एक खिलाड़ी के लिये खेल से बढ़ कर कुछ नहीं होता। इस बात का सबसे बड़ा और ताज़ा उदाहरण सतीश कुमार हैं। टोक्यो ओलंपिक 2020 में भारतीय मुक्केबाज सतीश कुमार ने खेल के प्रति जो जज़्बा दिखाया उसे देख कर हर कोई हैरान है। सतीश कुमार के चेहरे पर 13 टांके लगे थे लेकिन इसके बावजूद वो टोक्यो ओलंपिक के क्वार्टरफाइनल में खेले।
उनकी हालत इतनी गंभीर थी कि उनके परिवार वालों ने उनसे ओलंपिक से पीछे हटने को कह दिया था। पर वो कहते हैं न कि खिलाड़ी खेल के मैदान से कभी पीछे नहीं हटता। बस इसी सोच के साथ उन्होंने भी अपने क़दम पीछे नहीं हटाये और टांके लगने के बावजूद उन्होंने खेल जारी रखा। सतीश कुमार सिर्फ़ एक प्लेयर ही नहीं हैं, बल्कि सेना के जवान भी हैं।
मीडिया से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि ‘मेरा फोन बंद नहीं हो रहा लोग बधाई दे रहे हैं, जैसे मैंने जीत हासिल की हो। मेरा इलाज चल रहा है, लेकिन मैं ही जानता हूं कि मेरे चेहरे पर कितने घाव हैं।’ आपको बता दें कि प्री क्वार्टरफाइनल के दौरान सेना के जवान के माथे पर और ठोड़ी पर दो गहरे टांके लगाये गये थे। इतना सब होने के बावजूद सतीश कुमार ने उज्बेकिस्तान के दिग्गज़ प्लेयर बखोदिर जालोलोव के खिलाफ़ रिंग में जाने का निर्णय लिया है।
खिलाड़ी का कहना था कि उनकी ठोड़ी में साते टांके और माथे में 6 टांके लगे हुए थे। उन्हें पता था कि वो लड़ना चाहते थे। अगर नहीं लड़ते, तो उन्हें ज़िंदगीभर इस बात का पछतावा रहता। इसलिये वो लड़े और अब वो अपने खेल से संतुष्ट हैं। ओलंपिक में वो अपना बेस्ट देना चाहते थे और दिया भी। वो कहते हैं इस लड़ाई के लिये उन्हें उनकी पत्नी ने प्रेरित किया था। वहीं उनके पिता उन्हें इतनी दर्दनाक हालत में लड़ते हुए नहीं देखना चाहते थे। ये लड़ाई उन्होंने अपने बच्चों के लिये भी लड़ी है।
खिलाड़ी को उम्मीद है कि जब बच्चे भविष्य में उनकी प्रतिभा देखेंगे, तो उन्हें ख़ुशी होगी। आपको बता दें कि सतीश कुमार दो बार ऐशियाई खेलों में कांस्य पदक हासिल कर चुके हैं। इसके साथ ही राष्ट्रमंडल खेलों के रजत पदक विजेता और कई बार के राष्ट्रीय चैंपियन भी रह चुके हैं। वो भारत की तरफ़ से ओलंपिक में क्वालीफाई करने वाले पहले सुपर हेवीवेट मुक्केबाज भी हैं।