गांव से राष्ट्रीय राजधानी तक का सफर तय कर राजस्थान की जीतू कंवर ने पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में जीते 5 स्वर्ण पदक

कहते हैं 'मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।' यह लोकोक्ति सुनने में भले ही साधारण प्रतीत हो लेकिन इसमें असाधारण सत्य निकल कर बाहर आते हैं। मनोबल से किये गए किसी भी कार्य में असफलता नहीं मिलती। यही कर दिखाया है जोधपुर की बालेसर तहसील के छोटे से गांव खुड़ियाला की दिव्यांग लड़की जीतू कंवर भाटी ने। 23 वर्षीय जीतू ने हाल ही में हरियाणा में संपन्न हुए 18वें राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप के सेरिब्रल पॉल्सी T 36 वर्ग में 2 गोल्ड मेडल जीतकर पुरुष प्रधान समाज पर करारा तमाचा मारा है। दोस्तों और घर वालों के बीच जीत के नाम से मशहूर इस लड़की ने 100 मीटर दौड़ और 200 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक पर कब्जा जमाया है। इससे पहले जीत ने सेरिब्रल पॉल्सी के एथलीटों के लिए पटना में आयोजित 14वीं राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में भी 100 मीटर, 200 मीटर दौड़ और लम्बी कूद में सोना प्राप्त किया है। यह प्रतियोगिता सिर्फ सेरिब्रल पॉल्सी में आने वाले एथलीटों के लिए ही थी। कुल 5 स्वर्ण पदक जीतने (3 पटना, 2 हरियाणा में) की खबर के बाद से जीतू के परिवार वालों, दोस्तों और शुभचिंतकों में ख़ुशी की लहर दौड़ गई। हर कोई जीत की तारीफ करते नहीं थक रहा है। स्पोर्ट्सकीड़ा से बातचीत करते हुए जीतू कंवर ने कहा "मुझे लगता है कि एक एथलीट होने के नाते चीजों को हमें बड़े नजरिये से देखना चाहिए। हार और जीत कुछ नहीं होती। इसमें निडर होकर दौड़ के बाद महसूस होने वाले दर्द को गले लगाना होता है। मुझे लगता है कि लोग चुनौतियों के बारे में ज्यादा सोचकर भयभीत हो जाते हैं इसलिए अधिक नहीं सोचना चाहिए।" जीतू की पूरी कहानी आप यहां पढ़ सकते हैं रियो ओलम्पिक से प्रेरणा लेकर खेल के क्षेत्र में आगे आने वाली यह पैरा एथलीट आज अन्य बेटियों के लिए खुद एक प्रेरणा बनकर सामने आई है। पिछले वर्ष भी उन्होंने जयपुर में हुए राष्ट्रीय पैरा एथलीट खेलों में स्वर्ण पदक जीता था। स्पोर्ट्सकीड़ा परिवार उन्हें सफलता के लिए शुभकामनाएं देता है। क्या है सेरिब्रल पॉल्सी सेरिब्रल पॉल्सी का उल्लेख उन अवस्थाओं के एक समूह के लिए किया जाता है जो कि गतिविधि और हावभाव के नियंत्रण को प्रभावित करते हैं। गतिविधि को नियंत्रित करने वाले मस्तिष्क के एक या अधिक हिस्से की क्षति के कारण प्रभावित व्यक्ति अपनी मांसपेशियों को सामान्य ढंग से नहीं हिला सकता। इसके लक्षणों का दायरा पक्षाघात के रूपों समेत साधारण से लेकर गंभीर तक हो सकता है। इस बीमारी में मानसिक सामान्य विकास में कमी, सीखने की अक्षमता, दौरा, और देखने, सुनने और बोलने की समस्या शामिल है। जीतू कंवर में इस बीमारी के लक्षणों का तीन वर्ष की उम्र में पता चला। इस पैरा एथलीट के शरीर का 40 फीसदी हिस्सा सेरिब्रल पॉल्सी की चपेट में है लेकिन जीतू को सिर्फ जीत पसंद है और शायद यही कारण है कि उन्होंने दिन-प्रतिदिन सफलता के झंडे गाड़े हैं। पढ़ने में भी जीतू कंवर तेज हैं खेल के साथ जीतू ने पढ़ाई में भी उतनी ही शिद्दत से मन लगाया है। उन्होंने 12वीं क्लास में इंदिरा प्रियदर्शिनी पुरस्कार जीतने के बाद जोधपुर विश्वविद्यालय से स्नातक किया। यहां से निकलकर जीतू ने राजस्थान केन्द्रीय विश्वविद्यालय के पब्लिक, पॉलिसी, लॉ एंड गवर्नेंस विभाग से पोस्ट ग्रेजुएशन में टॉप कर गोल्ड जीता। इसके बाद उन्होंने दिल्ली के जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय से एमफिल भी किया और अभी पीएचडी कर रही हैं। इसके अलावा वे जूनियर रिसर्च फेलोशिप यानि जेआरएफ भी कर चुकी हैं। परिवार तीन बहनें और दो भाई सहित कुल पांच भाई-बहनों में जीतू सबसे बड़ी हैं। इस एथलीट के पिता सरकारी कंपाऊडर हैं जिनकी ड्यूटी गांव के ही पास है और मां एक गृहणी हैं।

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