Tokyo Olympics - कब तक भारतीय खिलाड़ी मेडल ना जीतने पर सुविधा का हवाला देते रहेंगे?

Shooting - Olympics
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भारतीय खिलाड़ियों के बारे में बात करें तो बीतें कुछ वर्षों में जिस प्रकार की सुविधा चाहिए वो लगातार उन्हें मिल रही है। बावजूद इसके अगर कोई खिलाड़ी बिन मेडल वापस आता है तो कहीं ना कहीं एक देश के तौर पर हमशे कहां गलती हो रही है इसपर हमें गौर करना होंगा। भारत में 2016 रियो ओलंपिक के बाद लोगों को खेल के प्रति रूझान बदला है। एक खेल नहीं बल्कि हर खेल के प्रति सुविधा बढ़ी है। पहले खिलाड़ियों को मंत्रालय में अर्जी डालनी पड़ती थी। हमें सहयोग राशि या बेहतर कोच ट्रेनिंग के लिए चाहिए लेकिन अब तो एक ट्वीट से खिलाड़ियों को समयनासुर सारी सुविधा मिल जाती है।

क्या खिलाड़ियों को देश के प्रति कोई दायित्व नहीं है? 2016 में 80 से ज्यादा खिलाड़ियों ने ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया था। बावजूद इसके भारत को 2 मेडल से संतोष करना पड़ा। 2020 टोक्यो ओलंपिक में भारत को डबल डिजीट में पदक की उम्मीद थी। लेकिन हमें इस बार भी 7 पदक के साथ संतोष करना पड़ेगा। हालांकि खुशी की बात ये रही हैं कि एथलेटिक्स में भारत को कई सालों बाद पदक देखने को मिला है।

ग्राउंड से ज्यादा हैं सोशल मीडिया पर एक्टिव

भारत के छोटे-बड़े खिलाड़ी आजकल सोशल मीडिया पर ज्यादा एक्टिव दिखाए देते हैं। इंस्टाग्राम पर खिलाड़ियों की नाना प्रकार की फोटो और वीडियो लोगों के आकर्षण का केंद्र बनता है। कई बार ये खिलाड़ी सोशल मीडिया पर इतने मशरूफ हो जाते हैं कि किसी विषय पर ज्यादा जानकारी ना होते हुए अपनी राय दे डालते हैं। जिसका नतीजा ये होता है कि ये खिलाड़ी किसी ना किसी विवाद का शिकार हो जाते हैं। सोशल मीडिया इस्तेमाल करना का कोई गलत बात नहीं है लेकिन आप किसी भी चीज को ज्यादा इस्तेमाल करेंगे तो वो कहीं ना कहीं वो आपके लिए नुकसानदायक हो जाती है।

स्पोर्टस मैनेजमेंट कंपनियां बना रहीं हैं खिलाड़ियों के नाम पर मोटा पैसा

एक औसतन ओलंपिक खिलाड़ी जो भारत में मेडल जीतकर आता है उसकी ब्रांड वैल्यू 1 या दो साल तक 10-20 करोड़ के आस-पास रहती है। जिस बात को देश की नाम-चीन स्पोर्टस मैनेजमेंट कंपनी अच्छी तरह से जानती हैं और वो उस समय का भरपूर इस्तेमाल कर वो खिलाड़ियों के नाम पर मोटा पैसा बनाती है। जब वो खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन नहीं करता हो कहीं ना कहीं उस खिलाड़ी का ब्रांड वैल्यू रातों-रात गिनकर कहीं का नहीं रह जाता।

इस बात को ध्यान में रखते हुए नेशनल राइफल असोइसेफन आफ इंडिया ने एक सर्कुलर निकाला था की कोई भी खिलाड़ी उनकी सहमति के बिना किसी भी कंपनी या ब्रांड के साथ करार नहीं कर सकता। इस नियम को लागू करने का विशेष उद्देशय था की कोई भी खिलाड़ी जानें या अनजानें में कोई ऐसा करार ना कर ले जिससे उसके अभ्यास और प्रदर्शन पर असर हो। आज भी इंडिया कैंप में आप चले जाइए वहां पर आपको ऐसे विभीन्न महानुभाव मिल जाएंगे जो विभीन्न ब्रांड को प्रमोशनल वीडियो बनाकर भेज रहे हैं।

ओलंपिक जैसे इवेंट में पदक ना आने में इन सब मुख्य बिंदुओं का अहम योगदान है। अनुशासन पालन करने वाला ही खिलाड़ी ज्यादा समय तक देश की सेवा कर पड़ता है । वर्ना हर साल कई खेल में कई खिलाड़ी इंडियन टीम में आते और जाते हैं। खिलाड़ियों को ये सोचना होगा की क्या वो लंबा छलांग लगाना चाहते हैं या फिर उन्हें एक बार छलांग लगाकर जो कुछ मिला उसी में संतोष करना है।

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Edited by निशांत द्रविड़
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