टोक्यो ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों में में इस बार कुल 206 टीमें हिस्सा ले रही हैं। इन टीमों में दुनिया के 193 देश शामिल हैं तो 13 टीमें ऐसी हैं जिन्हें बतौर देश अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर मान्यता प्राप्त नहीं है लेकिन इनकी ओलंपिक समितियों को मान्यता प्राप्त है। भारत में हम हमेशा और मेडल लाने की बात करते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि 206 टीमों में से 70 से अधिक टीमें ऐसी हैं जिन्होंने ओलंपिक के इतिहास में एक भी मेडल नहीं जीता है।
जी हां। इन टीमों में संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता प्राप्त कई देश और कई Territories शामिल हैं। उदाहरण के लिए फिलिस्तीन को भले ही यूएन ने देश के रूप में आधिकारिक दर्जा न दिया हो, लेकिन IOC ने बतौर राष्ट्रीय ओलंपिक समिति इसे मान्यता दी है। ऐसे ही बरमुडा, ताईवान, हांगकांग आदि जैसे देश भी इस फेहरिस्त में शामिल हैं जिनके पास अपना एक भी ओलंपिक मेडल नहीं है।
अफ्रीका के सबसे ज्यादा देश
अफ्रीकी महाद्वीप के 25 से अधिक देश आज तक ओलंपिक मेडल नहीं जीत पाए हैं। इन देशों में अंगोला, चैड, लाइबिरिया, लीबिया, मैडागास्कर, सोमालिया, साउथ सूडान, सियेरा लियोन आदि शामिल हैं। गरीबी और भुखमरी को झेलने वाले अफ्रीकी देशों में जीवन की भौतिक सुविधाएं भी लोगों के पास नहीं हैं, जिस कारण खेलों में भागीदारी में ये देश पीछे छूट चुके हैं। हालांकि अफ्रीकी देशों के लोग कद-काठी से मजबूत माने जाते हैं और जैनेटिकली गिफ्टेड भी कहे जाते हैं लेकिन खेलों को बढ़ावा देने के लिए उचित इंफ्रास्ट्रक्चर और धन के अभाव को पूरा करके ही इन देशों के खिलाड़ियों को मेडल तक पहुंचाया जा सकता है।
एशिया के देशों को भी है इंतजार
वैसे, ओलंपिक मेडल के इंतजार में हमारे कई जाने-पहचाने देश भी हैं। भारत का पड़ोसी देश बांग्लादेश अभी तक अपना पहला ओलंपिक मेडल नहीं जीत पाया है। 1971 में आजादी के बाद बांग्लादेश ने साल 1984 के लॉस एंजिल्स ओलंपिक में पहली बार स्वतंत्र रूप से भाग लिया। भारत के पड़ोसी नेपाल और भूटान भी अपने पहले ओलंपिक मेडल की राह देख रहे हैं। कम्बोडिया, तुर्कमेनिस्तान और म्यांमार भी आज तक ओलंपिक मेडल नहीं जीत पाए हैं।
दक्षिण अमेरिकी देशों में केवल बोलिविया है जो एक भी ओलंपिक पदक अपने नाम नहीं कर पाया है। इसके अलवा यूरोप में अंडोरा, अल्बानिया जैसी टीमें पहले मेडल की तलाश में हैं।
ऐसे में इतने सारे देशों का ओलंपिक मेडल न जीत पाना इन देशों में खेलों के स्तर में सुधार की आवश्यकता को उजागर करता है। IOC के साथ ही खेलों से जुड़ी तमाम अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों, समितियों और संघों को ऐसे देशों में स्पर्धाओं को विशेष रूप से आयोजित करवाने में अहम भूमिका निभानी होगी। कठिन प्रयासों के बाद ही सुविधाओं के अभाव में अपना 100 फीसदी न दे पाने वाले इन देशों के खिलाड़ियों की असली काबिलियत दुनिया के सामने आ पाएगी।