टोक्यो ओलंपिक में लगातार एक के बाद एक ऐसे वाकये देखने को मिल रहे हैं जो हैरान करने वाले हैं। कभी 13 साल की लड़की गोल्ड मेडल जीत जाती है तो कभी हाई जम्प में दो खिलाड़ियों को गोल्ड मेडल दिया जाता है। ऐसे में मंगोलिया के जूडो खिलाड़ी सईद मोलाई की सिल्वर पदक की जीत काफी चर्चा में है क्योंकि सईद कभी ईरान के लिए ओलंपिक खेलते थे लेकिन अपने देश की इजराइल का बॉयकॉट करने की खेल नीति के खिलाफ बोलने पर उन्हें देश छोड़ना पड़ा।
ईरान ने मुकाबला हारने का दबाव डाला था
दरअसल 2018 में विश्व चैंपियनशिप जीतने वाले मोलाई साल 1992 में ईरान में जन्मे थे और यहीं रहकर उन्होंने जूडो को गुर सीखे और अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में अपने देश का प्रतिनिधित्व किया। 73 किलोग्राम वर्ग में खलेने वाले मोलाई ने 81 किलोग्राम वर्ग में खेलना शुरु किया और 2017 में हुई विश्व चैंपियनशिप में तीसरा स्थान हासिल किया। 2019 में टोक्यो में हुई विश्व चैंपियनशिप में मोलाई भाग ले रहे थे। 81 किलोग्राम वर्ग के फाइनल में इजराइल के सागी मुकी पहले ही पहुंच चुके थे। ऐसे में ईरान ओलंपिक कमेटी ने मोलाई को कहा कि अपना मुकाबला हार जाएं, क्योंकि यदि मोलाई अपने मुकाबले जीत जाते और फाइनल में पहुंच जाते तो इजराइल के खिलाड़ी के साथ उन्हें खेलना पड़ता।
खुद खेल मंत्री ने किया फोन
विश्व चैंपियनशिप टोक्यो में खेली जा रही थी और यह देखते हुए कि इजराइल के खिलाड़ी से मुकाबले की संभवाना है, मोलाई को खुद खेल मंत्री ने फोन कर कहा कि वो अपना मैच गंवा दें। दरअसल मध्य एशिया के मुस्लिम देश और ईरान आदि फिलिस्तीन के मामले पर इजराइल से हमेशा से ही खफा हैं। ये देश इजराइल को एक मुल्क मानते ही नहीं इसलिए कई बार अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में अपने खिलाड़ियों पर दबाव डालते हैं कि इजराइल के खिलाड़ी के खिलाफ मैच गंवा दें, या ना खेलें। ऐसा करने से (इन देशों के मुताबिक) वो इजराइल को बतौर देश मान्यता नहीं दे रहे। खैर, मोलाई को टोक्यो में 2019 में ऐसा ही करना पड़ा, लेकिन मुकाबले के बाद परेशान मोलाई ने बकायदा वीडियो जारी किया और बताया कि किस तरह वो चैंपियन बनना चाहते थे और बन भी जाते, लेकिन उनके देश की जबरदस्ती की सोच ने उन्हें मैच गंवाने पर मजबूर कर दिया।
टोक्यो ओलंपिक की तैयारी इजराइल में की
मोलाई ने खुलकर ईरान की खेल से वैश्विक राजनीति को जोड़ने की पोल सबके सामने रख दी थी। इसके बाद जान का खतरा देखते हुए मोलाई ने जर्मनी में असायलम ले लिया। मोलाई की हिम्मत का कई देशों ने समर्थन किया और दिसंबर 2019 में मंगोलिया के राष्ट्रपति, जो कि खुद मंगोलिया की जूडो फेडरेशन के अध्यक्ष भी थे, ने खुद मोलाई को नागरिकता का ऑफर दिया जिसे मोलाई ने हंसते हंसते स्वीकार कर लिया। मोलाई ने टोक्यो ओलंपिक की तैयारी इजराइल में भी की। टोक्यो ओलंपिक में 81 किलोग्राम भार वर्ग के फाइनल में उन्हें जापान के पहलवान से हार मिली लेकिन सिल्वर मेडल उनके नाम हो गया। मोलाई ने ये मेडल इजराइल को समर्पित किया।
ईरान पर लग गया बैन
वैसे साल 2019 में मोलाई को जब दबाव के कारण मैच हारना पड़ा तो उन्हें रोना आ गया क्योंकि इस खिलाड़ी ने विश्व चैंपियन बनने की मेहनत की थी, जो अपने देश की सोच की वजह से जाया करनी पड़ी। ईरान की हरकत दुनिया से नहीं छिपी और अंतर्राष्ट्रीय जूडो फेडरेशन ने ईरान पर बैन लगा दिया। आज भी मध्य एशिया के कई देश इजराइल के खिलाफ अपनी दुश्मनी को खेल के मैदान पर दिखाने से गुरेज नहीं करते।
टोक्यो ओलंपिक में भी दिखी नफरत
टोक्यो ओलंपिक में ही जूडो के एक मुकाबले में अल्जीरिया के खिलाड़ी फेतीह नौरीन को दूसरे राउंड का मैच छोड़ना पड़ा क्योंकि उनका प्रतिद्वंदी तोहार बुतबुल इजराइली था। नौरीन ने 73 किलो स्पर्धा में साल 2019 में भी विश्व चैंपियनशिप में नाम वापस लिया था क्योंकि तब भी इजराइल के बुतबुल उनके ड्रॉ में थे।
खास बात ये है कि अल्जीरिया के इस कदम के बाद बुतबुल को सूडान के मोहम्मद अब्दलरसूल से खेलना था,लेकिन रसूल भी मैच के लिए नहीं आए। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि अधिकतर खिलाड़ी आंतरिक दबाव के कारण चाह कर भी इजराइल के खिलाफ नहीं खेल पाते, और मोलाई के मामले से ये साफ है। बहरहाल, मोलाई के चांदी के तमगे की चमक ईरान को थोड़ी ही सही लेकिन खल जरूर रही होगी कि जिस इंसान में ओलंपिक मेडल जीतने का दमखम था उसे यूं जाने दिया।