Tokyo Olympics - मीराबाई चानू, वो नाम जिनकी उपलब्धि की कायल है सारी दुनिया 

साइखोम मीराबाई चानू
साइखोम मीराबाई चानू

साइखोम मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलंपिक में देश के लिये पहला पदक जीता और इतिहास रच दिया। मीराबाई चानू मणिपुर के पूर्वी इंफाल ज़िले की निवासी हैं। उन्होंने ये कीर्तिमान 49 किलोग्राम महिला वर्ग के इवेंट में रचा है। अपनी मेहनत और लगन से मीराबाई चानू दुनियाभर में छा गई। आज भले ही हर कोई मीराबाई चानू के नाम का गुनगान गा रहा है, पर सच बताना ओलंपिक से पहले कितने लोग थे, जो उनके बारे में जानते थे या जानने की कोशिश की थी?

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अगर दिल से सोचेंगे, तो जवाब निराश करने वाला ही मिलेगा। जब भी कोई खिलाड़ी देश के लिये पदक लाता है, तो हर कोई उसकी विजय गाथा गाने लगता है। पर असल में हमें ये सोचना चाहिये कि आखिर कैसे एक छोटे से गांव से निकल मीराबाई चानू जैसे खिलाड़ी देश का नाम रोशन कर रहे हैं। आप में से बहुत से कम लोग जानते होंगे कि वेटलिफ़्टर बनने से पहले मीराबाई चानू तीरंदाज़ बनने का सपना देखती थी।

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वो मीराबाई चानू जिनका बचपन पहाड़ों पर लकड़ियां बिनते-बिनते निकला था। वो लड़की जिसके हाथों में पढ़ने के लिए किताबों की जगह घर चलाने की ज़िम्मेदारी थी। फिर भी उसकी आंखों ने सपने देखना बंद नहीं किया। वेटलिफ्टर कुंज रानी देवी की सच्चाई जानने के बाद उस बच्ची को आगे बढ़ने की हिम्मत मिली।

ज़िंदगी के संघर्षों को पार करते हुए मीराबाई चानू 2016 के रियो ओलंपिक में पहुंच गई, लेकिन पदक जीतने से रह गई थी। संघर्ष के दौरान मीराबाई चानू का मुक़ाबला किसी और से नहीं, बल्कि ख़ुद से था। निराश होने के बजाये मीराबाई चानू ने अपनी ग़लतियों से सबक लिया और आगे बढ़ती चली गईं। 2018 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री के सम्मान से भी नवाज़ा था। बेहतरीन प्रदर्शन के लिये वो राजीव गांधी खेल रत्न से भी सम्मानित हो चुकी हैं। आज आखिरकार वो पल भी आया जब देशवासियों को अपनी बेटी पर गर्व है।

मीराबाई चानू की कहानियां और क़िस्से चर्चा का विषय बन गये. हम सब मीराबाई चानू की विजय पर ख़ुश तो हैं, लेकिन ये सोचना भूल गये कि ये ख़ुशी इतनी देर से क्यों मिली? क्यों हम छोटे गांव से आने वाले खिलाड़ियों के बारे में पहले नहीं सोचते। क्यों हम देश के खिलाड़ियों को मजबूत आर्थिक या मानसिक वातावरण नहीं दे पाते।

अगर हम गर्व से देशप्रेमी होने का दावा करते हैं, तो गर्व से देश के लिये कुछ करना भी सीखना चाहिये। आज भी न जाने कितनी ही मीराबाई चानू आंखों में हज़ार सपने लिये संघर्षभरी ज़िंदगी जी रही हैं, लेकिन हम अपनी ज़िंदगी में मग्न हैं। फिर एक दिन आयेगा जब हम उस खिलाड़ी की उपलब्धियों पर कहानियां लिखेंगे। उठिये, जागिये और देश की मिट्टी और इसके खिलाड़ियों के लिये कुछ करिये। ताकि किसी दूसरी मीराबाई को सपने पूरे करने के लिये लंबा इंतज़ार न करना पड़े।

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Edited by निशांत द्रविड़
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