टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर पीवी सिंधू ने इतिहास रच दिया है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सिंधू एक ऐसी खिलाड़ी हैं। जिन्होंने लगातार 2 ओलंपिक में पदक जीता है। हैदराबाद की इस बैडमिंटन खिलाड़ी के लिए यहां तक की राह आसान नहीं थी।
2016 रियो ओलंपिक के बाद पीवी सिंधू को जिस प्रकार की शोहरत मिल रही थी। वो भारत में किसी अन्य खिलाड़ी को नहीं मिली थी। 2016 ओलंपिक के बाद पीवी सिंधू की ब्रांड वैल्यू लगभग 100 करोड़ की हो गई थी। इसका नतीजा उनके खेल पर भी कहीं ना कहीं दिखने लगा था। पीवी की लगातार एक के बाद एक प्रतियोगिता में हार से लोगों ने ये बोलना शुरू कर दिया था कि उन्होंने ओलंपिक मेडल तुक्के से जीत लिया।
त्रकारों सें बात करते हुए सिंधू के मेडल जीतने पर उनके पिता पीवी रमन्ना की आंखों से खुशी के आंसू छलक उठे। उन्होंने हर एक व्यक्ति का शुक्रिया किया जिन्होंने मेडल जीते में सिंधू की सहायता की।
अन्य देशों के मुकाबले में भारत में नहीं है सुविधा
भारत में अन्य देशों के मुकाबले खिलाड़ियों का करियर बहुत छोटा होता है। यूरोपीय और अमेरिकी देशों के बारे में बात करें तो खिलाड़ियों को रिटायरमेंट के बाद भी कई ऐसे चीज उनके पास रहते हैं जो उन्हें लगातार खेल से जोड़े रखते हैं। भारत में ऐसा बिल्कुल नहीं है। इस देश में खिलाड़ियों को करियर 5 से 10 साल का होता है। नाम और शोहरत आपके ढलते हुए उम्र के साथ जाना शुरू हो जाता है। इस देश में आज भी आपको ऐसे खिलाड़ी मिलेंगे जो मेडल बेचकर जीवन जीने पर मजबूर हैं।
गोपीचंद और पीवी सिंधू में अनबन
भारतीय बैडमिंटन के गुरू द्रोणाचार्य कहे जानें वाले पुलेला गोपीचंद पर ने कई खिलाड़ियों का करियर सवारा है। लेकिन इस बात में भी दो राय नहीं है कि उनपर कई खिलाड़ियों ने करियर बर्बाद करने का भी लांछन लगाया है। 2012 लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली साइना नेहवाल का करियर ग्राफ नीचे जाने में गोपीचंद को श्रेय जाता है। लंदन ओलंपिक के कुछ समय बाद ही साइना ने गोपीचंद की अकादमी छोड़ प्रकाश पादुकोण अकादमी में विमल कुमार के साथ अभ्यास करना शुरू कर दिया। हालांकि 2016 रियो ओलंपिक में लचर प्रदर्शन के बाद साइना गोपीचंद के अकादमी दोबारा आ गई, जिसके बाद से ही सिंधू और साइना में अनबन की खबर सामने आ गई। इसका नतीजा पीवी के खेल पर भी देखने को मिला।
एक के बाद एक प्रतियोगिता में हार की वजह बाद 2021 कांस्य पदक विजेता सिंधू के पिता ने पवी रमन्ना ने सिंधू के कोच बदल दिया। हालांकि इतने कठोर कदम की कल्पना किसी ने नहीं की थी। लेकिन इस निर्णय का ही नतीजा है कि पीवी सिंधु टोक्यो में भारत के लिए पदक जीतने में कामयाब हो पायी। हालांकि उनसे सबको स्वर्ण पदक की उम्मीद थी। लेकिन उबड़-खाबड़ समय से गुजरने के बाद सिंधू का ओलंपिक में मेडल जीतना ही किसी करिशमे से कम नहीं है।