Tokyo Olympics - देश के लिये मेडल जीतने वाली मीराबाई चानू को है मदद करने वाले ट्रक ड्राइवर्स की तलाश 

मीराबाई चानू
मीराबाई चानू

आज कल हर तरफ़ ओलंपिक में सिल्वर पदक जीतने वाली मीराबाई चानू के चर्चे हैं। होने भी चाहिये, क्योंकि एक छोटे गांव की लड़की ने देश के लिये जो किया वो बेहद क़ाबिले-ए-तारीफ़ है। सड़कों पर उनके स्वागत के जन सैलाब उमड़ रहा है। इससे पता चलता है कि उन्होंने देश के लिये सिल्वर मेडल ही नहीं जीता, बल्कि करोड़ों भारतीयों का दिल भी जीता है।

हांलाकि, मीराबाई चानू सिल्वर मेडल का श्रेय सिर्फ़ उनकी मेहनत को नहीं देती हैं। खिलाड़ी ने अपनी सफ़लता का श्रेय उन सभी ट्रक ड्राइवर्स को भी दिया है, जिनकी बदौलत वो ट्रेनिंग स्थल तक पहुंच पाती थीं। चानू बताती हैं कि ये ट्रक ड्राइवर्स रेत, पत्थर और अन्य निर्माण सामग्री ले जाने वाले होते थे। जब उन्हें ट्रेनिंग स्थल तक पहुंचने के लिये कोई साधन नहीं मिलता था, तो वो रोज़ाना इन ट्रक ड्राइवर्स को हाथ देकर लिफ़्ट मांगती थीं। इसके बाद वही ट्रक ड्राइवर्स उन्हें लिफ़्ट देकर ट्रेनिंग स्थल तक पहुंचने में मदद करते थे।

जो लोग देश की बेटी के संघर्ष के बारे में जानते हैं उन्हें पता होगा कि उन्होंने ओलंपिक में जीत हासिल करने के लिये क्या कुछ नहीं सहा और किया। चानू अब उन ट्रक ड्राइवर्स से मिलना चाहती हैं, जिन्होंने कठिन हालातों में उनकी मदद की थी। सभी ट्रक ड्राइवर्स खिलाड़ी को नोंगपोक काकचिंग गांव में उनके घर से खुमान लम्पक स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स प्रशिक्षण केंद्र तक फ़्री में पहुंचाते थे।

ट्रेनिंग में पहुंचना आसान नहीं था

दुनिया के हर एथलीट का एक ही सपना होता है। वो एक दिन अपने देश के लिये मेडल जीत कर लाना चाहते हैं। वेट लिफ़्टर मीराबाई चानू भी खिलाड़ियों में से हैं, जो देश के लिये पदक जीतने का सपना देखती थीं। देखिये वो दिन भी आया जब उन्होंने देश के लिये सिल्वर मेडल जीत कर देशवासियों की झोली खु़शियों से भर दी। चानू का परिवार मुफलिसी में रहता था। उनका परिवार आर्थिक रूप से इतना मजबूत नहीं था कि रोज़ उनकी ट्रेनिंग का खर्च उठा सके। पर मीराबाई चानू भी कहां थमने वाली थीं। उन्होंने मेडल जीतने की ज़िद ठान ली थी और किसी न किसी तरीक़े से लिफ़्ट मांग कर ट्रेनिंग सेंटर तक पहुंच ही जाती थीं।

आपको बता दें कि चानू का ट्रेनिंग सेंटर उनके घर से क़रीब 30 किलोमीटर दूर था। वहां तक पहुंचने के लिये उनके पास 20 रुपये होते थे, जो कि पर्याप्त नहीं थे। इसलिये उन्होंने ट्रक ड्राइवर्स से लिफ़्ट लेने की सोची और वैसा ही हुआ भी। थोड़े समय बाद हर ड्राइवर उन्हें पहचानने लगा और फिर वो अपने आप ही उन्हें बिन कहें ट्रेनिंग सेंटर तक छोड़ देता था।

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