक का आयोजन नहीं हो सका।