एक समय था जब लोग क्रिकेट के अलावा अन्य किसी खेल को तव्वज़ो ही नहीं देते थे। फिर टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympic) की शुरुआत हुई। ओलंपिक में कई तरह के खेलों का आयोजन किया। जिससे अन्य खेलों में रुचि रखने वाले खिलाड़ियों को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौक़ा मिला। इसके बाद अब वो दिन आ गये हैं कि ख़बरों में ओलंपिक, ओलंपिक ही दिखता है।
इस बार का ओलंपिक भी कुछ ऐसा ही जा रहा है। हर दिन टोक्यो ओलंपिक से जुड़ी कई ख़बरें सामने आती रहती हैं। यहां तक की ओलंपिक की ख़बरों के बीच क्रिकेट जगत से जुड़ी कई ख़बरें कहीं दब सी गई हैं। कमाल की बात ये है कि इस बार रियो ओलंपिक में पदक तालिका में सुधार करते हुए पुरूष महिलाओं से आगे निकल गए हैं। 2016 रियो ओलंपिक में सिर्फ दो पदक आया था, वो भी महिलाओं ने जीता था। लेकिन इस बार पासा उल्टा पड़ा और पुरूष 4 पदक ले आये वहीं महिलाओं के खाते में 3 पदक आए हैं।
रियो ओंलपिक में पदक ना जीतने पर कहीं ना कहीं खिलाड़ी पुरूष खिलाड़ियों का मलाल था। जिसकी कसक टोक्यो ओलंपिक में पूरी हो गई है। भारत के खाते में कुल 7 पदक आए हैं। दीपक पूनिया और अदिति अशोक जिनसे पदक की सबसे ज्यादा उम्मीद थी, लेकिन अंत समय में पासा पल्टा और दोनों खिलाड़ी पदक की रेस से बाहर हो गए हैं। 2008 से 2020 ओलंपिक इतिहास देख लिया जाए तो खेलों के महाकुंभ में अभी पुरूष खिलाड़ियों का वर्चस्व है। टोक्यो ओलम्पिक में भी भारत की तरफ से कुल 128 एथलीट ने हिस्सा लिया जिसमें 70 पुरुष और 58 महिलाएं थीं।
महिलाओं की भागीदरी बढ़ाने पर जोर देना होगा
भारत में खेलों के प्रति लोगों को मानसिकता बदलने की जरूरत है। आज भी हमारे समाज में महिला खिलाड़ियों को उतनी अहमियत नहीं दी जाती। जितनी पुरूष खिलाड़ी को दी जाती है। जिले से लेकर राज्य के अलग-अलग स्टेडियम में लड़कों की संख्या ज्यादा होती है। लड़कियों के मुकाबले। भारत सरकार अपने तरफ से महिलाओं के खेलों में भागीदारी बढ़ाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम तो जरूर चला रही है। लेकिन उसका असर जमीनी स्तर पर देखने को नहीं मिल रहा। बहरहाल हम तो यही उम्मीद करते हैं कि आने वाले दिनों में इस सोच में बदलाव दिखेगा और महिला खिलाड़ी की भी भागीदारी उतनी ही देखने को मिलेगी, जितनी पुरूष खिलाड़ियों को देखने को मिलती है