टोक्यो ओलंपिक में भारतीय महिला हॉकी टीम के क्वार्टर-फाइनल मैच के प्रदर्शन को शायद ही कोई खेल प्रेमी भुला पाए। टीम की मेहनत अद्भुत थी और हौसला बुलंद। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ओलंपिक में पहली बार महिला हॉकी को जब शामिल किया गया था तो उसकी विजेता टीम ने ओलंपिक के चंद दिन पहले ही टीम तैयार कर भेजी थी। जी हां, और आप चौंक जाएंगे ये जानकर कि ये ना ऑस्ट्रेलिया की टीम थी और न ही अर्जेंटीना की, बल्कि महिला ओलंपिक हॉकी का पहला गोल्ड जीता था अफ्रीकी देश जिम्बाब्वे ने।
चंद दिन पहले मिला न्यौता
दरअसल, 1980 के ओलंपिक रूस के मॉस्को में हुए थे और तब सोवियत संघ और अमेरिका की लड़ाई के कारण अमेरिका सहित कई देशों ने इन खेलों का बहिष्कार किया। ऑस्ट्रेलिया, पश्चिमी जर्मी, हॉलैंड जैसी टीमें सबसे मजबूत मानी जा रही थीं, लेकिन बहिष्कार के चलते उन्होंने भी नाम वापस ले लिया। इस कारण हॉकी समेत कई खेलों में उम्मीद से कम टीमों के नाम थे। महिला हॉकी पहली बार ओलंपिक का हिस्सा बन रहा था, ऐसे में केवल 5 टीमों के नाम आए थे। जिम्बाब्वे राजनीतिक कारणों से पिछले तीन ओलंपिक नहीं खेल पाया था और आखिरी बार 1964 के टोक्यो ओलंपिक में रोडेशिया के रूप में भाग लिया था। ऐसे में आयोजकों ने 6 टीमें पूरी करने के लिए जिम्बाब्वे को न्यौता दिया और वो भी ओलंपिक शुरु होने के करीब 1 महीने पहले। ऐसे में जिम्बाब्वे ने भी तुरंत टीम तैयार की और मॉस्को भेजी। जल्दबाजी में हुई तैयारी के बीच टीम मांस ले जाने वाले जहाज से मॉस्को भेजी गई क्योंकि और कोई विकल्प नहीं था।
पहली बार देखा ऐस्ट्रो टर्फ
कम टीमों के चलते ग्रुप की जगह राउंड रॉबिन की तर्ज पर मैच हुए और हर टीम ने 5 मैच खेले। पहली बार मैच मैदान की जगह ऐस्ट्रो टर्फ पर हो रहा था। खास बात ये थी कि जिम्बाब्वे की टीम ने इससे पहले ऐस्ट्रो टर्फ देखा ही नहीं था। लेकिन टीम ने अपने तालमेल से सभी को हैरान कर दिया और तीन मैचों में जीत हासिल की जबकि 2 मैच ड्रॉ किए। पहले ही मैच में पोलेंड को 4-0 से मात दी, चेकोस्लोवाकिया के साथ 2-2 का ड्रॉ खेला, सोवियत संघ की घरेलू टीम को 2-0 से हराया। इसके बाद भारत से ड्रॉ खेला। क्योंकि मुकाबले राउंड रॉबिन की तर्ज पर थे इसलिए सबसे ज्यादा अंकों वाली टीम को गोल्ड मिलना था। ऐसे में जिम्बाब्वे को बस ऑस्ट्रिया को हराना था। और उन्होंने आखिरी मुकाबले में 3-1 से ऑस्ट्रिया को हराया और 8 अंकों के साथ टॉप पर रहकर गोल्ड जीत लिया जबकि चेकोस्लेवाकिया को सिल्वर और सोवियत संघ को ब्रॉन्ज मिला।
ऐतिहासिक है ये जीत
जिम्बाब्वे का ये पहला ओलंपिक मेडल था। उनकी इस जीत ने अंडरडॉग को कम न आंकने की थ्योरी सच कर दी। किसी को यकीन नहीं हुआ कि जो टीम 1 महीना पहले बनी है, जिसने कभी ऐस्ट्रो टर्फ नहीं देखा, जिसके अधिकतर सदस्य कभी अंतर्राष्ट्रीय मुकाबलों में खेले नहीं, वो ओलंपिक में जाकर वहां गोल्ड जीत जाएगी। 1980 के इस मेडल के बाद जिम्बाब्वे ने अगला ओलंपिक मेडल 2004 एथेंस ओलंपिक में स्विमिंग में मिला। हालांकि इतने काबिल खिलाड़ी होने के बावजूद देश के हालात और संसाधनों की कमी ने जिम्बाब्वे में हॉकी का वो स्तर नहीं बनने दिया जिसके वो हकदार थे। लेकिन सच में इस टीम की अद्बभुत जीत किसी भी फिल्म की कहानी हो सकती है और बड़े पर्दे पर आनी भी चाहिए ताकि लोग प्रेरित हो सकें।