टोक्यो में पैरालंपिक खेलों का शुभारंभ हो चुका है और इसी के साथ ये शहर 2 बार पैरालंपिक खेलों की मेजबानी करने वाला दुनिया का पहला शहर बन गया है। टोक्यो ने इससे पहले साल 1964 में पैरालंपिक खेलों की मेजबानी की थी। दिव्यांग ऐथलीटों को एक मंच पर लाकर उनकी प्रतिभा के सम्मान के लिए बनाए गए इन खेलों में पिछले कुछ सालों में खेल प्रेमियों की रुचि खासी बढ़ी है।
द्वितीय विश्व युद्ध ने दी पैरा खेलों को मजबूती
दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए खेलों का आयोजन होना या सुविधा होना कोई नई बात नहीं है। साल 1888 में बर्लिन में सुनने में अक्षम खिलाड़ियों के लिए दुनिया का पहला दिव्यांग स्पोर्ट्स क्लब खुला था। साल 1904 में अमेरिका में हुए ओलंपिक खेलों में जिमनास्ट जॉर्ज ऐसर ने भाग लिया जिनका एक पांव नकली था। लेकिन दिव्यांग खिलाड़ियों को विश्व पटल पर मजबूत मंच देने का ख्याल दूसरे विश्व युद्ध के बाद आया क्योंकि इस युद्ध में दुनिया के बड़े-बड़े देशों के कई सैनिक घायल होकर दिव्यांग हो गए थे। ऐसे में क्योंकि वह सेना में सर्विस नहीं दे सकते थे, इसलिए खेलों में उनकी ऊर्जा और क्षमता को परखने के लिए पैरा खेलों को बढ़ावा दिया गया।
अस्पताल के नाम पर हुए पहले पैरालंपिक
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान में ब्रिटेन के स्टोक मैंडेविल अस्पताल में सरकार के कहने पर डॉक्टर गटमैन की ओर से एक विशेष सेंटर खोला गया जो मूल रूप से रीढ़ की हड्डी के ईलाज, और दिव्यांग मरीजों, खासकर युद्ध में घायल सैनिकों का पुनर्वास कर सके। 1948 में लंदन ओलंपिक खेलों के पहले दिन डॉक्टर गटमैन ने अपने सेंटर में ईलाज प्राप्त कर चुके व्हीलचेयर में बैठे 16 पूर्व सैनिकों के बीच तीरंदाजी का मुकाबला कराया और इसे स्टॉक मैंडेविल खेल कहा गया। आगे चलकर कई सालों तक स्टॉक मैंडविल खेल को आधिकारिक रूप से शुरु किया गया। 1960 में रोम में पहले पैरालंपिक खेलों का आयोजन हुआ। इन खेलों में ऐथलीटों को एक प्रकार की दिव्यांगता में बांटा जाता है और फिर उस दिव्यांगता के आधार पर स्पर्धाओं का निर्धारण होता है। जैसे पुरुषों के बैडमिंटन सिंगल्स में कैटेगरी के हिसाब से अलग-अलग सिंगल्स स्पर्धाएं होती हैं।
ओलंपिक के वेन्यू पर ही पैरालंपिक
दक्षिण कोरिया के सियोल में साल 1988 में ओलंपिक खेल आयोजित हुए। फिर इसी वेन्यू पर पैरालंपिक खेल भी आयोजित हुए। अंतर्राष्ट्रीय पैरालंपिक समिति और अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के बीच एक समझौता हुआ जिसके चलते अब ग्रीष्मकालीन ओलंपिक का आयोजन करने वाले शहर में ही पैरालंपिक खेल भी आयोजित किए जाते हैं। ऐसा करने का मुख्य कारण यह है कि खेलों की तैयारी हेतु इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार मिल जाता है, इसे केवल डिसेबल फ्रेंडली बनाना मुख्य बिन्दु होता है।
सामान्य खिलाड़ियों के बराबर हैं पैरा ऐथलीट
यदि आपको लगता है कि पैरा ऐथलीट सामान्य खिलाड़ियों से कमतर होंगे, या उनके बराबर प्रदर्शन नहीं कर सकते तो ऐसे बिल्कुल नहीं है। पुरुषों की 100 मीटर फर्राटा दौड़ का ओलंपिक रिकॉर्ड 9.63 सेकेंड का जैमेका के उसेन बोल्ट के नाम है तो पैरालंपिक खेलों में कैटेगरी T11 यानि ब्लाइंडनेस में ये रिकॉर्ड 10.99 सेकेंड के साथ अमेरिका के डेविड ब्राउन के नाम है जो उन्होंने रियो 2016 पैरालंपिक में बनाया था। पुरुषों की 800 मीटर दौड़ का ओलंपिक रिकॉर्ड 1 मिनट 40 सेकेंड 91 मिलिसेकेंड का है जबकि पैरालंपिक में व्हीलचेयर कैटेगरी में यह रिकॉर्ड यूएई के मोहम्मद अल्हमादी के नाम है जो 1 मिनट 40 सेकेंड 24 मिलिसेकेंड का है। ऐसे में इतना अच्छा प्रदर्शन करने वाले पैरा एथलीटों की क्षमता को देखने , परखने और उत्साह बढ़ाने का मौका टोक्यो पैरालंपिक के माध्यम से सभी खेल प्रेमियों को मिला है।